गायत्री शर्मा
भारत की बड़ी आबादी सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर निर्भर है। देश में 60 प्रतिशत से अधिक स्वास्थ्य सम्बंधी खर्च रोगियों को खुद वहन करना पड़ता है, जिससे हर साल लाखों लोग गरीबी में धकेल दिए जाते हैं। चिकित्सा प्रतिष्ठान (पंजीयन और विनियमन) अधिनियम, 2010 और इसके तहत 2012 में बने नियम निजी स्वास्थ्य सेवाओं की दरों (private healthcare costs) को नियंत्रित करने का ढांचा प्रदान करते हैं, लेकिन यह अब तक प्रभावी रूप से लागू नहीं हो सका है।
102 डॉक्टरों, स्वास्थ्य पेशेवरों और जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भारत में निजी स्वास्थ्य सेवाओं की लागत (healthcare expenses in India) को नियंत्रित करने और रोगियों के अधिकारों (patients’ rights) को लागू करने की मांग की है। फोरम फॉर इक्विटी इन हेल्थ (Forum for Equity in Health) द्वारा समर्थित विशेषज्ञों की इस अपील में स्वास्थ्य सेवाओं की उचित, पारदर्शी और मानकीकृत दरें (standardized healthcare rates) तय करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है ताकि रोगियों पर आर्थिक बोझ कम किया जा सके।
यह अपील जन स्वास्थ्य अभियान (Jan Swasthya Abhiyan) द्वारा सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) में दायर एक जनहित याचिका का समर्थन करती है, जिसमें केंद्र सरकार से 2012 के चिकित्सा प्रतिष्ठान अधिनियम के नियम 9 के तहत निजी स्वास्थ्य सेवाओं की दरों को विनियमित (regulate healthcare pricing) करने की मांग की गई है। इस कानूनी बहस में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने मौजूदा नियमों को लागू करने की मांग की है, जिसका व्यावसायिक निजी स्वास्थ्य सेवा समूहों (private healthcare groups) द्वारा कड़ा विरोध किया जा रहा है।
कार्रवाई के इस आव्हान से एक कड़वी सच्चाई सामने आती है: सरकारी स्वास्थ्य ढांचे की कमी के कारण देश की बड़ी आबादी को निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर निर्भर होना पड़ता है। निजी अस्पतालों में अत्यधिक और मनमाने शुल्क के कारण कई परिवार आर्थिक संकट में फंस जाते हैं और गरीबी में धकेल दिए जाते हैं।
इस अपील पर हस्ताक्षर करने वाले लोग भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र के विभिन्न तबकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक स्वास्थ्य सेवा (primary, secondary, tertiary care) संस्थानों के डॉक्टर, छोटे निजी क्लीनिक (small private clinics), बड़े कॉर्पोरेट अस्पताल (corporate hospitals), चैरिटेबल ट्रस्ट (charitable trusts) द्वारा संचालित अस्पताल और ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन शामिल हैं। हस्ताक्षरकर्ताओं में युवा पेशेवर, मध्यम अनुभव वाले विशेषज्ञ और दशकों के अनुभव वाले वरिष्ठ विशेषज्ञ शामिल हैं। यह सामूहिक आवाज़ दर्शाती है कि भारत के निजी स्वास्थ्य क्षेत्र में असमानताओं और विनियमन की कमी को दूर करने के लिए तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता है।
दरों का मानकीकरण
चिकित्सा प्रतिष्ठान (पंजीयन और विनियमन) अधिनियम, 2010 और इसके तहत 2012 में बने नियम निजी स्वास्थ्य सेवाओं को नियंत्रित करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करते हैं। लेकिन, (standardization of healthcare rates), न्यूनतम मानकों (minimum standards), और पारदर्शिता (transparency) जैसे प्रमुख पहलू अभी तक पूरी तरह लागू नहीं हो पाए हैं। यह स्थिति निजी अस्पतालों में अधिक शुल्क वसूलने की व्यापक प्रवृत्ति के बावजूद है, जो कोविड महामारी के दौरान उजागर हुई थी।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि दरों का मानकीकरण तकनीकी रूप से संभव है और इसे पहले ही सेंट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (CGHS) और आयुष्मान भारत (Ayushman Bharat) –प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना जैसी योजनाओं में सफलतापूर्वक लागू किया जा चुका है।
