परस्पर जुड़ी इस दुनिया में अक्सर हमारे भोजन को थाली तक पहुंचने के लिए लंबी दूरी तय करना पड़ती है। उदाहरण के लिए, एक आम अमेरिकी (American Breakfast) नाश्ते पर गौर करें: आयरलैंड की जौं के दलिया को मीठा करने के लिए ब्राज़ील की चीनी (Brazilian sugar) डाली जाती है और इसके ऊपर डाला जाता है कोस्टा रिका (costa rican banana) का केला। सिर्फ इतना ही नहीं साथ में इथोपिया, कोलंबिया, सुमात्रा और होंडुरास के मिश्रित बीजों से बनी कॉफी (Global coffee trade )होती है। यह मिश्रण दर्शाता है कि भोजन का वैश्विक कारोबर (Global food trade) हमारे जीवन का कितना अहम हिस्सा बन गया है, जिसने न सिर्फ हमारे खानपान बल्कि अर्थव्यवस्थाओं (Economy impact of food trade) को भी बदल दिया है। लेकिन यह व्यापार जितना लाभदायक दिखता है, उतने ही बड़े खतरे और चुनौतियां भी लेकर आता है।
बढ़ता जाल
पिछले कुछ दशकों में, खाद्यान्न दुनिया की सबसे अधिक व्यापार की जाने वाली वस्तुओं (most traded commodities) में से एक बन गया है। भले ही लोगों को ‘स्थानीय भोजन’ (local food) खाने के लिए प्रेरित करने वाले अभियान चलाए जा रहे हों, लेकिन हमारा खानपान धीरे-धीरे अंतर्राष्ट्रीय होता जा रहा है। दुनिया की लगभग 80 प्रतिशत आबादी ऐसे देशों में रहती है जो खाद्य पदार्थों का निर्यात कम, आयात (Food import and export) अधिक करते हैं। एक अनुमान है कि 2050 तक, विश्व की आधी आबादी ऐसे खाद्य पदार्थों पर निर्भर होगी जो हज़ारों किलोमीटर दूर उगाए जाते हैं।
मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका (Middle East and North Africa) जैसे शुष्क जलवायु वाले देश आयात पर सबसे ज़्यादा निर्भर हैं। सऊदी अरब अपना 90 प्रतिशत खाद्य आयात करता है। हैरत की बात यह है कि कृषि समृद्ध देश भी कुछ विशेष खाद्य पदार्थों के बड़े आयातक हैं। ब्रेक्ज़िट (यानी ब्रिटेन द्वारा युरोपीय संघ छोड़ने) से पहले, यूके (UK food dependency) अपने विटामिन सी की लगभग आधी ज़रूरत को पूरा करने के लिए आयातित केले (Imported bananas) पर निर्भर था। स्पष्ट है कि वैश्विक व्यापार किस तरह खाद्य सुरक्षा वाले क्षेत्रों में भी आहार विविधता बनाए रखने में मदद करता है।
अंतर्राष्ट्रीय खाद्य व्यापार में इस तेज़ी का कारण है 1995 में विश्व व्यापार संगठन (WTO) की स्थापना। संगठन ने शुल्क और मूल्य नियंत्रण जैसी बाधाओं को हटाकर आयात-निर्यात आसान बना दिया। 2001 में संगठन में चीन (China food import) के प्रवेश ने इस व्यापार को और बढ़ाया, और चीन काफी तेज़ी से खाद्य पदार्थों (खासकर सोयाबीन) का सबसे बड़ा आयातक बन गया। आज, चीन दुनिया की करीब 70 प्रतिशत सोयाबीन आयात करता हैै।
वैश्विक खानपान के लाभ
एक मायने में वैश्विक खाद्य व्यापार (global food trade benefits) काफी लाभदायक रहा है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे उन देशों को खाद्य सुरक्षा (food security in dry regions) मिली, जहां सूखा, बाढ़ या प्रतिकूल जलवायु के कारण घरेलू उत्पादन में समस्या रहती है। भोजन आयात (food import benefits) करने से ये देश अकाल और अभाव जैसी स्थितियों से बच सकते हैं और अपने नागरिकों के लिए स्थिर आपूर्ति बनाए रख सकते हैं।
इसके अलावा, उत्पादक देशों (producing nations) को भी आर्थिक रूप से लाभ होता है। भोजन का निर्यात रोज़गार पैदा करता है, अर्थव्यवस्थाओं को मज़बूत करता है, और किसानों और मज़दूरों के लिए आय का एक स्थिर स्रोत बनाता है। उदाहरण के लिए, ब्राज़ील और भारत क्रमशः सोयाबीन (soyabean) और मसालों (spices) के वैश्विक उत्पादक बन गए हैं, जिससे लाखों लोगों को आजीविका मिलती है।
