चक्रेश जैन
गुज़रे साल 2024 में भारत के विज्ञान परिदृश्य पर गौर करें तो लगता है अंतरिक्ष विज्ञान (space science) में सफलताओं का विस्तार हुआ। साल 2024 की शुरुआत में ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों ने आदित्य एल-1 को निर्धारित कक्षा में स्थापित कर बड़ी सफलता प्राप्त की। आदित्य एल-1 मिशन लैग्रेंजियन बिंदु एल-1 (Lagrangian Point L1) पर स्थित भारतीय सौर वेधशाला (solar observatory) है। 2 जुलाई को आदित्य एल-1 ने सूर्य और पृथ्वी के बीच के एल-1 बिंदु के चारों ओर परिक्रमा पूरी की। यह भारत का पहला मिशन है, जिसे सूर्य की गतिविधियों को समझने के लिए भेजा गया है।
जनवरी में इसरो ने एक्सपोसैट (XPoSat) को अंतरिक्ष में भेजा। इसका उद्देश्य ब्लैक होल (black hole) के रहस्यों पर से पर्दा हटाना है। जून के अंतिम सप्ताह में इसरो ने पुन: उपयोग में लाए जा सकने वाले प्रक्षेपण यान आरएलवी पुष्पक (Reusable Launch Vehicle – RLV) का लगातार तीसरी बार सफल परीक्षण किया। इस मिशन में अंतरिक्ष से लौटने वाले यान को तेज़ हवा के बीच उतारने का अभ्यास किया गया था। इससे आरएलवी के विकास के लिए ज़रूरी महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियां प्राप्त करने में मदद मिली है।
नवंबर में इसरो ने पहली बार एक निजी कंपनी की सहायता से जीसैट एन-2 संचार उपग्रह (communication satellite) अंतरिक्ष में भेजा। यह आधुनिक संचार उपग्रह है, जिसका जीवनकाल 14 वर्ष है। इससे ब्रॉडबैंड सेवाओं (broadband services) का विस्तार होगा।
16 अगस्त को इसरो ने अर्थ ऑब्ज़र्वेशन सैटेलाइट-8 (Earth Observation Satellite – EOS-8) को अंतरिक्ष में स्थापित किया। इससे छोटे उपग्रहों (small satellites) के व्यावसायिक प्रक्षेपण का मार्ग प्रशस्त हो गया।
इसरो ने लेह में देश का प्रथम एनालॉग अंतरिक्ष मिशन (analog space mission) शुरू किया है। यहां अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षण (astronaut training) दिया जाएगा। इसके साथ ही यहां चंद्रमा और मंगल ग्रह पर बेस स्टेशन स्थापित करने में आने वाली चुनौतियों का अध्ययन भी किया जाएगा।
वर्ष 2024 में मानव अभियान गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission) की तैयारियां जारी रहीं। इसके लिए परीक्षणों की एक शृंखला तैयार की गई थी। अगस्त में एक्सिओम-4 मिशन (Axiom-4 Mission) के लिए चुने गए दो गगन यात्रियों शुभांशु शुक्ला और प्रशांत बालकृष्ण नायर ने अंतरिक्ष यात्रा के लिए अमेरिका में प्रारंभिक दौर का प्रशिक्षण पूरा किया। यह मिशन इसरो-नासा (ISRO-NASA) की संयुक्त उड़ान के तहत अगले वर्ष अप्रैल में अंतरिक्ष यात्रा पर रवाना होगा।
मई में चेन्नई की अंतरिक्ष स्टार्ट-अप कंपनी अग्निकुल कॉसमॉस (Agnikul Cosmos) ने अपने प्रथम एक मंज़िला रॉकेट अग्निबाण सब-ऑर्बाइटल टेक्नॉलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर (Agnibaan Sub-orbital Technology Demonstrator) का सफल परीक्षण किया। इसे स्वदेशी तकनीकी विकास (indigenous technology development) की दिशा में बड़ी सफलता कहा जा सकता है। इसके पहले 2022 में निजी अंतरिक्ष स्टार्ट-अप कंपनी स्काइरूट (Skyroot) ने अपना प्रथम सब-ऑर्बाइटल रॉकेट अंतरिक्ष में भेजा था। अग्निबाण रॉकेट में अनेक विशेषताएं हैं। इसमें थ्री-डी प्रिटेंड सेमी-क्रायोजेनिक इंजन (3D-printed semi-cryogenic engine), मॉड्यूलर डिज़ाइन, कम लागत और स्वदेशी प्रौद्योगिकी प्रमुख हैं।
