
अमूमन प्रतिरक्षा कोशिकाएं शरीर को संक्रमण से बचाने का काम करती हैं, लेकिन रेग्युलेटरी टी कोशिकाओं (ट्रेग्स) का काम एक तरह से सामंजस्य की स्थिति बनाए रखना होता है — ये सूजन कम करती हैं, घाव भरने में मदद करती हैं (immune system regulation) और प्रतिरक्षा तंत्र को स्वयं अपने शरीर के विरुद्ध काम करने से रोकती (autoimmune response control) हैं। और अब, वैज्ञानिकों ने पाया है कि कुछ ट्रेग्स कोशिकाएं दर्द भी कम कर सकती (pain modulation by Tregs) हैं, हालांकि यह असर केवल मादा चूहों में देखा गया है।
साइंस (science) पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ता यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि ट्रेग्स दर्द को कैसे प्रभावित करती हैं। उन्होंने मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को ढंकने वाली सुरक्षा झिल्लियों (मेनिन्जेस)( meninges Tregs study) में मौजूद ट्रेग्स पर ध्यान दिया, जहां ये कोशिकाएं सामान्य से कहीं ज़्यादा पाई जाती हैं।
परीक्षण के लिए उन्होंने ऐसे चूहे तैयार किए जिनमें इन खास ट्रेग्स को एक बैक्टीरिया विष के माध्यम से खत्म किया जा सकता था। जब मादा चूहों से ट्रेग्स हटाईं गईं, तो उनकी यांत्रिक दर्द (जैसे दबाने या छूने से होने वाला दर्द) (mechanical pain sensitivity) के प्रति संवेदनशीलता बढ़ गई। लेकिन नर चूहों में ऐसा कोई असर नहीं देखा गया। हालांकि ट्रेग्स ने गर्मी या ठंड से जुड़ी दर्द की संवेदनशीलता (thermal pain response) पर कोई असर नहीं डाला – न मादा में और न ही नर में।
दिलचस्प बात यह है कि जब वैज्ञानिकों ने IL-2 नामक एक प्रोटीन के ज़रिए ट्रेग्स कोशिकाओं की संख्या बढ़ाई तो चोटिल मादा चूहों में दर्द पर प्रतिक्रिया बेहतर हो गई – यानी दर्द कम महसूस हुआ (IL-2 Treg pain relief)। लेकिन जब मादा हार्मोन (जैसे एस्ट्रोजन) को बाधित कर दिया गया अथवा अंडाशय को हटा दिया गया तो IL-2 का असर नहीं हुआ। इससे साफ है कि ट्रेग्स कोशिकाएं दर्द से राहत देने का अपना काम मादा हार्मोन, खास तौर पर एस्ट्रोजन (estrogen and pain regulation), की मदद से करती हैं।
इतना ही नहीं, ट्रेग्स कोशिकाएं दर्द कम करने के लिए सिर्फ सूजन रोकने के ज़रिए काम नहीं करतीं बल्कि सीधे तंत्रिका कोशिकाओं पर असर डालती हैं (Tregs direct neuron effect)। ये एंकेफेलिन्स नामक प्राकृतिक दर्दनाशक अणु छोड़ती (natural painkillers enkephalins) हैं, जो तंत्रिका कोशिकाओं के दर्दरोधी ग्राहियों को सक्रिय करके दर्द की तीव्रता कम कर देते हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि महिलाओं और जेंडर पुष्टि देखभाल (जेंडर अफर्मिंग केयर) ले रहे लोगों के लिए दर्द की समस्या ज़्यादा होती है (pain management in gender-affirming care)। उनके संदर्भ में यह खोज महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। कई शोधकर्ता आत्म-प्रतिरक्षा रोगों के लिए ट्रेग कोशिकाओं की संख्या बढ़ाने पर कार्य कर रहे हैं। उसमें दर्द प्रबंधन के दृष्टिकोण को जोड़ना मददगार हो सकता है (Treg therapy for autoimmune diseases)।
अलबत्ता, इस राह में कई चुनौतियां हैं – मनुष्यों के मस्तिष्क और रीढ़ की झिल्ली तक ट्रेग्स को सही-सलामत पहुंचाना आसान नहीं होगा (Treg delivery challenges in humans)। लेकिन ऐसा लगता है कि आत्म-प्रतिरक्षा रोगों के इलाज में इस्तेमाल हो रहा प्रतिरक्षा-वृद्धि उपचार इस राह को आसान कर सकता है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.zwu1935/full/_20250403_on_pain_in_mice_lede-1743709754117.jpg