भारत यह तो सब जानते हैं कि कई बैक्टीरिया हमारे लिए फायदेमंद होते हैं। जैसे हमारी आंत में बसे बैक्टीरिया भोजन पचाने में मददगार हैं, जीभ और त्वचा पर बसे बैक्टीरिया हमें रोगजनकों से सुरक्षा देते हैं। और अब हाल ही में शोधकर्ताओं को हमारी नाक में भी लाभदायक बैक्टीरिया मिले हैं। सेल पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार यह नासिका सूक्ष्मजीव संसार नासूर (गंभीर साइनस समस्या) या एलर्जी से बचाने में मददगार हो सकता है।
युनिवर्सिटी ऑफ एंटवर्प की सूक्ष्मजीव विज्ञानी सारा लेबीर और उनके साथियों ने 100 स्वस्थ लोगों की नाक में बसे सूक्ष्मजीवों की जासूसी की और उनकी तुलना नाक या साइनस की जीर्ण सूजन वाले मरीज़ों की नाक के सूक्ष्मजीवों से की। उन्हें सामान्य तौर पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों के अलावा एक बैक्टीरिया समूह लैक्टोबेसिलस दिखा, जो स्वस्थ लोगों की नाक में 10 गुना अधिक संख्या में था। लैक्टोबेसिलस सूक्ष्मजीव-रोधी और सूजन-रोधी होते हैं।
आम तौर पर लैक्टोबेसिलस बैक्टीरिया कम ऑक्सीजन वाले क्षेत्रों में पनपते हैं, इसलिए इंसानों की नाक में इनकी मौजूदगी से शोधकर्ता हैरान थे, क्योंकि नाक तो ताज़ा हवा से भरपूर होती है। लेकिन बारीकी से अवलोकन करने पर पता चला है कि इस बैक्टीरिया में केटालेसेस नामक खास जीन्स मौजूद हैं जो अन्य लैक्टोबेसिलस बैक्टीरिया से अलग हैं। केटालेसेस सुरक्षित तरीके से ऑक्सीजन को बेअसर कर देते हैं। अर्थात ये लैक्टोबेसिलस नाक के परिवेश के लिए अनुकूलित हैं।
बैक्टीरिया पर बहुत छोटे-छोटे बाल के समान उपांग भी दिखे जो बैक्टीरिया को नाक की आंतरिक सतह पर लंगर डालने में मदद करते हैं। और लेबीर का विचार है कि बैक्टीरिया इन रोमिल उपांगों का उपयोग नाक की त्वचा की कोशिकाओं के ग्राहियों से जुड़ने के लिए करते हैं, जिससे कोशिकाओं में प्रवेश मार्ग बंद हो जाता है। यदि कोशिकाएं कम खुली रहेंगी तो एलर्जी पैदा करने वाले और नुकसानदेह बैक्टीरिया का कोशिका में प्रवेश मुश्किल होगा।
लेकिन लेबीर यह भी जानती हैं कि स्वस्थ लोगों की नाक में लैक्टोबेसिलस बैक्टीरिया की उपस्थिति मात्र के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि ये बीमारी से सुरक्षा देते हैं। इसकी पुष्टि के लिए जंतु मॉडल पर परीक्षण करना भी मुश्किल होता है क्योंकि उनकी नाक हम मनुष्यों से बहुत अलग होती है।
कुछ विशेषज्ञ इस बात से भी सहमत नहीं है कि जो लैक्टोबेसिलस मनुष्यों की नाक में मिले हैं वे नाक में बसने के लिए अनुकूलित हैं। हमारे मुंह में भी लाखों लैक्टोबेसिलस बसते हैं और हो सकता है कि छींक के माध्यम से वे नाक में पहुंच गए हों।
बहरहाल लेबीर का इरादा नासिका प्रोबायोटिक्स का उपयोग करके इलाज विकसित करने का है। वैसे तो साइनस का उपचार उपलब्ध है लेकिन गंभीर साइनस की समस्या में लगातार उपचार करने की ज़रूरत होती है जिससे एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ प्रतिरोध विकसित होने की संभावना होती है। इन बैक्टीरिया के लाभकारी हिस्से का उपयोग कर दवाओं के खिलाफ प्रतिरोध हासिल करने के जोखिम को कम किया जा सकता है। इसके पहले चरण में उन्होंने नाक के लिए एक स्प्रे विकसित किया है जिसमें लैक्टोबैसिलस बैक्टीरिया हैं। इसके परीक्षण में रोगियों की नाक में बिना किसी दुष्प्रभाव के लैक्टोबेसिलस बैक्टीरिया बस गए। (स्रोत फीचर्स)(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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