इसी साल के अंत में इसरो ने प्रोबा-3 (Proba-3) को सफलतापूर्वक तैनात किया। प्रोबा-3 युरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (European Space Agency – ESA) का महत्वपूर्ण कार्यक्रम है, जिसके अंतर्गत दो उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजा गया है। ये दोनों एक-दूसरे से बराबर दूरी बनाए रखेंगे और सूर्य के बाहरी वातावरण का अध्ययन करेंगे।
इस वर्ष पहली बार 23 अगस्त को प्रथम राष्ट्रीय अंतरिक्ष विज्ञान दिवस मनाया गया, जो 2023 में भारत के चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतरने की याद में मनाया गया। इस उत्सव की थीम थी: ‘चंद्रमा का स्पर्श करते हुए जीवन का स्पर्श: भारत की अंतरिक्ष गाथा’ (Touching the Moon, Touching Lives: India’s Space Saga)।
अंतरिक्ष विज़न 2047 (Space Vision 2047) के अनुसार, 2035 तक चंद्रमा पर भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (Indian Lunar Space Station) की स्थापना और 2040 तक भारतीय अंतरिक्ष यात्री (Indian Astronaut) को चंद्रमा पर उतारना शामिल है।
साल 2024 में भारतीय मूल की अंतरिक्ष वैज्ञानिक सुनीता विलियम्स विज्ञान जगत की खबरों की सुर्खियों में बनी रहीं। सुनीता विलियम्स(Sunita williams) 5 जून को लगभग एक सप्ताह के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (international space station) पर पहुंची थीं, लेकिन स्टारलाइनर अंतरिक्ष यान में तकनीकी समस्या आने के कारण अभी तक पृथ्वी पर वापस नहीं लौटी हैं। उनकी वापसी अगले साल फरवरी में होगी। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन का कंमाडर बनने और लंबा समय अंतरिक्ष में बिता कर मनुष्य की सेहत पर पड़ने वाले विभिन्न प्रभावों के अध्ययन को समृद्ध किया है। भारत सरकार ने 2008 में सुनीता विलियम्स को पद्मभूषण(Padma Bhushan) से सम्मानित किया था।
सुपरकंप्यूटर ‘परम रुद्र’ (Supercomputer ‘Param Rudra’)
26 सितंबर को देश में ही विकसित तीन परम रुद्र सुपर कंप्यूटर (supercomputers) राष्ट्र को समर्पित किए गए। इनका विकास नेशनल सुपरकंप्यूटिंग मिशन (National Supercomputing Mission) के तहत किया गया है। ये सुपरकंप्यूटिंग (supercomputing) के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में आगे ले जाएंगे। मिशन 2015 में शुरू किया गया था। तीन सुपर कंप्यूटरों के विकास पर 130 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। इन्हें वैज्ञानिक अनुसंधान (scientific research) के लिए नई दिल्ली, कोलकाता और पुणे में स्थापित किया जाएगा। दिल्ली में इंटर युनिवर्सिटी एक्सलरेटर सेंटर (Inter University Accelerator Centre) में पदार्थ विज्ञान (material science) और परमाणु भौतिकी (nuclear physics) जैसे क्षेत्रों में शोध के लिए; पुणे में विशाल मीटर रेडियो टेलीस्कोप (Giant Metrewave Radio Telescope), फास्ट रेडियो बर्स्ट (fast radio bursts) और अन्य खगोलीय घटनाओं (astronomical events) के अध्ययन के लिए; और कोलकाता स्थित सत्येन्द्रनाथ बोस केंद्र (Satyendra Nath Bose Centre) में भौतिक विज्ञान (physical sciences), ब्रह्मांड (cosmology) और पृथ्वी विज्ञान (earth sciences) जैसे क्षेत्रों में उन्नत शोधकार्यों के लिए।
