वृक्षों का पलायन: हिमालय के पारिस्थितिक तंत्र में बदलाव

हालिया समय में भव्य हिमालय (The Himalayas) पर्वत एक मौन लेकिन महत्वपूर्ण बदलाव के साक्षी बन रहे हैं। नेचर प्लांट्स में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण इस क्षेत्र के वृक्षों की सीमा में परिवर्तन हो रहा है, जिससे इसके नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) का संतुलन प्रभावित हो रहा है। यह बदलाव केवल पेड़ों पर नहीं, बल्कि वन्यजीवों, चारागाहों और स्थानीय समुदायों की आजीविका पर भी असर डाल सकता है।

सदियों से, हिमालय के मध्य क्षेत्र में चट्टानी इलाकों पर भोजपत्र (Betula utilis) के पेड़ों का दबदबा रहा है, जबकि ऊंचे इलाकों में देवदार (Abies spectabilis) के पेड़ सह-अस्तित्व में रहे हैं। लेकिन हालिया डैटा से पता चला है कि देवदार के पेड़ धीरे-धीरे भोजपत्र पर हावी हो रहे हैं। हिमालय में वैश्विक औसत से अधिक गति से बढ़ रहे तापमान और सूखे की बढ़ती स्थिति ने देवदार के पेड़ों को भोजपत्र की तुलना में तेज़ी से फैलने का मौका दिया है। देवदार के पेड़ हर साल 11 सेंटीमीटर ऊंचे स्थानों तक फैल रहे हैं, जो भोजपत्र की गति से लगभग दुगना है। यह अंतर तापमान (temperature) में और अधिक वृद्धि के साथ तेज़ हो सकता है।

शोधकर्ताओं ने माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) और अन्नपूर्णा संरक्षण क्षेत्र (Annapurna conservation area) के पास के जंगलों का अध्ययन किया, जिसमें उन्होंने 700 से अधिक पेड़ों की उम्र और वृद्धि के पैटर्न को ट्रैक करने के लिए ट्री कोर सैंपलिंग (tree core sampling) जैसी तकनीकों का उपयोग किया। उनके निष्कर्ष बताते हैं कि भोजपत्र के पेड़ों का प्रजनन 1920 से 1970 के बीच अपने चरम पर था, लेकिन इसके बाद इसमें गिरावट आई है। वहीं, देवदार के पेड़ वर्तमान गर्म होते माहौल में तेज़ी से फल-फूल रहे हैं। अनुमान है कि 2100 तक, बदलते तापमान व जलवायु के विभिन्न परिदृश्यों में, देवदार के पेड़ ऊंचे इलाकों की ओर बढ़ते रहेंगे, जबकि भोजपत्र या तो स्थिर रहेंगे या कम हो सकते हैं। 

शोधकर्ता बताते हैं कि इस परिवर्तन के दुष्परिणाम भी सामने आएंगे। बर्फीले तेंदुए (snow leopard) जैसे प्राणियों को शिकार के लिए खुले स्थानों की ज़रूरत होती है। जंगल का विस्तार इनके प्राकृतवासों (habitat) को घटा रहा है। साथ ही, स्थानीय पशुपालकों के लिए आवश्यक चारागाहों (grazing land) पर पेड़ अतिक्रमण कर रहे हैं। लंगटांग घाटी जैसे क्षेत्रों में, स्थानीय लोग याक और भेड़ों के लिए ज़मीन वापस पाने के लिए पेड़ों को काट रहे हैं।

विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसे अध्ययन जंगल प्रबंधकों और स्थानीय समुदायों को इन बदलावों का अनुमान लगाने और उनके अनुसार खुद को ढालने में मदद करते हैं। यह शोध जलवायु परिवर्तन और इसके प्रकृति व मानवता पर पड़ने वाले प्रभावों को संभालने की ज़रूरत को रेखांकित करता है और हमें याद दिलाता है कि पारिस्थितिकी तंत्र के घटक परस्पर जुड़े हुए हैं और इन ऊंचे पहाड़ों में जीवन को बनाए रखने के लिए इनका संतुलन कितना महत्वपूर्ण है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.zx71z14/full/_20241206_on_himalaya_forest-1734125023083.jpg

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