लोगों से उनकी लंबी उम्र का राज़ पूछो तो वे इसका श्रेय अपने खान-पान, व्यायाम, नृत्य, दिमागी कसरत जैसी तमाम गतिविधियों को देते हैं। 109 वर्षीय जेसी गैलन से जब उनकी लंबी आयु का राज़ पूछा गया तो उन्होंने एक जवाब यह भी दिया कि वे पुरुषों से दूर रहती हैं। लेकिन किसी के मन में यह ख्याल नहीं आता कि इसमें गुणसूत्र (क्रोमोसोम) की भी भूमिका हो सकती है। इसी संदर्भ में हाल ही में बायोलॉजी लेटर्स में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि असमान लैंगिक गुणसूत्र वाले जीवों की तुलना में समान लैंगिक गुणसूत्र वाले जीव अधिक जीते हैं।
अधिकतर जानवरों में नर और मादा का निर्धारण लैंगिक गुणसूत्रों से होता है। स्तनधारियों में, मादाओं में दोनों लैंगिक गुणसूत्र समान (XX) होते हैं जबकि नर में असमान (XY) होते हैं। पक्षियों में नर में लैंगिक गुणसूत्र समान (ZZ) होते हैं जबकि मादा में असमान (ZW) होते हैं। नर ऑक्टोपस जैसे कुछ जीवों में एक ही लैंगिक गुणसूत्र होता है।
युनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स के इकॉलॉजिस्ट ज़ो ज़ाइरोकोस्टास और उनके साथी जानना चाहते थे कि क्या असमान लैंगिक गुणसूत्र (जैसे XY) वाले जीवों में आनुवंशिक उत्परिवर्तनों का खतरा अधिक होता है, जिसके कारण उनका जीवन काल छोटा हो जाता है? शोधकर्ताओं ने वैज्ञानिक शोध पत्रों, किताबों और ऑनलाइन डैटाबेस को खंगाला और लैंगिक गुणसूत्र और आयु सम्बंधी डैटा निकाला। उन्होंने 99 कुल, 38 गण और 8 वर्गों की 229 प्रजातियों के नर और मादाओं के जीवन काल की तुलना की। उन्होंने पाया कि किसी भी प्रजाति में समान लैंगिक गुणसूत्र वाले लिंग का जीवन काल 17.6 प्रतिशत तक अधिक होता है। जीवन काल का यह पैटर्न मनुष्यों, जंगली जानवरों और पालतू जानवरों में दिखाई दिया।
शोधकर्ताओं का कहना है कि लिंगों के बीच जीवन काल का यह अंतर विभिन्न प्रजातियों में अलग-अलग होता है। जैसे जर्मन कॉकरोच (Blattellagermanica प्रजाति) के नर (सिर्फ X) की तुलना में मादा (XX) 77 प्रतिशत अधिक जीवित रहती है। यह अंतर इस बात पर भी निर्भर करता है कि समान लैंगिक गुणसूत्र वाला जीव नर है या मादा। अध्ययन में उन्होंने पाया कि समान लैंगिक गुणसूत्र वाली मादा (स्तनधारी, सरीसृप, कीट और मछलियां) अपनी प्रजाति के नर की तुलना में 20.9 प्रतिशत अधिक समय तक जीवित रहती हैं। दूसरी ओर, समान लैंगिक गुणसूत्र वाले नर (पक्षी और तितलियां) अपनी प्रजाति की मादाओं की तुलना में सिर्फ 7 प्रतिशत ही अधिक जीते हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि समान लैंगिक गुणसूत्र वाले नर और मादा के जीवन काल में फर्क देखकर लगता है कि दीर्घायु को लैंगिक गुणसूत्र के अलावा अन्य कारक भी प्रभावित करते हैं। इनमें से एक कारक हो सकता है प्रजनन-साथी चयन का दबाव। मादाओं को रिझाने के लिए कुछ प्रजातियों के नर की शारीरिक बनावट और व्यवहार आकर्षक होते हैं, जिसके लिए उन्हें काफी ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है जिसका खामियाज़ा उनके स्वास्थ्य को भुगतना पड़ता है और जिससे उनकी मृत्यु जल्दी हो जाती है।
आगे शोध से यह समझने में मदद मिलेगी कि लैंगिक गुणसूत्र जीवन काल को कैसे प्रभावित करते हैं। जैसे क्या एक लैंगिक-गुणसूत्र का छोटा आकार नर और मादाओं की आयु में अंतर के लिए जि़म्मेदार है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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