खाना पकाने में ठोस ईंधन बनाम एलपीजी – आदित्य चुनेकर, श्वेता कुलकर्णी

प्रयास (ऊर्जा समूह) ने उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के 3000घरों में बिजली के अंतिम उपयोग के पैटर्न को समझने के लिए फरवरी-मार्च 2019में एक सर्वेक्षण किया था। यहां उस सर्वेक्षण के आधार पर प्रकाश व्यवस्था के बदलते परिदृश्य की चर्चा की गई है। इस शृंखला में आगे बिजली के अन्य उपयोगों पर चर्चा की जाएगी।

भारत खाना पकाना घर की सबसे बुनियादी उर्जा ज़रूरतों में से एक है। वर्ष 2011 में, भारत में लगभग 70 प्रतिशत घरों में खाना पकाने के लिए ठोस र्इंधन का उपयोग किया जाता था। एक अनुमान के मुताबिक 2015 में ठोस ईंधन के उपयोग से घरों में अंदरूनी वायु प्रदूषण के कारण लगभग 1 लाख लोगों की मृत्यु हुई जिसमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे थे।

ठोस ईंधन के उपयोग को कम करने के लिए सब्सिडी वाले निर्धूम चूल्हों से लेकर एलपीजी कनेक्शन देने तक कई कदम उठाए गए हैं। सबसे हालिया कार्यक्रम प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के तहत 2016 से 2019 के बीच गरीब परिवारों को 8 करोड़ मुफ्त एलपीजी कनेक्शन प्रदान किए जा चुके हैं।

हमारे सर्वेक्षण के निष्कर्षों से पता चलता है कि दोनों राज्यों में एलपीजी का स्वामित्व काफी अधिक है। उत्तर प्रदेश में लगभग 91 प्रतिशत और महाराष्ट्र में लगभग 96 प्रतिशत सर्वेक्षित घरों में  एलपीजी कनेक्शन मौजूद हैं। उत्तर प्रदेश की तुलना में महाराष्ट्र के घरों में काफी लंबे समय से एलपीजी का उपयोग किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश के लगभग 19 प्रतिशत और महाराष्ट्र के मात्र 2 प्रतिशत सर्वेक्षित परिवारों ने 2016 में उज्ज्वला कार्यक्रम शुरू होने के बाद एलपीजी कनेक्शन लिए हैं। इसलिए, हमारे सर्वेक्षण में उज्ज्वला लाभार्थियों का हिस्सा काफी कम है।

दोनों राज्यों में खाना पकाने के लिए एलपीजी का वास्तविक उपयोग भी काफी अधिक दिखा। उत्तर प्रदेश में लगभग 67 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 95 प्रतिशत परिवार अधिकांश खाना पकाने के लिए एलपीजी का उपयोग करते हैं। यह विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के लिए काफी सराहनीय परिवर्तन है जहां एलपीजी कनेक्शन अपेक्षाकृत हाल ही में लगे हैं।

बहरहाल, ठोस ईंधन का उपयोग पूरी तरह से बंद नहीं हुआ है। कई अध्ययनों से पता चला है कि ज़्यादातर घरों में कई तरह के ईंधन का उपयोग किया जा रहा है। कारण यह है कि एलपीजी सिलेंडर महंगे हैं और आसानी से उपलब्ध नहीं होते। यह हमारे सर्वेक्षण में भी देखा गया है। उत्तर प्रदेश के 45 प्रतिशत और महाराष्ट्र के 12 प्रतिशत सर्वेक्षित घरों में अभी भी खाना पकाने या उसके कुछ भाग के लिए ठोस ईंधन का उपयोग किया जाता है। उत्तर प्रदेश में ठोस ईंधन का उपयोग करने वाले लगभग 82 प्रतिशत घरों में एलपीजी कनेक्शन मौजूद हैं। कम आय वाले घरों में 41 प्रतिशत ऐसे परिवार हैं जहां एलपीजी कनेक्शन होने के बाद भी खाना पकाने के लिए अधिकतर ठोस ईंधन का उपयोग किया जाता है। शेष 24 प्रतिशत खाना पकाने के लिए केवल ठोस र्इंधन का उपयोग करते हैं। उत्तर प्रदेश के अन्य आय वर्ग के परिवार एलपीजी का उच्च उपयोग करने लगे हैं। अर्ध-शहरी क्षेत्रों के मध्य और उच्च आय वर्ग के 80-90 प्रतिशत परिवार अधिकांश खाना एलपीजी पर पकाते हैं। महाराष्ट्र में भी स्थिति लगभग ऐसी ही है जहां सभी आय वर्गों और अर्ध-शहरी/ग्रामीण क्षेत्रों के 90 प्रतिशत से अधिक परिवार अधिकांश खाना पकाने के लिए एलपीजी का उपयोग करते हैं।

एलपीजी सिलेंडर रीफिल करवाने की संख्या खाना पकाने के लिए एलपीजी के उपयोग का एक और संकेतक है। उत्तर प्रदेश में, यह संख्या इस बात पर निर्भर करती है कि परिवार सिर्फ एलपीजी का उपयोग करता है या एलपीजी और किसी अन्य ईंधन का मिला-जुला उपयोग करता है और इस बात पर भी निर्भर करती है कि परिवार ग्रामीण है या अर्ध-शहरी। खाना पकाने के लिए मात्र एलपीजी का उपयोग करने वाले परिवार औसतन साल भर में 9 बार सिलेंडर रीफिल कराते हैं। रीफिल करने की यह संख्या उन परिवारों की तुलना में दोगुनी है जो एलपीजी कनेक्शन होने के बाद भी अधिकांश खाना ठोस ईंधन पर पकाते हैं। अर्ध-शहरी क्षेत्रों के परिवार ग्रामीण परिवारों की तुलना में सालाना एक सिलेंडर अधिक उपयोग करते हैं। यह संख्या महाराष्ट्र में भी लगभग ऐसी ही है जहां ग्रामीण और अर्ध-शहरी दोनों तरह के परिवार औसतन हर साल 9 बार सिलेंडर रीफिल करवाते हैं (रेंज 7 से 9.5 के बीच है)।

