हाल ही में इस बात का अध्ययन किया गया कि चूहे डर पर कैसे काबू पाते हैं और इस अध्ययन ने उनकी आंत और दिमाग के बीच के रहस्यमय सम्बंध पर नई रोशनी डाली है।
इस शोध के लिए एक पारंपरिक पावलोवियन परीक्षण का उपयोग किया गया। इस परीक्षण में चूहे के पैर में बिजली झटका देते हुए उन्हें एक आवाज़ सुनाई जाती है। जल्द ही वे इस आवाज़ का सम्बंध दर्द से जोड़ना सीख जाते हैं। बाद में ऐसा शोर सुनते ही वे झटके से बचने की कोशिश करते हैं। लेकिन यह ज़्यादा समय तक नहीं चलता। यदि कई बार वह आवाज़ सुनाने के बाद झटका नहीं लगता तो वे इस सम्बंध को भूल जाते हैं। भूलने की यह प्रक्रिया इंसानों में भी महत्वपूर्ण होती है लेकिन सतत दुश्चिंता या हादसा-उपरांत तनाव समस्या से ग्रस्त व्यक्तियों में यह प्रक्रिया गड़बड़ा जाती है।
वील कॉर्नेल मेडिसिन के सूक्ष्मजीव वैज्ञानिक डेविड आर्टिस ने सोचा कि कहीं सीखने और भूलने की इस प्रक्रिया में आंत के बैक्टीरिया की कोई भूमिका तो नहीं है। उनकी टीम ने कुछ चूहों को एंटीबायोटिक देकर आंत का सूक्ष्मजीव संसार (माइक्रोबायोम) पूरी तरह नष्ट कर दिया। इसके बाद उन्होंने कई बार शोर के साथ झटके दिए। नेचर में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार सभी चूहों ने शोर को दर्द से जोड़ना सीख लिया। वे सिर्फ वह शोर सुनकर सहम जाते थे। लेकिन यह जुड़ाव सदा के लिए नहीं रहा। सामान्य माइक्रोबायोम वाले चूहे अंतत: शोर और बिजली के झटके का सम्बंध भूल गए। तीन दिन के बाद ऐसे अधिकांश चूहों ने उस शोर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। दूसरी ओर, एंटीबायोटिक से उपचारित चूहे प्रतिक्रिया देते रहे। अर्थात सूक्ष्मजीव संसार से मुक्त चूहे उस शोर और बिजली के झटके के सम्बंध को भुला नहीं पाए थे।
इसके आगे के प्रयोगों में वैज्ञानिकों ने चूहों का विच्छेदन करके उनके मस्तिष्क की एक-एक कोशिका में जीन गतिविधि और कोशिका के आकार का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि सामान्य और एंटीबायोटिक उपचारित चूहों के मस्तिष्क के मीडियल प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स नामक हिस्से में अंतर हैं। इस भाग का सीखने और याद रखने वाला क्षेत्र इसमें महत्वपूर्ण पाया गया। शोधकर्ताओं की रिपोर्ट के अनुसार सीखने-भूलने की प्रक्रिया में प्रमुख भूमिका उत्तेजक तंत्रिकाओं की है। आंत के सूक्ष्मजीवों की अनुपस्थिति में ये तंत्रिकाएं सतह पर कांटे बनाने और वापिस सोखने में विफल रहीं। इन कांटों का बनना और सोखा जाना सीखने और भूलने की क्रिया की बुनियाद है।
इसके अलावा टीम ने सूक्ष्मजीवों द्वारा उत्पादित चार ऐसे रसायनों की मात्रा में भी पर्याप्त बदलाव देखा जो मस्तिष्क के भय को भुलाने वाले हिस्से को सलामत रखते हैं। सूक्ष्मजीव रहित चूहों ने कम मात्रा में ये रसायन बनाए। डेविड के अनुसार इन चार में से दो रसायन तंत्रिका-मनोरोगों से जुड़े हैं। इससे लगता है कि इन रोगों का सम्बंध आंतों के सूक्ष्मजीवों से हो सकता है। अगला कदम यह सिद्ध करने का होगा कि वास्तव में ये रसायन चूहों के मस्तिष्क में बदलाव लाते हैं। यह देखना भी उपयोगी होगा कि इनमें से कौन से सूक्ष्मजीव इस समस्या के मूल में हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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