वैसे तो एक व्यक्ति का खून दूसरे को देना यानी रक्ताधान (Blood Transfusion) सत्रहवीं शताब्दी के शुरू में ही किया जाने लगा था लेकिन यह मरीज़ों की बदकिस्मती थी कि सुप्रसिद्ध ‘ए, बी, ओ’ रक्त समूहों (Blood Groups) की जानकारी हमें 1901 में ही मिली थी। इससे पहले रक्ताधान का सफल होना या न होना संयोग की बात होती थी। अलबत्ता, इसके बाद किए गए तमाम अनुसंधान के बावजूद आज भी वैज्ञानिक इस गुत्थी से जूझ रहे हैं कि ये रक्त समूह होते ही क्यों हैं।
यह तो पता है कि ए, बी और ओ रक्त समूह के जो जीनोटाइप (Genotype) पाए जाते हैं, उनका असर कई बीमारियों के परिणामों पर होता है। जैसे एडिनबरा विश्वविद्यालय के एलेक्स रोवे और उनके साथियों ने दर्शाया है कि ‘ओ’ रक्त समूह (O Blood Group) के लोगों में मलेरिया (Malaria) के गंभीर लक्षण प्रकट होने की संभावना कम होती है। इसका कारण यह बताते हैं कि ‘ओ’ किस्म की लाल रक्त कोशिकाओं में संक्रमण के बाद रोज़ेट (Rosette Formation) नामक झुंड बनाने की क्षमता कम होती है। रोज़ेट बनने पर पतली रक्त नलिकाओं में रुकावट पैदा होती है।
तो शायद ऐसा लगे कि मलेरिया के संक्रमण से निपटने के चक्कर में रक्त समूह बने होंगे। लेकिन कई वैज्ञानिक बताते हैं कि मलेरिया परजीवी प्लाज़्मोडियम फाल्सीपैरम (Plasmodium Falciparum) ने चिम्पैंज़ियों से मनुष्यों में छलांग करीब 10,000 वर्ष पहले लगाई थी जबकि रक्त समूह तो संभवत: 2 करोड़ साल पहले से अस्तित्व में हैं।
बहरहाल, रक्त समूह और बीमारियों के प्रति दुर्बलता का सम्बंध मलेरिया से काफी आगे तक है। और तो और ए, बी तथा ओ एंटीजेन (Antigens) सिर्फ लाल रक्त कोशिकाओं की सतह पर नहीं बल्कि सफेद रक्त कोशिकाओं पर भी पाए जाते हैं और कई अंगों की सतह पर एपीथीलियल कोशिकाओं (Epithelial Cells) पर भी पाए जाते हैं। और तो और, ये रक्त समूह कई ऐसी बीमारियों के परिणामों को भी प्रभावित करते हैं जिनका सम्बंध लाल रक्त कोशिकाओं से नहीं होता। जैसे, हैजा (Cholera), टीबी (Tuberculosis), हेपेटाइटिस (Hepatitis) तथा अल्सर पैदा करने वाले हेलिकोबैक्टर पायलोरी (Helicobacter Pylori) के मामले में।
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि करोड़ों वर्ष पूर्व संक्रामक बीमारियों के दबाव में रक्त समूहों का विकास हुआ था लेकिन यह पता नहीं है कि वह कौन-सी बीमारी या बीमारियां थीं जिसने विकास को इस दिशा में मोड़ा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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