पहली अंडरवाटर मेट्रो लाइन (First Underwater Metro Line)
इस वर्ष मार्च में कोलकाता में देश की पहली अंडरवाटर मेट्रो लाइन (underwater metro line) का शुभारंभ हुआ। इसी के साथ हुगली नदी (Hooghly River) में सुरंग बनाने और मेट्रो ट्रेन (metro train) चलाने का 105 वर्ष पुराना सपना साकार हो गया। मेट्रो ट्रेन ज़मीन से 33 मीटर नीचे और हुगली नदी के तल से 13 मीटर नीचे बने ट्रेक पर दौड़ रही है। इसके लिए हावड़ा से लेकर महाकरण स्टेशन (Mahakaran Station) तक 520 मीटर लंबी सुरंग बनाई गई है। मेट्रो इस सुरंग को 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से 45 सेकंड में पार करती है।
मौसम विभाग के 150 साल (Indian Meteorological Department 150 years)
1875 में स्थापित भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (Indian Meteorological Department – IMD) के 150 वर्ष 2025 में पूरे हो रहे हैं। 2024 में विभाग ने राष्ट्र सेवा के 150वें वर्ष का उत्सव मनाया। यह देश का सबसे पुराना वैज्ञानिक विभाग (scientific department) है।
बीते वर्षों में मौसम विज्ञान विभाग (meteorological services) की सेवाओं का विस्तार हुआ है। मानसून पूर्वानुमानों (monsoon forecasting) से लेकर अंतरिक्ष विज्ञान (space science) और कृषि (agriculture) से लेकर पर्यटन (tourism) तथा पर्यावरण (environment) से लेकर परिवहन (transportation) में इसकी सेवाओं का उपयोग हो रहा है। विभाग ने किसानों को पंचायत मौसम सुविधा (Panchayat Weather Services) उपलब्ध कराई है।
बायो ई-3 नीति (Bio E3 Policy)
इसी वर्ष भारत की जैव अर्थव्यवस्था (bioeconomy) को मंज़ूरी दी गई, जिसे संक्षेप में बायो-ई3 नीति (Bio E3 Policy) कहा जाता है। नीति में अर्थव्यवस्था (economy), रोज़गार (employment) और पर्यावरणीय प्रतिबद्धता (environmental commitment) को बढ़ावा देने का वादा किया गया है। बायो ई-3 नीति को जलवायु परिवर्तन (climate change) से निपटने की सोच के साथ तैयार किया गया है। यह नीति विभिन्न क्षेत्रों में उद्यमिता (entrepreneurship) को प्रोत्साहित करती है।
योजनाएं
इसी वर्ष 5 जनवरी को केंद्र सरकार ने 4797 करोड़ रुपए की ‘पृथ्वी विज्ञान योजना’ (Earth Sciences Scheme) को मंज़ूरी प्रदान की। योजना का उद्देश्य भू-प्रणाली और परिवर्तन के महत्वपूर्ण संकेतों (Key Indicators) को रिकॉर्ड करने के लिए वायुमंडल (Atmosphere), समुद्र (Ocean), भू-मंडल (Lithosphere), हिम मंडल (Cryosphere) और पृथ्वी के ठोस हिस्से का दीर्घकालिक अवलोकन करना है। साथ ही मौसम, समुद्र और जलवायु खतरों (Climate Hazards) को समझने और अनुमान लगाने तथा जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के विज्ञान को समझने के लिए मॉडलिंग प्रणालियों का विकास भी सम्मिलित है।
गुज़रे साल 11-13 सितंबर के दौरान ग्रेटर नोएडा में ‘सेमीकंडक्टर भविष्य को आकार देना’ (Shaping the Future of Semiconductors) विषय पर सेमिनार आयोजित किया गया, जिसका उद्देश्य देश में ही सेमीकंडक्टर उद्योग (Semiconductor Industry) को प्रोत्साहन देना था। सरकार द्वारा देश में ही सेमीकंडक्टर चिप (Chip Manufacturing) बनाने के लिए गुजरात के साणंद और धोलेरा तथा असम के मोरीगांव में संयंत्र स्थापित किए जा रहे हैं। वर्ष 2025 में उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है।
