दक्षिण भारत में भी है फूलों की घाटी

डॉ. ओ. पी. जोशी

उत्तराखंड राज्य के चमौली ज़िले में गोविंदघाट के पास स्थित फूलों की घाटी विश्व प्रसिद्ध है। इसे अब नंदादेवी राष्ट्रीय उद्यान के नाम से जाना जाता है। इसी प्रकार एक दूसरी सुंदर फूलों की घाटी सह्याद्री पर्वत माला के 900 से 1200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पठार के एक भाग में है। लाल लेटेराइट मिट्टी से बना यह पठार 1792 हैक्टर में फैला है एवं कास नामक गांव की बस्ती होने से इसे कास पठार (Kaas Plateau) कहा जाता है। कास पठार महाराष्ट्र के सतारा ज़िले से 23 किलोमीटर की दूरी पर एवं समुद्रतल से 1200 से 1240 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। जुलाई 2012 में इसे यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों (UNESCO World Heritage Site) में शामिल किया गया था।

इस पठार पर 570 हैक्टर का क्षेत्र फूलों की अधिकता वाला है जिसे वन विभाग ने चार भागों में बांट रखा है। प्रत्येक भाग में लगभग एक वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में पर्यटक नज़दीक जाकर फूलों को देख सकते हैं। पठार पर मिट्टी की सतह पतली होने से ज़्यादातर पौधे शाकीय प्रकृति के छोटे होते हैं। प्रत्येक भाग के चारों तरफ तारों की बागड़ है तथा वन विभाग के कर्मचारी सुरक्षा गार्ड की भूमिका निभाते हैं। मानसून (Monsoon Season) आने के साथ ही जुलाई में फूल खिलना प्रारम्भ हो जाते हैं। जुलाई से लेकर मध्य अक्टूबर तक बारिश एवं धूप जैसे मौसमी हालात के अनुसार फूल खिलने का क्रम आगे बढ़ता रहता है। सामान्यतः 15 से 20 दिनों में फूलों का रंग बदल जाता है एवं जिस रंग के फूल खिलते हैं उससे ऐसा लगता है मानो पठार पर प्रकृति ने रंगीन चादर फैलाई हो। सितंबर 10 से 25 तक का समय कास पठार की सुंदरता निहारने हेतु श्रेष्ठ बताया गया है (Best time to visit Kaas Plateau)।

एक अध्ययन अनुसार यहां पुष्पीय पौधों की 850 प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें से 450 में जुलाई से सितंबर/अक्टूबर तक अलग-अलग समय पर भिन्न-भिन्न रंगों के फूल खिलते हैं। गुलाबी, नीला-बैंगनी तथा पीला रंग क्रमशः बालसम (Balsam Flowers), कर्वी या कुरिंजी तथा स्मीथिया प्रजातियों के पौधों में फूल खिलने से पठार उन्हीं रंगों का नज़र आता है। अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN – International Union for Conservation of Nature) ने यहां 624 प्रजातियों की सूची बनाई है जिनमें 39 स्थानिक (Endemic Species) हैं अर्थात यहीं पाई जाती हैं। संघ ने 32 प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा बताया है जिनमें जलीय पौधा रोटेला तथा शाकीय सरपोज़िया मुख्य है। कोल्हापुर स्थित शिवाजी विश्वविद्यालय के वनस्पति शास्त्र विभाग के एक दल ने प्रो. एस. आर. यादव के नेतृत्व में 1792 हैक्टर में फैले पूरे कास पठार का लंबे समय तक सभी मौसम में अध्ययन कर बताया था कि वनस्पतियों (पुष्पीय व अन्य पौधे) की 4000 प्रजातियां यहां है। इसमें से 1700 ऐसी हैं जो यहां के अलावा दुनिया में कहीं और नहीं पाई जाती हैं। जून के महीने में खिलने वाला गुलाबी फूल का पौधा एपोनोजेटान सतारेंसिस (Aponogeton satarensis) मात्र यहीं पाया जाता है। कुरिंजी (Kurinji Flowers) की दो किस्में यहां ऐसी हैं जिनमें 7 वर्ष में एक बार फूल खिलते हैं। कीटभक्षी पौधे ड्रॉसेरा (Drosera) तथा यूट्रीकुलेरीया (Utricularia) भी यहां पाए जाते हैं।

कास पठार पर बसी इस फूलों की घाटी की प्रसिद्धि बढ़ने से मौसमी पर्यटकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इसे नियंत्रित करने हेतु प्रतिदिन 3000 दर्शकों को निर्धारित शुल्क लेकर प्रवेश की अनुमति दी जाती है (Tourist Regulations)। इको टायलेट्स बनाए गए हैं तथा प्लास्टिक उपयोग पर भी रोक है। पौधों पर वायु प्रदूषण के प्रभाव को नियंत्रित करने हेतु पेट्रोल-डीज़ल वाहनों के स्थान पर इलेक्ट्रिक वाहन (Electric Vehicles) बढ़ाए जा रहे हैं। आसपास के गांवों हेतु अलग से मार्ग बनाए जा रहे हैं तथा ग्रामीणों को गैस के सिलेंडर एवं धुआं रहित चूल्हे भी दिए गए हैं। यह विश्व धरोहर सस्ते पर्यटन स्थल में न बदले इस हेतु फार्म हाउस, होटल, बाज़ार, ऊर्जा निर्माण घर एवं पशुओं द्वारा चराई आदि को नियंत्रित या प्रतिबंधित करने के प्रयास भी जारी है। भारत दुनिया के उन 12 देशों में शामिल है जहां जैव विविधता (Biodiversity Hotspot) भरपूर है एवं इसमें उत्तर तथा दक्षिण दोनों स्थानों की फूलों की घाटियों का बड़ा योगदान है।(स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://en.wikipedia.org/wiki/Kas_Plateau_Reserved_Forest#/media/File:Kaas-7016.jpg

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