मसलन, CGHS देश भर में 1850 से अधिक चिकित्सा प्रक्रियाओं के लिए समान दरें तय करता है, जिससे लाखों सरकारी कर्मचारी और पेंशनभोगी लाभान्वित होते हैं। इसी तरह, आयुष्मान भारत के तहत 28,000 से अधिक अस्पताल सूचीबद्ध हैं, जो लगभग 2000 प्रक्रियाओं के लिए निश्चित दरों पर इलाज करते हैं। इन योजनाओं और जापान जैसे देशों की समान दर व्यवस्था से प्रेरणा लेते हुए, विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा ढांचा न सिर्फ संभव है बल्कि मनमाने और अत्यधिक शुल्क से मरीज़ों को बचाने के लिए आवश्यक भी है।
अनैतिक प्रथाएं और असमानता
इस अपील में निजी स्वास्थ्य सेवाओं में व्याप्त अनैतिक प्रथाओं (unethical practices in healthcare) , जैसे अधिक शुल्क वसूली (overbilling), रेफरल के लिए कमीशन (referral commissions) और मनमानी बिलिंग की समस्याओं को उजागर किया गया है। ये प्रथाएं रोगियों पर अतिरिक्त बोझ डालती हैं और ईमानदार चिकित्सकों के प्रयासों को कमज़ोर करती हैं। दरों के मानकीकरण से इन समस्याओं को दूर करके एक अधिक न्यायसंगत और पारदर्शी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। इससे ईमानदार निजी चिकित्सकों को बराबरी से प्रतिस्पर्धा का मौका मिलेगा और रोगियों पर वित्तीय बोझ भी कम होगा। मुख्य चिकित्सा प्रक्रियाओं के लिए उचित दर सुनिश्चित करके, इस क्षेत्र में अत्यधिक मुनाफाखोरी को रोका जा सकता है और रोगियों और चिकित्सकों के बीच विश्वास को मज़बूत किया जा सकता है।
आगे का रास्ता
फोरम फॉर इक्विटी इन हेल्थ और अन्य हस्ताक्षरकर्ता निम्नलिखित उपायों का सुझाव देते हैं:
1. रोगियों के अधिकारों का सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन और क्रियांवयन (patients’ rights charter): सभी चिकित्सा संस्थानों में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी रोगियों के अधिकारों का चार्टर स्थानीय भाषाओं में सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया जाना चाहिए।
2. पारदर्शी मूल्य निर्धारण (transparent pricing): स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को प्रमुख प्रक्रियाओं के लिए दरें अनिवार्य रूप से प्रदर्शित करनी चाहिए, ताकि रोगियों को सोच-समझकर निर्णय लेने में मदद मिल सके।
3. मुख्य प्रक्रियाओं की मानकीकृत लागत: प्रमुख चिकित्सा प्रक्रियाओं के लिए निश्चित दरें होनी चाहिए, ताकि अत्यधिक शुल्क वसूली को रोका जा सके। इसमें अतिरिक्त सुविधाओं या विशेष आवश्यकताओं के लिए लचीलापन रखा जा सकता है।
4. शिकायत निवारण प्रणाली (grievance redressal system): रोगियों की समस्याओं का तुरंत समाधान करने के लिए प्रभावी तंत्र स्थापित किए जाने चाहिए।
5. छोटे और गैर–मुनाफा संस्थानों का समर्थन: मानकीकरण प्रक्रिया को छोटे क्लीनिक्स, चैरिटेबल अस्पतालों और गैर-मुनाफा संगठनों के सामने आने वाली विशिष्ट चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए लागू किया जाना चाहिए।
देश भर के हस्ताक्षरकर्ताओं ने फिर से यह ज़ाहिर किया है कि स्वास्थ्य सेवा को एक सामाजिक कार्य के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि मुनाफा कमाने की वस्तु के रूप में। वे एक मज़बूत सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं जिसे निजी क्षेत्र पर प्रभावी नियम लागू करके बल मिले। यह अपील इस बात पर भी ज़ोर देती है कि स्वास्थ्य का संवैधानिक अधिकार तभी पूरा हो सकता है, जब निरंकुश निजी स्वास्थ्य सेवा प्रथाओं द्वारा उत्पन्न वित्तीय असमानताओं को हल किया जाए।
इस अपील का संदेश स्पष्ट है: स्वास्थ्य सेवा एक मौलिक अधिकार है, न कि कोई विशेषाधिकार। इसे साकार करने के लिए नीति निर्माताओं, न्यायपालिका, और समाज को निजी स्वास्थ्य सेवा लागतों को नियंत्रित करने, रोगियों के अधिकार चार्टर को लागू करने और सरकारी स्वास्थ्य अधोसंरचना को मज़बूत करने के लिए निर्णायक कदम उठाने होंगे।
अपील में यह भी कहा गया है: “समय आ गया है कि हम सरकारी स्वास्थ्य तंत्र को मज़बूत करें, निजी स्वास्थ्य सेवा प्रथाओं को नियंत्रित करें, और सुनिश्चित करें कि हर भारतीय को किफायती, समान और नैतिक चिकित्सा सेवा प्राप्त हो।”
मानकीकृत दरों को लागू करके और मरीज़ों के अधिकारों की रक्षा करके ही देश एक न्यायपूर्ण, समान और सुलभ स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की ओर बढ़ सकता है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://nivarana.org/article/standardized-rates-and-enforcement-of-patients-rights-in-indian-private-hospitals