आमोद कारखानिस
हम जगह-जगह पर कृत्रिम बुद्धि (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस – AI) के इस्तेमाल के बारे में सुनते रहते हैं। आम लोगों के लिए एआई का मतलब अधिकतर रोबोट होता है। लेकिन ऐसे कंप्यूटर प्रोग्राम्स (computer programs) का उपयोग बहुत अलग-अलग क्षेत्रों में किया जाता है जो खुद सीखते हैं और सीख-सीखकर खुद को बेहतर बनाते जाते हैं।
हाल ही में मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया में हुए 32वें एसोसिएशन फॉर कंप्यूटिंग मशीनरी (ACM) इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन मल्टीमीडिया में प्रस्तुत एक पेपर में इसी तरह के एक नए उपयोग के बारे बताया गया था। कंबोडिया स्थित बोरोबुदुर चण्डी काफी प्रसिद्ध और पूजनीय बौद्ध विहार है। (इंडोनेशिया की जावा भाषा में बौद्ध मंदिरों को चण्डी कहा जाता है।) 1900 में इस चण्डी के संरक्षण (restoration) के लिए बड़े पैमाने पर कार्यक्रम शुरू किया गया था। इस संरक्षण कार्य के दौरान मंदिर के आधार पर ऐसी कई फर्शियां मिलीं जिन पर (संभवत:) बुद्ध के जीवन या जातक कथाओं के दृश्यों की नक्काशी (carvings) थी। इन फर्शियों के ऊपर पड़े मलबे को हटाकर साफ किया गया। लेकिन सुरक्षा कारणों से लगा कि ऊपरी भवन को सहारा देने के लिए एक नई दीवार बना दी जाए। नई दीवार के पीछे एक बार फिर ये फर्शियां छिप गईं। लेकिन दीवार बनाने के पहले सभी नक्काशियों का दस्तावेज़ीकरण (documentation) कर लिया गया था और उनकी बहुत सारी तस्वीरें खींची गई थीं।
सौ साल से अधिक का समय बीतने के बाद अब इन नक्काशियों की स्थिति क्या होगी कोई नहीं जानता। इसलिए यह ख्याल आया कि उपलब्ध तस्वीरों के आधार पर फर्शियों पर उन नक्काशियों को फिर से बनाना (reconstruction) चाहिए। लेकिन किसी शिल्पकार (sculptor) के लिए इतनी बड़ी संख्या में इतने बारीक विवरणों से तराशी करना बहुत भारी काम है। तो क्या इस काम में कंप्यूटर (computers) मदद कर सकते हैं? क्या तस्वीरों से 3डी फर्शियां बनाना संभव है?
आजकल ड्राइंग सॉफ्टवेयर (drawing software) में सामान्यत: दो आयामी तस्वीर से कोई आउटलाइन बनाने की क्षमता होती है। यह काम सॉफ्टवेयर द्वारा इस बात को मानकर किया जाता है कि तस्वीर में जब भी अचानक रंग बदलेगा (या गाढ़ा या गहरा रंग आएगा) तो उसके लिए एक आउटलाइन बना दी जाएगी। लेकिन नक्काशी में गहराई कैसे तय की जाए?
ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरों में तो हम रंग का गाढ़ापन या गहरापन (डार्क) (darkness) देखकर दूरी या गहराई का अनुमान लगाते हैं। जो जगहें गाढ़े रंग की हैं वे अधिक गहराई में या नीचे की ओर हैं; और जो जगहें ऊपर की ओर हैं वहां अधिक रोशनी पड़ रही होगी और इसलिए वे अधिक उजली होंगी। इन नियमों के आधार पर काम करने वाले मौजूदा सॉफ्टवेयर ने चण्डी की फर्शियों की त्रि-आयामी रचना तो बना दी थीं, लेकिन इनमें फर्शियों की बारीक नक्काशियों या विवरणों (जैसे चेहरे पर आंखें और नाक) का अभाव था।
इसे बेहतर करने के लिए यह सुझाव दिया गया कि एक ऐसे एल्गोरिदम (algorithm) का उपयोग किया जाए जो उजले रंग से गहरे रंग में परिवर्तन की दर को ‘भांप’ सके। यह कुछ हद तक कंटूर मानचित्र (contour map) जैसा था, जिसका उपयोग भूगोलवेत्ता (geographers) करते हैं। यदि तीखी ढलान है तो कंटूर रेखाएं पास-पास आ जाएंगी। समाधान की ओर यह एक और कदम था लेकिन एक समस्या अब भी बनी हुई थी – चेहरे की हल्की गोलाइयों और सूक्ष्म विवरण को बनाने की। इसके समाधान के लिए शोधकर्ताओं ने यह देखना-समझना शुरू किया कि हम मनुष्य इसे कैसे समझते हैं। उदाहरण के लिए हो सकता है कि एक गोल चेहरे में और चेहरे की विशेषताओं के उजलेपन (या रंग) में बहुत अधिक अंतर न हो, लेकिन क्योंकि हम जानते हैं कि यह एक मूर्ति है इसलिए हम वे बारीकियां भांप लेते हैं।
कंप्यूटर के पास इस ज्ञान का अभाव होता है और वह केवल नियम से चल रहा होता है। यहीं से एआई का काम शुरू होता है। जापान के रित्सुमीकन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सातोशी तनाका की टीम ने कंप्यूटर को हल्की गोलाई को ‘समझने’ और उजलेपन में मामूली फर्क भी पहचानने के लायक बनाने के लिए न्यूरल नेटवर्क (neural network) का उपयोग किया। हाल ही में प्रकाशित शोधपत्र में इसके बारे में जानकारी और परिणाम दिए गए हैं।
यह एक दिलचस्प और महत्वपूर्ण उपलब्धि है। हमारे पास कई ऐतिहासिक स्थलों (historical sites) की कई ऐसी पुरानी मूर्तियों या नक्काशियों की तस्वीरें होतीं है जो अब मौसम और समय की मार के कारण जीर्ण-शीर्ण हो चुकी हैं। इस तकनीक (technology) की मदद से उन्हें पुर्नर्निमित कर सकने की आशा जगी है। हालांकि, फिलहाल इस सॉफ्टवेयर तकनीक का परीक्षण केवल नक्काशियों (उकेरन) को पुनर्निर्मित करने के लिए किया गया है, लेकिन भविष्य में इसका इस्तेमाल अन्य तरह से तराशी गई मूर्तियों या शिल्पों के जीर्णोद्धार के लिए भी किया जा सकेगा – उन्हें कम से कम उस अवस्था तक में तो लाया जा सकेगा जब उनकी तस्वीर ली गई थी।
अगला पड़ाव है जीर्ण-शीर्ण मूर्तियों के जीर्णोद्धार में मदद के लिए एआई की सीखने की क्षमता को बढ़ाना। इसमें ज़रूरत होगी इंडोलॉजी (Indology) और आइकनोग्राफी (iconography) के मानवीय ज्ञान को कंप्यूटर तकनीकों के साथ जोड़ने की – यानी भारतीय उपमहाद्वीप की भाषाओं, ग्रन्थों, इतिहास एवं संस्कृति की जानकारी और प्रतीकों के अर्थ समझने के ज्ञान को कंप्यूटर तकनीकों से जोड़ने की। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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