आज जलवायु परिवर्तन और बढ़ते वैश्विक तापमान की समस्या और इसके कारणों से हम वाकिफ हैं और इसे नियंत्रित करने के प्रयास में लगे हैं। अब तक इस समस्या के कारण को समझने का श्रेय जॉन टिंडल को दिया जाता है। लेकिन युनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के विज्ञान इतिहासकार जॉन पर्लिन का कहना है कि जलवायु परिवर्तन की हमारी समझ की नींव रखने का श्रेय युनिस फुट को जाता है। फुट ने कार्बन डाईऑक्साइड के ऊष्मीय प्रभाव का अध्ययन किया था जो वर्ष 1856 में सूर्य की किरणों की ऊष्मा को प्रभावित करने वाली परिस्थितियां शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। जॉन टिंडल का कार्य तीन वर्ष बाद प्रकाशित हुआ था।
पर्लिन बताते हैं कि 1856 में न्यूयॉर्क में अमेरिकन एसोसिएशन फॉर एडवांसमेंट ऑफ साइन्स की 10वीं वार्षिक बैठक में फुट का पेपर प्रस्तुत किया गया था। तब महिलाओं को अपना काम प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं थी इसलिए उनके पेपर को एक अन्य वैज्ञानिक ने प्रस्तुत किया था। इसे बैठक की कार्यावाही में नहीं बल्कि अमेरिकन जर्नल ऑफ साइंस एंड आर्ट्स में एक लघु लेख के रूप में प्रकाशित किया गया था। अपने इस अध्ययन में उन्होंने नम और शुष्क वायु, और कार्बन डाईऑक्साइड, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैसों पर सूर्य के प्रकाश का प्रभाव देखा था। अध्ययन में फुट ने पाया कि सूर्य के प्रकाश का सर्वाधिक प्रभाव कार्बोनिक एसिड गैस पर होता है। उनके अनुसार वायुमंडल में मौजूद इस गैस के कारण हमारी पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हुई होगी।
इस बारे में 13 सितंबर के साइंटिफिक अमेरिकन के अंक में वैज्ञानिक महिलाएं – संघनित गैसों के साथ प्रयोग शीर्षक से एक लेख भी प्रकाशित हुआ था। इसके एक साल बाद अगस्त 1857 में उन्होंने एक अन्य अध्ययन प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने वायु पर बदलते दाब, ताप और नमी के प्रभावों का अध्ययन किया और इसे वायुमंडलीय दाब और तापमान में होने वाले परिवर्तनों से जोड़ा।
उन्होंने कई आविष्कारों के पेटेंट के लिए आवेदन किए। अमेरिकी महिलाओं के मताधिकार और बंधुआ मज़दूरी के खिलाफ आंदोलन में भी उनकी सक्रिय भागीदारी रही।
फुट के काम के बारे में पता चलने के बाद एक महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि क्या लंदन के रॉयल इंस्टीट्यूशन में काम कर रहे टिंडल अपने शोध प्रकाशन के समय फुट के काम से वाकिफ थे? पर्लिन का मत है कि टिंडल वाकिफ थे क्योंकि फुट के शोधपत्र की रिपोर्ट और सारांश कई युरोपीय पत्रिकाओं में पुन: प्रकाशित किए गए थे। रॉयल इंस्टीट्यूशन में अमेरिकन जर्नल ऑफ साइंस एंड आर्ट्स पत्रिका पहुंचती थी और नवंबर 1856 के जिस अंक में फुट का लेख प्रकाशित हुआ था, उसी में वर्णांधता पर टिंडल का भी एक लेख छपा था। दी फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में भी फुट का लेख प्रकाशित हुआ था, जिसके संपादक टिंडल थे। इसके अलावा, फुट के लेख का सार जर्मन भाषा में साल की महत्वपूर्ण खोज के संकलन के रूप में प्रकाशित हुआ था। टिंडल जर्मन भाषा के जानकार थे। पर्लिन का कहना है कि फुट को उनके काम का श्रेय ना मिलने की पहली वजह तो यह हो सकती है कि वे ये प्रयोग शौकिया तौर पर करती थीं; दूसरा, उस वक्त तक अंग्रेज़ अपने को अमरीकियों से श्रेष्ठ मानते थे; और तीसरा, कि वह एक महिला थीं। टिंडल खुद महिलाओं के मताधिकार के विरोधी थे और महिलाओं का बौद्धिक स्तर पुरुषों से कम मानते थे। बहरहाल, पर्लिन का मत है कि फुट को जलवायु परिवर्तन की समझ की जननी के रूप में जाना जाए। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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