भारतीय सेमीकंडक्टर मिशन (Indian Semiconductor Mission) की घोषणा 2021 में की गई थी। हमारे देश में सेमीकंडक्टर चिप निर्माण की प्रयोगशाला चंडीगढ़ में है। दुनिया में सेमीकंडक्टर चिप बनाने वाले पांच देश हैं, जिनमें ताइवान (Taiwan) की हिस्सेदारी सबसे ज़्यादा है। मोबाइल से लेकर मिसाइलों तक में सेमीकंडक्टर चिप हमारे रोज़मर्रा के जीवन (Everyday Life) का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं।
नई प्रजाति की खोज (Discovery of New Species)
अरुणाचल प्रदेश की सियांग घाटी (Siang Valley) में चींटी की एक नई प्रजाति मिली है। यह जगह जैव विविधता केंद्र (Biodiversity Hotspot) के रूप में विख्यात है। नई प्रजाति को पैरापैराट्रेचिना नीला (Paraparatrechina neela) नाम दिया गया है।
विज्ञान पत्रिका ज़ुओकीस (Scientific Journal Zookeys) ने बताया है कि चींटी की नई प्रजाति लाल अथवा भूरी चींटियों जैसी नहीं है। इस छोटी चींटी की लंबाई दो मिलीमीटर से भी कम है और इसका शरीर धातुई नीले रंग का है। अनुसंधानकर्ता चींटी के नीले रंग (Blue Coloration) को लेकर उत्साहित हैं और इसके कारण की खोज में हैं।
गुज़रे साल वैज्ञानिकों ने पश्चिम हिमालय में सांप की एक नई प्रजाति की खोजी है। इसका नाम एंगइकुलस डिकेप्रियोई (Anguiculus dicaprioi) रखा गया है। एंगइकुलस लैटिन भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है छोटा सांप। यह सांप कोलुब्रिडे परिवार का सदस्य है जो पृथ्वी पर सांपों का सबसे बड़ा कुल है। इसमें 1938 प्रजातियां सम्मिलित हैं।
इसी वर्ष भारत अपने यहां के सभी जीव-जंतुओं की सूची बनाने वाला पहला देश बन गया है। इस सूची में लगभग एक लाख प्रजातियां शामिल हैं। यह सूची वर्गीकरण विज्ञानियों, संरक्षण प्रबंधकों, शिक्षाविदों, शोधार्थियों और नीति निर्माताओं के लिए एक अमूल्य संदर्भ ग्रंथ है। इस सूची में विलुप्तप्राय जीवों को भी शामिल किया गया है।
सम्मान व समारोह (Awards and Celebrations)
पहली बार नव-स्थापित राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार (National Science Awards) प्रदान किए गए। राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कारों की स्थापना 2023 में की गई थी। चार श्रेणियों में दिए जाने वाले इन पुरस्कारों के लिए 33 वैज्ञानिकों का चयन किया गया। प्रथम विज्ञान रत्न सम्मान विख्यात जैव रसायनविद प्रोफेसर जी. पद्मनाभन को दिया गया। 13 वैज्ञानिकों को विज्ञानश्री से सम्मानित किया गया। विज्ञान और प्रौद्योगिकी में असाधारण योगदान के लिए 18 वैज्ञानिकों को युवा शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार प्रदान किया गया। इसरो की चंद्रयान-3 की टीम को विज्ञान टीम पुरस्कार से नवाज़ा गया।
इस वर्ष वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की प्रयोगशालाओं के तीन वैज्ञानिकों को राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरडिसिप्लीनरी साइंस एंड टेक्नॉलॉजी (एनआईआईएसटी), तिरुवनंतपुरम के निदेशक डॉ. आनंदरामकृष्णन और नेशनल बॉटेनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनबीआरआई), लखनऊ के प्रोफेसर सैय्यद वजीह अहमद नकवी को विज्ञानश्री से पुरस्कृत किया गया है। नेशनल मैटलर्जिकल लैबोरेटरी (एनएमएल), जमशेदपुर के डॉ. अभिलाष को विज्ञान युवा शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार से नवाज़ा गया है।
