जलवायु परिवर्तन: कार्बन हटाने की बजाय उत्सर्जन घटाएं

जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के विरुद्ध वैश्विक जंग में, वायुमंडल से कार्बन डाईऑक्साइड (CO2 Removal) को हटाने की तकनीकों पर ध्यान बढ़ रहा है। लेकिन उभरते शोध से पता चलता है कि इन तकनीकों पर अत्यधिक निर्भरता हमारे ग्रह (Planetary Health) को गंभीर और स्थायी नुकसान से बचाने के लिए पर्याप्त नहीं है। 

वर्ष 2015 में पेरिस समझौते (Paris Agreement) में वैश्विक तापमान वृद्धि (Global Warming) को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने और यथासंभव 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के प्रयासों को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया गया था। अधिकांश जलवायु मॉडल (Climate Models) का अनुमान है कि कार्बन हटाने की विभिन्न तकनीकों से तापमान कम तो होगा लेकिन पूर्व निर्धारित सीमा को पार कर जाएगा। 

अब बड़ा सवाल यह है कि इस सीमापार (1.5 डिग्री से अधिक) अवधि के दौरान क्या हो सकता है? नेचर (Nature Journal) में प्रकाशित कार्ल-फ्रेडरिक श्लूसनर के नेतृत्व में किया गया एक नया अध्ययन संभावित परिणामों पर प्रकाश डालता है। यदि हम तापमान (Global Temperature) को वापस नीचे लाने में सफल हो भी जाएं, तब भी 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान के प्रभाव गंभीर और दीर्घकालिक होंगे, जिससे आने वाले दशकों तक लोगों और पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystems) दोनों पर असर पड़ेगा। 

तापमान में वृद्धि का खतरा (Temperature Rise Risks) 

तापमान में वृद्धि का मतलब है कि अस्थायी रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान सीमा (Temperature Threshold) को पार करना और फिर बाद में वैश्विक तापमान को कम करना। श्लूसनर के शोध में चेतावनी दी गई है कि इस तरह की वृद्धि से भीषण तूफान (Extreme Weather Events) और लू जैसी चरम मौसमी घटनाएं हो सकती हैं तथा जंगल और कोरल रीफ (Coral Reefs) जैसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्रों का विनाश हो सकता है। 

इसके अलावा, तापमान वृद्धि से पृथ्वी के जलवायु तंत्र (Climate Systems) का नाकाबिले-पलट बिंदु तक पहुंचने का जोखिम बढ़ सकता है। मसलन, उच्च तापमान ग्रीनलैंड की बर्फीली चादर (Greenland Ice Sheet) का ढहना या अमेज़ॉन वर्षावन (Amazon Rainforest) के अपरिवर्तनीय पतन शुरू कर सकता है। भले ही हम बाद में वैश्विक तापमान कम करने में कामयाब हो जाएं लेकिन उससे पहले ही काफी स्थायी नुकसान हो चुका होगा। 

कार्बन हटाना: आसान काम नहीं (Carbon Removal Challenges) 

हालांकि, पेड़ लगाना या कार्बन कैप्चर (Carbon Capture) जैसे तरीके समाधान का हिस्सा हैं, लेकिन ये अपने आप में पर्याप्त नहीं हैं। श्लूसनर की टीम के अनुसार 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को पूरा करने के लिए हमें वर्ष 2100 तक वायुमंडल से 400 गीगाटन कार्बन डाईऑक्साइड (Gigaton CO2) हटाना होगा जो कि एक कठिन चुनौती होगी। 

यदि बड़े पैमाने पर कार्बन हटाना (Carbon Sequestration) संभव हो जाए, तो भी तापमान में अत्यधिक वृद्धि के कारण होने वाले कुछ बदलाव स्थायी हो सकते हैं। बढ़ता समुद्र स्तर (Sea Level Rise), जलवायु क्षेत्रों में बदलाव और पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान जारी रह सकते हैं, जिससे कृषि जैसे कारोबरों के लिए अनुकूलन करना कठिन हो जाएगा। 

नैतिक चिंताएं (Ethical Concerns) 

अध्ययन में उठाया गया एक और मुद्दा नैतिकता का है। एक बड़ा सवाल यह है कि तापमान में वृद्धि (Temperature Increase) के दौरान और उसके बाद जलवायु प्रभावों का खामियाजा कौन भुगतेगा। जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे कम ज़िम्मेदार कम आय वाले देश (Low-Income Nations) सबसे अधिक प्रभावित होंगे। ये क्षेत्र पहले से ही इंतहाई मौसम और पर्यावरणीय क्षति के प्रति अधिक संवेदनशील हैं, और तापमान में वृद्धि से उनकी स्थिति और खराब हो जाएगी। 

उत्सर्जन रोकना आवश्यक है (Emission Reduction Necessary) 

लक्ष्य से अधिक तापमान बढ़ने से रोकने के लिए कार्बन उत्सर्जन (Carbon Emission) को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, न कि उत्सर्जन करने के बाद कार्बन डाईऑक्साइड हटाने पर। विशेषज्ञ सरकारों (Government Policies) और उद्योगों द्वारा उत्सर्जन में भारी कटौती करने की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं। 

यू.के. ने हाल ही में अपने अंतिम कोयला-चालित बिजली संयंत्र (Coal Plants) को बंद किया है और अगले 25 वर्षों में कार्बन कैप्चर और भंडारण प्रौद्योगिकियों (Carbon Capture and Storage) में 22 अरब पाउंड (करीब 230 अरब रुपए) का निवेश करने की घोषणा की है। आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों में लागू किए जा रहे इन प्रयासों का उद्देश्य जलवायु चुनौतियों का समाधान करते हुए रोजगार और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ाना है। 

अलबत्ता, ये केवल शुरुआती प्रयास हैं। वैश्विक नेताओं को, विशेष रूप से आगामी कोप 29 (COP29) शिखर सम्मेलन में, 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य के लिए उत्सर्जन में कटौती (Emission Reduction Targets) को प्राथमिकता देनी चाहिए। कार्रवाई में देरी करना और भविष्य में कार्बन हटाने पर निर्भर रहना एक जोखिम भरी रणनीति है जो लोगों और ग्रह दोनों के लिए विनाशकारी हो सकती है।(स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://media.newyorker.com/photos/5a023235f40de92b738134e8/4:3/w_1991,h_1493,c_limit/171120_r30938.jpg

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