वैश्विक व्यापार (international trade) से आहार में विविधता भी बढ़ती है। अलग-अलग देशों से मिलने वाले फलों (fruits), सब्ज़ियों(vegetables), अनाज और मसालों से भोजन की पौष्टिकता बढ़ती है और भोजन स्वादिष्ट तथा आनंददायक(flavourful) बनता है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार यह भी सुनिश्चित करता है कि मौसमी उत्पाद साल भर उपलब्ध रहें।
अदृश्य लागतें
वैश्विक खाद्य व्यापार के लाभ तो स्पष्ट हैं, लेकिन इसके साथ कुछ गंभीर समस्याएं (global food trade challenges) भी जुड़ी हुई हैं। पर्यावरण सम्बंधी चिंताएं (environmental concerns) सबसे प्रमुख हैं। निर्यात की मांग को पूरा करने के लिए, उत्पादक देश अक्सर प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित दोहन करते हैं। उदाहरण के लिए, ब्राज़ील ने सोयाबीन उगाने और पशुपालन के लिए अमेज़ॉन वर्षावन (amazon rainforest) के बड़े हिस्सों को साफ कर दिया है, जिससे जैव विविधता को भारी नुकसान हुआ है। इसी तरह, दुनिया के अनानास की आधी आपूर्ति करने वाले कोस्टा रिका ने इसकी खेती के लिए भारी मात्रा में कीटनाशकों का उपयोग किया जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर नुकसान पहुंचा है।
उत्पादन के अलावा खाद्य पदार्थों को अलग-अलग महाद्वीपों पर पहुंचाना पर्यावरणीय समस्याओं को और बढ़ा देता है। शिपिंग, रेफ्रिजरेशन और पैकेजिंग से वैश्विक कार्बन उत्सर्जन (carbon emission) में काफी वृद्धि होती है। कृषि और उससे जुड़े कार्य मिलकर सभी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग एक-तिहाई हिस्सा होते हैं, जिससे वैश्विक खाद्य व्यापार जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख कारण बन जाता है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
पर्यावरणीय लागतों के अलावा, वैश्विक खाद्य व्यापार का प्रभाव जन स्वास्थ्य (public health impact) पर भी पड़ता है। यह सही है कि आयातित फलों(import fruits), सब्ज़ियों और मेवों तक पहुंच पोषण में सुधार करती है और वैश्विक मृत्यु दर को कम करती है। 2023 में नेचर फूड में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार हर साल 14 लाख लोगों की जान बचाता है क्योंकि यह बेहतर और स्वस्थ भोजन विकल्प उपलब्ध कराता है।
दूसरी ओर, प्रोसेस्ड फूड (processed food) और रेड मीट (red meat) के व्यापार का असर इसके विपरीत है। जिन देशों में पहले इन सामग्रियों तक पहुंच नहीं थी, वहां अब मधुमेह, हृदय रोग और कुछ प्रकार के कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां बढ़ रही हैं। रेड मीट उपभोग का सम्बंध इन बीमारियों से देखा गया है। इसका निर्यात मुख्य रूप से अमेरिका और जर्मनी जैसे देश करते हैं। शोधकर्ताओं ने इसे ‘बीमारियों का निर्यात’ कहा है, जो इस बात पर ज़ोर देता है कि व्यापार नीतियां मुनाफे से अधिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें।
नाज़ुक खाद्य प्रणाली
वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं (global food chain) पर निर्भरता ने खाद्य प्रणाली को अधिक कुशल बनाया है, लेकिन इसे कमज़ोर भी किया है। मुख्य फसलों जैसे गेहूं, चावल, मक्का और सोयाबीन के निर्यात में केवल 10 देश प्रमुख भूमिका निभाते हैं, जिससे कुछ ही देशों पर अत्यधिक निर्भरता बढ़ गई है। उदाहरण के लिए, अमेरिका विश्व के कुल खाद्य पदार्थों का लगभग 25 प्रतिशत निर्यात करता है, और इसका अधिकांश हिस्सा कैलिफोर्निया और टेक्सास जैसे कुछ राज्यों से आता है। ऐसे में जब ये क्षेत्र सूखे या प्राकृतिक आपदाओं का सामना करते हैं, तब वैश्विक खाद्य कीमतें तेज़ी से बढ़ जाती हैं।
यूक्रेन युद्ध (Ukraine war) इस कमज़ोर व्यवस्था का ज्वलंत उदाहरण है। यूक्रेन और रूस मिलकर वैश्विक गेहूं निर्यात (global wheat export) का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा प्रदान करते हैं। 2022 में युद्ध के कारण जब इनका उत्पादन बाधित हुआ तो गेहूं की कीमतों (prise rise) में भारी उछाल आया, जिससे उन देशों पर असर पड़ा जो इस आपूर्ति पर निर्भर थे। हालांकि, भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने इस कमी को पूरा करने का प्रयास किया, लेकिन इस संकट ने यह स्पष्ट कर दिया कि वैश्विक खाद्य आपूर्ति शृंखला कितनी संवेदनशील है।
जटिल भविष्य की तैयारी
वैश्विक खाद्य व्यापार (global food trade) की चुनौतियां आने वाले समय में और गंभीर हो सकती हैं। 2080 के दशक के मध्य तक पृथ्वी की जनसंख्या 10 अरब तक पहुंचने का अनुमान है, जिससे खाद्य प्रणालियों पर भारी दबाव पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा और तापमान पर अनिश्चित प्रभाव से फसल उत्पादन (crop production) घट सकता है और कृषि उद्योग अधिक अस्थिर बन सकता है।
इन जोखिमों से निपटने के लिए देशों को अधिक मज़बूत खाद्य प्रणालियां बनानी होंगी। इसमें घरेलू उत्पादन में वृद्धि, आयात के स्रोतों को अधिक विविध बनाने और अनाज भंडारण तथा बंदरगाह जैसे बुनियादी ढांचे में निवेश करना होगा। नीति निर्माताओं को इसके लिए अधिक डैटा की आवश्यकता होगी।
फूड एंड क्लाइमेट सिस्टम्स ट्रांसफॉर्मेशन अलाएंस (food and climate systems transformation alliance) जैसी पहल ऐसे साधन विकसित कर रही हैं जो यह अनुमान लगाने में मदद करेंगे कि जलवायु, भू-राजनीति, और बाज़ार में उतार-चढ़ाव 2050 तक खाद्य सुरक्षा को कैसे प्रभावित करेंगे। इनका उपयोग करके देश अपनी खाद्य नीतियों के बारे में प्रभावी निर्णय ले सकते हैं।
वैश्विक खाद्य व्यापार का भविष्य दक्षता और स्थिरता (efficiency and stbility) के बीच संतुलन खोजने पर निर्भर करेगा। देशों को यह फिर से विचार करना होगा कि वे क्या उत्पादन करें, उत्पादन कैसे करें, और आयात पर कितना निर्भर रहें। इसके लिए अपव्यय को कम करना, टिकाऊ कृषि प्रथाओं को अपनाना और निर्यात के पर्यावरणीय प्रभाव को सीमित करना महत्वपूर्ण होगा। यह तो ज़रूरी नहीं है कि आयातित कॉफी या उष्णकटिबंधीय फलों का उपभोग छोड़ दिया जाए लेकिन पर्यावरण पर अधिक दबाव डालने वाले उत्पादों की खपत को नियंत्रित करने से महत्वपूर्ण अंतर पड़ सकता है।
बहरहाल, वैश्विक खाद्य व्यापार आधुनिक अर्थव्यवस्था का एक अद्भुत उदाहरण है, लेकिन इसकी कई चुनौतियां भी हैं। इसके पर्यावरणीय प्रभावों, स्वास्थ्य सम्बंधी प्रभावों और व्यवधानों के प्रति दुर्बलता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। जो निर्णय हम आज लेंगे, वही यह तय करेंगे कि वैश्विक व्यापार मानवता को पोषण देता रहेगा या हमें समाधान के लिए तरसने पर मजबूर करेगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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