अधिकतर जीव-जंतुओं के बच्चे जन्म के कुछ ही समय की देखभाल और प्रशिक्षण के बाद परिपक्व हो जाते हैं और स्वंतत्र रूप से भोजन वगैरह तलाशने और जीवनयापन करने लगते हैं। लेकिन मनुष्य के बच्चों को माता-पिता की देखभाल की काफी सालों तक ज़रूरत पड़ती है और उन्हें स्वतंत्र रूप से हर काम करने में सक्षम होने में (या यूं कहें कि बड़ा या वयस्क होने में) काफी साल लगते हैं। तुलना की जाए तो वयस्कता तक पहुंचने में मनुष्य के बच्चों को चिम्पैंज़ियों के बच्चों की तुलना में लगभग दुगुना समय लगता है।
मानवविज्ञानी बताते हैं कि संभवत: हमारा लंबा बचपन और किशोरावस्था की शुरुआत या तो हमें तुलनात्मक रूप से बड़ा मस्तिष्क विकसित करने के लिए अधिक समय और ऊर्जा की मोहलत देने के लिए हुई होगी, या जीवन की जटिल सामाजिक अंतःक्रियाओं और वातावरण के अनुकूल होने के कौशल सीखने के लिए। लेकिन वैज्ञानिकों के सामने यह अहम सवाल हमेशा से रहा है कि हमारे पूर्वजों (होमो जीनस) में लंबे बचपन की शुरुआत आखिर हुई कब?
इस सवाल के जवाब तक पहुंचने के लिए वैज्ञानिक अक्सर दांत, खासकर दाढ़, का अध्ययन करते हैं। दांतों का अध्ययन इसलिए क्योंकि प्राचीन दांत या दाढ़ अक्सर खोपड़ी के साथ अश्मीभूत अवस्था में मिल जाते हैं, समय के साथ नष्ट नहीं होते, और सबसे बढ़कर कि उनमें पेड़ के वलयों जैसी वृद्धि रेखाएं बनती हैं। ये रेखाएं दांतों पर डेंटाइन परत चढ़ने के कारण बनती है, जो आधुनिक मनुष्यों में हर 8 दिन में चढ़ जाती है। फिर, मनुष्यों और अन्य प्राइमेट्स की दांतों की वृद्धि की दर भी मस्तिष्क और शरीर के विकास से जुड़ी है।
ज्यूरिख युनिवर्सिटी के पुरामानवविज्ञानी क्रिस्टोफ ज़ोलिकोफर, मारिका पॉन्स डी लियोन और उनका दल भी यह जानना चाहता था कि लंबा बचपन होने की शुरुआत कब हुई। इसके लिए उन्होंने 2001 में जॉर्जिया के डमेनीसी में खुदाई में प्राप्त बच्चे की जबड़े सहित खोपड़ी और दांतों का अध्ययन किया। यह खोपड़ी करीब 17.7 लाख साल पुरानी थी और होमो जीनस के सदस्य की थी। अश्मीभूत दांतों में वृद्धि रेखाओं को देखने के लिए उन्होंने सिंक्रोट्रॉन की मदद से उच्च-विभेदन वाली एक्स-रे छवियां प्राप्त कीं और रेखाओं की गणना की। रेखाओं की गिनती से पता चला कि मृत्यु के समय उसकी उम्र लगभग साढ़े ग्यारह साल रही होगी।
इसके बाद शोधकर्ताओं ने दांत पर गहरी तनाव रेखाओं का अध्ययन किया। ये तनाव रेखाएं किसी बीमारी या आहार में कमी के चलते सभी दांतों पर आ जाती हैं। इन रेखाओं का अध्ययन करके उन्होंने देखा कि विभिन्न दांत कैसे बने और उभरे। फिर उन्होंने इसका एक मॉडल वीडियो बना कर देखा कि जन्म से लेकर मृत्यु तक हर 6 महीने के अंतराल पर इस प्राचीन बच्चे के दांत कैसे बढ़े।
अंत में, शोधकर्ताओं ने डमेनीसी मनुष्य के दांतों के वृद्धि पथ की तुलना आधुनिक मनुष्यों, चिम्पैंज़ी और अन्य वानरों के दांतों की वृद्धि से की। देखा गया कि डमेनीसी बच्चे के जीवन के शुरुआती 5 वर्षों तक दाढ़ धीरे-धीरे विकसित हुई, जिससे दूध के दांत लंबे समय तक बने रहे – यह चिम्पैंज़ी की बजाय आधुनिक मनुष्य के दांत आने की तरह अधिक था। फिर, 6 से 11 वर्ष की आयु में, डमेनीसी बच्चे के दांत चिम्पैंज़ी की तरह अधिक तेज़ी से विकसित हुए और उभरे।
नेचर में प्रकाशित नतीजे बताते हैं कि डमेनीसी बच्चे के शुरुआती सालों में धीमी गति से विकास का यह सबसे पुराना ज्ञात उदाहरण है, और धीमी वृद्धि के पिछले साक्ष्यों से करीब पांच लाख साल पहले का है। और संभवत: यह हमारे धीमे विकास की ओर पहला कदम भी हो सकता है।
डमेनीसी के निवासियों के मस्तिष्क चिम्पैंज़ियों से बस थोड़े से ही बड़े थे। इस आधार पर लेखकों का कहना है कि मस्तिष्क बड़ा होने के पहले ही हमारे पूर्वजों में दांतों का विकास धीमा हो गया था, संभवत: इसलिए कि औज़ारों के उपयोग, मांस खाने और सामाजिक संरचना में बदलाव ने बच्चों का लंबे समय तक वयस्कों पर निर्भर रहना संभव बनाया।
हालांकि, ये नतीजे सिर्फ एक बच्चे के दांत के विश्लेषण पर आधारित हैं, और चूंकि हर प्राइमेट की वृद्धि करने की गति अलग होती है इसलिए अधिक डैटा ही इन नतीजों की पुष्टि कर सकता है या इन्हें खारिज कर सकता है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.zoivmnm/full/_20241013_on_dmanisi-teeth_v1-1731523407923.jpg