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2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष साबित हुआ, जिसमें वैश्विक तापमान (global temperature) औद्योगिक-पूर्व स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पार कर चुका है। ऐसे में जलवायु परिवर्तन (climate change) के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों (health effects) को अनदेखा करना मुश्किल हो गया है। इसमें लू लगने (heatstroke) से मृत्यु जैसे तुरंत दिखने वाले प्रभावों का तो पता चल जाता है लेकिन दीर्घकालिक संचयी नुकसान (long-term health impact) पर कम ही ध्यान दिया जाता है। जलवायु में हो रहे तेज़ी से बदलाव (climate crisis) को देखते हुए इस मुद्दे पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है।
लंबे समय तक ग्रीष्म लहर (heatwave) और सूखे (drought) के प्रभाव से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं (severe health issues) हो सकती हैं। बार-बार डीहाइड्रेशन (dehydration) और इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन (electrolyte imbalance) से किडनी की जीर्ण बीमारियां (chronic kidney disease) हो सकती हैं। लगातार गर्म रातों (hot nights) के कारण नींद की कमी (sleep deprivation) से मानसिक क्षमता घटती है, रोग प्रतिरोधक क्षमता (immune system) कमज़ोर होती है और शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य (mental health) प्रभावित होता है। यह खतरा गर्भ में पल रहे बच्चों (fetal health risks) को भी हो सकता है। गर्भावस्था (pregnancy) के दौरान ग्रीष्म लहर जैसी पर्यावरणीय चुनौतियां (environmental stress) गर्भस्थ शिशु के विकास (fetal development) को प्रभावित कर सकती हैं और लंबे समय के उनके स्वास्थ्य पर असर डाल सकती हैं।
देखा जाए तो, जलवायु परिवर्तन (climate change impact) के दबाव जीन अभिव्यक्ति (gene expression) तक को प्रभावित कर सकते हैं। शोध बताते हैं कि जो बच्चे गर्भ में गर्म और शुष्क परिस्थितियों (extreme heat exposure) के संपर्क में आते हैं, उनमें वयस्क होने पर उच्च रक्तचाप (high blood pressure) की संभावना अधिक होती है।
कुल मिलाकर, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव (climate change effects) गहरे और दूरगामी हो सकते हैं।
इन खतरों के बावजूद, वर्तमान जलवायु आकलन (climate assessment) स्वास्थ्य पर पूरे प्रभाव (public health impact) को सही ढंग से मापने में असफल रहे हैं। वास्तव में वर्षों में विकसित होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं (long-term diseases) को मापना मुश्किल होता है। असंगत स्वास्थ्य डैटा (inconsistent health data) के कारण लंबे समय तक स्वास्थ्य जोखिमों (health risks) को ट्रैक करना काफी जटिल कार्य है। उदाहरण के लिए, हम यह तो समझते हैं कि गर्मी (extreme heat) शरीर को कैसे प्रभावित करती है, लेकिन यह अलग-अलग लोगों को दीर्घावधि में किस तरह प्रभावित करती है, इसे ट्रैक करना अब भी एक चुनौती बना हुआ है।
इस अंतर को पाटने के लिए, शोधकर्ताओं (researchers) और जन स्वास्थ्य अधिकारियों (public health officials) को जलवायु प्रभाव (climate impact studies) से जुड़े अध्ययनों का दायरा बढ़ाना होगा। उपलब्ध साक्ष्य (scientific evidence) बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली बीमारियों (climate-related diseases) और मौतों का बोझ मौजूदा अंदाज़ों से कहीं अधिक है। इसलिए, बेहतर स्वास्थ्य डैटा (health data) और दीर्घकालिक प्रभावों (long-term impact) का अध्ययन करना बेहद ज़रूरी है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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