वर्षों कुछ समय पूर्व हबल नामक अंतरिक्ष दूरबीन से ब्राहृांड में स्थित 15 नवनिर्मित तारों के चारों ओर घूमते हुए गैस तथा धूल कणों से निर्मित तश्तरियों के चित्र खींचे गए हैं। खगोल वैज्ञानिकों के अनुसार ये चित्र इस बात के स्पष्ट तथा सशक्त प्रमाण हैं कि हमारे सौर परिवार के बाहर भी ग्रहों का अस्तित्व है। सूर्य के अतिरिक्त अन्य तारों के चारों ओर ग्रहों के अस्तित्व की जानकारी मिलने से वैज्ञानिकों के इस अनुमान को भी सशक्त आधार प्राप्त होता है कि जीवन का अस्तित्व ब्रह्माण्ड में पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य तारों के ग्रहों पर भी सम्भव है।
खगोलविदों के अनुसार हबल दूरबीन से प्राप्त चित्रों को देख कर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि लगभग चार अरब वर्ष पूर्व सूय के इर्द-गिर्द ग्रहों का निर्माण किस प्रकार हुआ होगा। हबल से प्राप्त चित्र कुछ वैज्ञानिकों द्वारा ग्रहों की उत्पत्ति के सम्बंध में प्रस्तुत परिकल्पनाओं की पुष्टि करते हैं। ये चित्र इस बात का संकेत देते हैं कि किसी नवजात तारे के चारों ओर मौजूद धूल कण इतनी तेज़ी से घूमते रहते हैं कि नवजात तारे का आकर्षण उन्हें अपनी ओर खींच नहीं पाता है। इसकी बजाय वे नवजात तारे के चारों ओर तश्तरी की आकृति में फैलते जाते हैं। यही कण समय के साथ विभिन्न ग्रहों के रूप में परिणित होकर उस नवजात तारे का चक्कर लगाने लगते हैं।
उपरोक्त तथ्य का पता ह्रूस्टन स्थित राइस विश्वविद्यालय के खगोल वैज्ञानिक रॉबर्ट ओ’डेल द्वारा लगाया गया तथा प्राप्त इसकी घोषणा नासा द्वारा की गई। रॉबर्ट ओ’डेल ने उपरोक्त तथ्य का पता हबल द्वारा प्राप्त ओरायन नेबुला के चित्रों के अध्ययन के आधार पर लगाया। हमसे लगभग 1500 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित यह नेबुला हमारे सौर मंडल का निकटतम पड़ोसी है। इन चित्रों से पता चलता है कि धूल कणों से निर्मित उपरोक्त तश्तरियां लगभग 15 नवजात तारों के चारों ओर उपस्थित हैं। इनमें से प्रत्येक नवजात तारा दस लाख वर्ष से कम उम्र का है। इन तारों के चारों ओर उपस्थित धूल कणों का आकार बालू के कणों के समान है। इन तश्तरियों में से कुछ तो इतनी चमकदार हैं कि उन्हें सीधे देखा जा सकता है। इन तश्तरियों के चित्रों के अध्ययन से पता चलता है कि उपरोक्त 15 नवजात तारों के चारों ओर अभी ग्रणों का निर्माण प्रारम्भ नहीं हुआ है परन्तु ग्रह निर्माण की परिस्थितियां तैयार हो रही हैं। तश्तरियों की आकृति वाले उपरोक्त सभी नेबुला हमारे सौर मंडल से अधिक मोटे तथा इससे बड़े व्यास वाले हैं। ओ’डेल का विचार है कि उपरोक्त सभी नेबुला में धूल कणों की मात्रा इतनी है कि उनसे हमारे सौर मंडल के ग्रहों के समान ग्रह बन सकते हैं।
ओरायन तारामंडल के अध्ययन से पता चलता है कि इसमें लगभग 40 प्रतिशत तारे ऐसे हैं जिनके इर्द-गिर्द तश्तरी के रूप में बिखरे धूल कण एवं गैस के बादल मौजूद हैं। एमहर्स्ट स्थित मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय के खगोलविद स्टीफेन ई. स्ट्रॉम के अनुसार, चूंकि यह एक सामान्य निहारिका है, अत: इसके अधिकांश तारों के इर्द-गिर्द धूल कणों का तश्तरी की आकृति में सजना एक सामान्य घटना है। ओ’डेल का विश्वास है कि ओरायन निहारिका के अधिकांश तारों के इर्द-गिर्द ग्रह निर्माण के लिए आवश्यक पदार्थ मौजूद है। अत: किसी दिन इनके चारों और उसी प्रकार ग्रहों का निर्माण होगा जिस प्रकार हमारे सौर मंडल में हुआ था।
विगत वर्षों में खगोल वैज्ञानिकों को ऐसे संकेत प्राप्त हुए हैं जिनसे पता चलता है कि ग्रह निर्माण सम्बंधी उनका सिद्धांत सही है जिसके अनुसार सौर मंडल के ग्रहों का निर्माण उन कणों के आपस में संगठित होने से हुआ है जो सूर्य के चारों ओर उपस्थित तश्तरीनुमा बादल में मौजूद थे। इस बादल में उपस्थित गैस एवं कण ग्रहीय घूर्णन के नियम के अनुसार भ्रमण करते थे। इस प्रकार की तश्तरियों की उपस्थिति के प्रमाण अभी तक सिर्फ चार तारों के इर्द-गिर्द पाए गए थे। ये चार तारे हैं- 1. बीटा पिक्टोरिस 2. अल्फा लाइरी 3. अल्फा पायसिस ऑस्ट्रीनी, तथा 4. एप्सिलॉन एरिजनी। ये तारे ओरायन निहारिका में देखे गए तारों से पुराने हैं। बीटा पिक्टोरिस के चारों ओर उपस्थित पदार्थ के कण गिट्टियों के आकार के हैं।