यहां दो बिंदुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है। पहला, उत्तर प्रदेश के परिवार (प्रति परिवार 6.9 व्यक्ति) महाराष्ट्र के परिवारों (प्रति परिवार 4.7 व्यक्ति) की तुलना में काफी बड़े हैं। दूसरा, जहां महाराष्ट्र में 31 प्रतिशत परिवार नहाने का पानी गर्म करने के लिए एलपीजी का उपयोग करते हैं वहीं उत्तर प्रदेश में यह संख्या 13 प्रतिशत है। अगली कड़ी में हम पानी गर्म करने से सम्बंधित मुद्दों पर चर्चा करेंगे। एलपीजी की वास्तविक आवश्यकता और खाना पकाने के लिए इसके उपयोग पर इन कारकों के असर की जांच ज़रूरी है।

हमने परिवारों से यह भी पूछा कि वे ठोस ईंधन का उपयोग जारी क्यों रखे हुए हैं। दोनों राज्यों में बिना एलपीजी कनेक्शन वाले परिवारों की संख्या 10 प्रतिशत से कम है। ये मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के निम्न आय वाले परिवार हैं। इनमें से आधे परिवारों ने एलपीजी के महंगे होने का कारण बताया तो शेष आधों ने एलपीजी गैस की अनुपलब्धता की बात कही। उत्तर प्रदेश के 70 प्रतिशत और महाराष्ट्र के 67 प्रतिशत बिना एलपीजी कनेक्शन वाले परिवारों ने उज्ज्वला कार्यक्रम के बारे में सुना है।

एलपीजी कनेक्शन वाले ऐसे परिवार जो खाना पकाने के लिए इसका अधिक उपयोग नहीं करते उनका कारण कुछ अलग ही है। इनमें से अधिकतर परिवार उत्तर प्रदेश के हैं। इनमें से लगभग 55 प्रतिशत परिवारों को खाना पकाने के लिए एलपीजी का उपयोग काफी महंगा लगता है। एलपीजी के उपयोग को महंगा बताने वाले लगभग 60 प्रतिशत परिवारों को सब्सिडी कभी नहीं या कभी-कभार मिली है। कुल मिलाकर, उत्तर प्रदेश के 54 प्रतिशत और महाराष्ट्र के 85 प्रतिशत सर्वेक्षित परिवारों को नियमित रूप से सब्सिडी प्राप्त हो रही है। इसके अलावा एलपीजी महंगा बताने वाले 60 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जिन्हें ठोस ईंधन मुफ्त में प्राप्त हो जाता है। इससे एलपीजी के महंगे होने की धारणा और मज़बूत होती है। इसके अलावा, एलपीजी कनेक्शन वाले 20 प्रतिशत परिवारों, जो ठोस र्इंधन का भी उपयोग करते हैं, ने महंगेपन और उपलब्धता के अलावा अन्य कारण बताए। सबसे आम कारण चूल्हे पर पके खाने का स्वाद पसंद होना है।

दोनों राज्यों में एलपीजी कनेक्शन का उच्च स्वामित्व खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन के उपयोग को खत्म करने की क्षमता रखता है, जिसके परिणामस्वरूप ठोस र्इंधन से स्वास्थ्य पर होने वाले प्रतिकूल प्रभाव भी कम होंगे। यह काफी उत्साहजनक है कि भले ही उत्तर प्रदेश के 60 प्रतिशत से अधिक परिवारों को 2010 के बाद एलपीजी कनेक्शन मिला हो, लेकिन ग्रामीण निम्न आय परिवारों को छोड़कर इन घरों में एलपीजी का उपयोग काफी अधिक है। फिर भी, इन घरों में एलपीजी के निरंतर उपयोग और उसे एकमात्र र्इंधन बनाने के लिए हस्तक्षेप की आवश्यकता है। चूंकि अधिकांश परिवारों में महंगा होने के कारण एलपीजी का उपयोग नहीं किया जा रहा है, इसलिए सब्सिडी की राशि और उसके वितरण को और अधिक प्रभावी बनाने की ज़रूरत है। एलपीजी को अपनाने में जेंडर, व्यवहार और सांस्कृतिक बाधाओं को संबोधित करने की भी आवश्यकता है। हो सकता है कि एलपीजी सभी घरों के लिए पसंदीदा या उपयुक्त विकल्प न हो, ऐसे में बिजली, बायोगैस और प्राकृतिक गैस जैसे अन्य स्वच्छ र्इंधनों का उपयोग किया जा सकता है। इनका उपयोग न के बराबर देखा गया। इनको अपनाने के लिए कार्यक्रम विकसित किए जा सकते हैं। हालांकि, महाराष्ट्र में अधिकांश घरों में खाना पकाने के लिए एलपीजी अपनाया गया है, फिर भी पानी गर्म करने के लिए ठोस ईंधन का उपयोग जारी है जिससे स्थानीय स्तर पर वायु प्रदूषण हो रहा है। अगले लेख में इस पर और चर्चा की जाएगी। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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