इसी वर्ष विख्यात वैज्ञानिक एम. एस. स्वामीनाथन को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
इसी वर्ष विज्ञान लोकप्रियकरण की अंग्रेज़ी पत्रिका साइंस रिपोर्टर के प्रकाशन के साठ वर्ष पूरे हुए। इसका पहला अंक 1964 में प्रकाशित हुआ था।
जिन्हें हमने खो दिया (Remembering Those We Lost)
वर्ष 2024 में हमने भारतीय विज्ञान जगत की कई महान हस्तियों को खो दिया। 25 अक्टूबर को पार्टिकल फिज़िक्स (Particle Physics) की अध्येता प्रोफेसर रोहिणी गोडबोले का निधन हो गया। उन्होंने महिलाओं में विज्ञान शिक्षा के प्रसार में सक्रिय योगदान दिया। उन्हें पद्मश्री सहित कई सम्मान मिले हैं।
इसी वर्ष 27 जनवरी को देश में ही विकसित गर्भ निरोधक गोली ‘सहेली’ के जनक और सीएसआईआर की लखनऊ स्थित प्रयोगशाला सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीडीआरआई) के पूर्व निदेशक डॉ. नित्यानन्द का देहांत हो गया।
15 अगस्त को अग्नि मिसाइल के जनक डॉ. रामनारायण अग्रवाल नहीं रहे। पहली स्वदेशी क्लॉट बस्टर ड्रग के विकास में अहम भूमिका निभा चुके डॉ.गिरीश साहनी का इस वर्ष 19 अगस्त को निधन हो गया।
बीते वर्ष विज्ञान के क्षेत्र में कई नई सफलताएं देखने को मिलीं, वहीँ दूसरी ओर पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन (climate change), प्रदूषण (pollution), और जैव विविधता ह्रास (biodiversity loss) जैसी चिंताओं की लकीर भी लंबी होती चली गई। साल 2024 में जीएम खाद्य फसलों (GM food crops) के विरोध में एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें इन फसलों को भारत के लिए अवांछित (undesirable for India) बताया गया। प्रस्ताव में जीएम फसलों को लेकर व्यापक विचार-विमर्श (wider discussions) की मांग की गई। बीटी कपास (BT cotton) की मंजूरी के अलावा अन्य जीएम फसल को स्वीकृति नहीं मिली है। विदा हो चुके वर्ष में भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन (Indian Science Congress Association) का जनवरी में होने वाला वार्षिक सम्मेलन स्थगित हो गया। यह विज्ञान कांग्रेस के 100 वर्षों के इतिहास में पहली बार हुआ है। साल 2021 और 2022 में कोविड महामारी के कारण यह सम्मेलन नहीं हुआ था। हालांकि, साल 2023 में इसका आयोजन हुआ, लेकिन प्रधानमंत्री इसमें ऑनलाइन (online) शामिल हुए थे। भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन का सालाना आयोजन विज्ञान जगत की महत्वपूर्ण घटनाओं में शामिल है, जिसके शुभारंभ कार्यक्रम में अभी तक प्रधानमंत्री सम्मिलित होते रहे हैं। सम्मेलन में मुख्य विषय पर विचार मंथन के बाद की गई सिफारिशों का उपयोग सरकार की विज्ञान नीति तैयार करने में किया जाता है। विज्ञान जगत के समीक्षकों के अनुसार अब इस आयोजन से देश के नामचीन वैज्ञानिकों ने दूरी बना ली है और यह आयोजन विश्वविद्यालयों और कॉलेज शिक्षकों का मंच बन कर रह गया है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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