हालांकि समय-समय पर कई वैज्ञानिकों ने अन्य तारों के आसपास ग्रहों की उपस्थिति के सम्बंध में अटकलें लगाई हैं, परन्तु उनकी पुष्टि नहीं हो पाई थी। अपने सौर मंडल के अतिरिक्त सिर्फ एक ग्रह मंडल की उपस्थिति के सम्बंध में कुछ स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। कुछ समय पूर्व कुछ रेडियो खगोलविदों ने घोषणा की थी कि एक नष्ट होते हुए तारे से उत्पन्न रेडियो तरंगों के विचलन के अध्ययन के आधार पर उस तारे के आसपास दो-तीन ग्रहों की उपस्थिति की पुष्टि होती है। ये ग्रह उपरोक्त नष्टप्राय तारे के अवशेष के चारों ओर चक्कर लगा रहे हैं। इस प्रकार के अवशिष्ट तारे को न्यूट्रॉन तारा या पल्सर कहा जाता है। यदि ये घूमते हुए पदार्थ सचमुच ग्रह हैं तो वैज्ञानिकों के अनुसार इन पर जीवन की उपस्थिति की संभावना बिलकुल नगण्य है।
हबल द्वारा लिए गए चित्रों से पता चलता है कि जिस आदिम बादल से तारे बन रहे हैं उसमें उच्च शक्ति वाले बड़े-बड़े बवंडर एवं भंवर मौजूद हैं। कुछ चित्रों से पता चलता है कि कणों की आंधी के कारण गैस पराध्वनि वेग से परों के गुच्छों की आकृति में खिंचा चला जा रहा है। निकट के गर्म तारे से प्राप्त विकिरण के कारण तारे की तश्तरी की सतह पर उपस्थित पदार्थ उबलने लगता है। परन्तु तश्तरी की सतह पर उठने वाली कणों की आंधी के कारण उबला हुआ पदार्थ पुन: धूमकेतु की पूंछ के समान वापस खिंच जाता है।
ग्रीष्म ऋतु में आकाश गंगा में एक हल्का नीला तारा दिखाई पड़ता है जिसका नाम है वेगा। यह तारा हमारी आकाश गंगा के दक्षिणी भाग में स्थित है। कुछ समय पूर्व किए गए अध्ययनों से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य प्रकाश में आए हैं। इन्फ्रारेड खगोलीय उपग्रह द्वारा किए गए अध्ययनों से पता चला है कि वेगा के चारों ओर एक घेरा मौजूद है। खगोलविदों के अनुसार चट्टानों से निर्मित यह घेरा लगभग वैसा ही है जैसा हमारा सौर मंडल अपने विकास के प्रारम्भिक काल में था। कहने का तात्पर्य यह है कि वेगा के आसपास में उन क्रियाओं के संकेत मिले हैं जो हमारे सौर मंडल के आरम्भिक काल में आज से लगभग साढ़े चार अरब वर्ष पूर्व हुई थी। इन्हीं क्रियाओं के फलस्वरूप हमारे सौर मंडल का जन्म हुआ था। इन क्रियाओं का महत्व इसलिए और भी अधिक है क्योंकि ये एक ऐसे तारे में घटित हो रही हैं जो हमसे केवल 27 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है।
अध्ययनों से पता चला है कि वेगा सूर्य से लगभग दुगना गर्म और लगभग 60 गुना अधिक प्रकाशमान है। यही कारण है कि खगोल शास्त्री इस तारे को एक मानक के रूप में लेते हैं। सन 1983 में पता चला कि वेगा सामान्य की अपेक्षा अधिक विकिरण उत्सर्जित करता है। शुरू-शुरू में वैज्ञानिकों ने समझा कि ये विकिरण वेगा के पीछे स्थित किसी निहारिका से आ रहे हैं। परंतु कुछ समय बाद अध्ययनों से मालूम हुआ कि वेगा एक घेरे में घिरा हुआ है। इस घेरे का तापमान 150 डिग्री सेल्सियस है और व्यास है 24 अरब किलोमीटर है। हमारे सौर मंडल का व्यास सिर्फ 12 अरब किलोमीटर है। अपने आसपास के धूल कणों को वेगा ने काफी पहले ही अपनी ओर आकर्षित कर लिया था। खगोलविदों द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार वेगा की आयु अधिक से अधिक एक अरब वर्ष होनी चाहिए। अर्थात् वह एक नया तारा है। इसी कारण खगोलविद मानते हैं कि वेगा के चारों ओर का घेरा एक ग्रहीय प्रणाली है जो अभी विकास के प्रथम चरण में है। संसार भर के खगोल विज्ञानी ब्रह्माण्ड के अध्ययन में निरन्तर लगे हुए हैं। आशा है कि इन अध्ययनों के आधार पर ब्रह्माण्ड के विभिन्न क्षेत्रों में ऐसे तारों का पता लगाया जाएगा जिनके सूर्य के समान ही अपने-अपने ग्रहमंडल मौजूद हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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