डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन, तेजा बालनत्रपु
अंधत्व रोकथाम के लिए कार्यरत इंटरनेशनल एजेंसी फॉर दी प्रीवेंशन ऑफ ब्लाइंडनेस (International Agency for the Prevention of Blindness – IAPB) प्रति वर्ष अक्टूबर के दूसरे गुरुवार को विश्व दृष्टि दिवस (World Sight Day) के रूप में मनाती है। इस वर्ष यह दिन 10 अक्टूबर को था। इसका उद्देश्य जागरूकता बढ़ाना और दुनिया भर में हर किसी को दृष्टि का लाभ पहुंचाने के प्रयासों का समर्थन करना है। इन प्रयासों में शामिल हैं ज़रूरतमंदों को चश्मा वितरण (Eyeglasses Distribution) और आंख के क्षतिग्रस्त हिस्सों का इलाज करना, जैसे मोतियाबिंद के उपचार (Cataract Surgery) के लिए आंख के अपारदर्शी लेंस को बदलना, या अंधेपन के इलाज के लिए कॉर्निया का प्रत्यारोपण (Corneal Transplant).
कॉर्नियल क्षति (Corneal Damage) के कारण हुआ अंधापन भारत में अंधेपन की समस्या का एक प्रमुख कारण है। कॉर्निया के प्रत्यारोपण में दानदाता (Donor) के स्वस्थ ऊतक लेकर क्षतिग्रस्त कॉर्निया वाले व्यक्ति में प्रत्यारोपित कर उसकी दृष्टि को बहाल किया जाता है। अलबत्ता, प्रत्यारोपण की दीर्घकालिक सफलता (Long-term Success) कई कारकों से प्रभावित होती है: दाता के ऊतकों की गुणवत्ता (Tissue Quality), कॉर्निया की हालत, और सबसे महत्वपूर्ण लंबे समय तक नियमित जांच और देखभाल (Regular Check-ups and Care)।
कॉर्निया (Cornea), आंख की पुतली और तारे को ढंकने वाली एक पतली, पारदर्शी और गुंबदनुमा परत होती है। कॉर्निया के ऊतकों का विशिष्ट गुण होता है पारदर्शी बने रहना ताकि वह आने वाले प्रकाश (Incoming Light) को रेटिना तक पहुंचने दे सके। रेटिना (Retina) पर प्रकाश-ग्राही कोशिकाएं होती हैं जो हमें देखने में मदद करती हैं। यदि किसी कारण से कॉर्निया क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो यह प्रकाश को रेटिना की ओर अंदर आने देने की अपनी क्षमता खो देता है और व्यक्ति की दृष्टि चली जाती है। ऐसे में, दृष्टि बहाल करने का एकमात्र तरीका होता है कॉर्निया का प्रत्यारोपण।
सन 1905 में ऑस्ट्रियाई नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. ई. के. ज़िम (Dr. Eduard Zirm) ने पहला मानव कॉर्नियल प्रत्यारोपण (First Corneal Transplant) किया था। भारत में पहला प्रत्यारोपण सन 1948 में डॉ. मुथैया (Dr. Muthayya) ने चेन्नई के अपने नेत्र बैंक (Eye Bank) में किया था, और इंदौर के डॉ. आर. पी. धोंडा ने 1960 में पहला सफल कॉर्निया प्रत्यारोपण किया था। तब से, कॉर्निया प्रत्यारोपण और भी परिष्कृत (Refined) हुए हैं और प्रत्यारोपण की सफलता दर (Success Rate) भी काफी बढ़ गई है। कॉर्निया के पारदर्शी ऊतक को छह परतों में बांटा जा सकता है और अब सर्जन पूरे कॉर्निया की बजाय कॉर्निया की केवल एक विशिष्ट उप-परत (Specific Sub-layer) का प्रत्यारोपण कर सकते हैं। इस सर्जरी में रिकवरी तेज़ (Faster Recovery) होती है और प्रत्यारोपण के बाद प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा अस्वीकृति (Immune Rejection) की संभावना कम होती है।
ये सभी विशेषताएं कॉर्निया के प्रत्यारोपण को एक आसान विकल्प बनाती हैं। इसके बावजूद, भारत में तकरीबन दस लाख से अधिक लोग कॉर्नियल क्षति (Corneal Damage) के कारण अंधेपन का शिकार हैं। राष्ट्रीय दृष्टिहीनता और दृश्य हानि नियंत्रण कार्यक्रम (National Programme for Control of Blindness – NPCBVI) के अनुसार, 50 वर्ष से कम आयु के लोगों में अंधेपन का मुख्य कारण यही है। पिछले कई वर्षों से, भारत ने प्रति वर्ष एक लाख कॉर्निया प्रत्यारोपण (100,000 Corneal Transplants) करने का अनौपचारिक लक्ष्य रखा है। लेकिन हम इस लक्ष्य से बहुत पीछे हैं। कॉर्निया के ऊतक केवल व्यक्ति की मृत्यु के बाद (Post-mortem Donation) ही दान किए जा सकते हैं। भारत में दर्ज लाखों मौतों में से कुछ ही कॉर्नियल दान (Corneal Donations) के योग्य होते हैं। हालांकि, वर्तमान में हम सभी योग्य दाताओं से कॉर्निया हासिल नहीं कर पाते हैं, खासकर प्रक्रियागत देरी (Procedural Delays) और सहमति कानूनों (Consent Laws) के कारण।
इस कमी को दूर करने के लिए सरकार मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 (Transplantation of Human Organs Act – THOA) में संशोधन पर विचार कर रही है, जो ‘मान ली गई या मानित सहमति’ (Presumed Consent) का रास्ता खोलता है। ‘मानित सहमति’ से आशय है ऐसा मान कर चलना कि सभी योग्य दाताओं की अंगदान के लिए सहमति है। हालांकि, मानित सहमति पर सख्ती या दबाव नहीं होना चाहिए, इसमें सामाजिक स्वीकृति (Social Acceptance) सुनिश्चित करने के लिए परिवार की औपचारिक अनुमति (Family Approval) भी शामिल होनी चाहिए – एक ‘स्वीकार्य’ विकल्प। वक्त की मांग है उदार नेत्रदान (Generous Eye Donations), समर्पित प्राप्तकर्ता (Committed Recipients) की जो नियमित चेक-अप या देखभाल के लिए आता रहे, और एक ऐसी प्रणाली (Systematic Framework) की जो इन दोनों को सक्षम बनाए। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि सरकार के नारे ‘नेत्र दान’ और नेत्ररोग विशेषज्ञों के बोध वाक्य ‘पश्यन्तु सर्वे जन: (सभी के पास दृष्टि हो)’ के बीच तालमेल हो, जिसे परिवार की सहमति (Family Consent) से समर्थन मिले: ‘सम्मति परिवारस्य।’ (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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