पिछले दो दशकों में पृथ्वी के सौर ऊर्जा संतुलन (Earth’s solar energy balance) में एक चिंताजनक प्रवृत्ति देखी गई है: ग्रह पर जितनी ऊर्जा आ रही है, उससे कम बाहर जा रही है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (greenhouse gas emissions) इसका एक प्रमुख कारण है लेकिन वैज्ञानिक इस असंतुलन को पूरी तरह समझने के लिए काफी समय से प्रयास करते आए हैं। बर्फ के पिघलने की वजह से उनके नीचे की गर्मी सोखने वाली सतहों (heat-absorbing surfaces) के बढ़ने और वायुमंडलीय प्रदूषण (atmospheric pollution) के घटने ने भी इसमें योगदान दिया है।
हाल ही में इसमें एक संभावित कड़ी सामने आई है: घटते बादल (declining clouds)। नासा के गोडार्ड इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज़ (NASA Goddard Institute for Space Studies) के जॉर्ज सेलियोडिस के नेतृत्व में हुए शोध में पाया गया है कि पिछले 20 वर्षों में परावर्तक बादलों (reflective clouds) की मात्रा में कमी आई है, जिससे पृथ्वी की सतह पर सूर्य की किरणें अधिक पहुंच रही हैं। सेलियोडिस को पूरा यकीन है कि नासा के टेरा उपग्रह (NASA Terra satellite) द्वारा दर्ज की गई इस मामूली लेकिन उल्लेखनीय कमी ने वैश्विक तापमान में अधिक वृद्धि की है।
गौरतलब है कि बादल सूर्य की किरणों को अंतरिक्ष में परावर्तित करके पृथ्वी के तापमान (Earth’s temperature) को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। ये बादल मुख्य रूप से भूमध्य रेखा के आसपास और मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों (mid-latitude regions) में बनते हैं, जहां तूफानी प्रणालियां (storm systems) हावी रहती हैं।
पिछले 35 वर्षों में उपग्रह तस्वीरों (satellite imagery) से पता चला है कि भूमध्य रेखा के आसपास के बादल के पट्टे (cloud belts) सिकुड़ रहे हैं और मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में तूफान के मार्ग ध्रुवों की ओर खिसक रहे हैं – बादलों की मात्रा में हर दशक में 1.5 प्रतिशत की कमी हो रही है। यह कमी भले ही मामूली दिखती है लेकिन इसका संचयी प्रभाव (cumulative impact) बहुत गंभीर है और यह जलवायु परिवर्तन (climate change) को और तेज़ करने वाले चक्रों को जन्म दे सकता है।
सेलियोडिस के अनुसार, परावर्तनीयता (reflectivity) में 80 प्रतिशत बदलाव बादलों के संकुचन (cloud contraction) के कारण है, न कि बादलों की प्रकृति कम परावर्तक होने की वजह से।
वैसे, यही जलवायु मॉडल (climate model) कुछ अन्य संकेत भी देता है। जैसे ग्लोबल वार्मिंग से, खासकर प्रशांत महासागर के ऊपर बड़े पैमाने पर वायु संचरण (air circulation) कमज़ोर हो सकता है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में पूर्वी प्रशांत ठंडा हुआ है जिसके चलते हवाएं अस्थायी रूप से बलवती हुई हैं। इन विविध पैटर्न (weather patterns) के चलते स्थिति का विश्लेषण मुश्किल हुआ है।
बादलों के घटने से जलवायु परिवर्तन में तेज़ी (accelerated climate change) आने का खतरा है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो इससे एक दुष्चक्र शुरू हो सकता है: उच्च तापमान (high temperatures) के कारण बादल आवरण कम होगा जिससे गर्मी और अधिक बढ़ेगी।
हालांकि घटते बादल परस्पर सम्बंधित कई कारणों का केवल एक हिस्सा है। उत्तरी गोलार्ध में प्रदूषण में कमी की भी एक भूमिका हो सकती है। अलबत्ता, संदेश साफ है: पृथ्वी के बादल और उनकी भूमिका में बदलाव हो रहे हैं, जिसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं।
ये परिणाम एक चेतावनी देते हैं। बादलों के घटने के कारणों की व्याख्या और समाधान, वैश्विक तापमान (global temperature impact) पर उनके प्रभाव को कम करने के लिए आवश्यक है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.zjx05g8/abs/_20241219_on_itcz.jpg