डॉ. सुशील जोशी
पिछले सप्ताह भारत सरकार ने 156 औषधि के नियत खुराक संयोजनों यानी फिक्स्ड डोज़ कॉम्बिनेशन्स (Fixed Dose Combinations – FDCs) के उत्पादन, विपणन और वितरण पर प्रतिबंध लगा दिया। इनमें आम तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले एंटीबायोटिक्स (Antibiotics), दर्द-निवारक (Painkillers), एलर्जी-रोधी दवाइयां तथा मल्टीविटामिन्स (Multivitamins) शामिल हैं।
यह निर्णय केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक विशेषज्ञ समिति तथा औषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड (Drug Technical Advisory Board – DTAB) की अनुशंसा के आधार पर लिया गया है। प्रतिबंध की अधिसूचना (21 अगस्त 2024) में इन FDC पर प्रतिबंध के मूलत: दो कारण दिए गए हैं:
1. सम्बंधित FDC में मिलाए गए अवयवों का मिश्रण तर्कहीन है। इन अवयवों का कोई चिकित्सकीय औचित्य नहीं है।
2. सम्बंधित FDC के उपयोग से मनुष्यों को जोखिम होने की संभावना है जबकि उक्त औषधियों के सुरक्षित विकल्प (Safer Alternatives) उपलब्ध हैं।
वैसे तो FDC के मामले में देश के चिकित्सा संगठन कई वर्षों से चिंता व्यक्त करते आए हैं। इस विषय पर विचार के लिए केंद्र सरकार के स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 2013 में सी. के. कोकाटे की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था। समिति ने FDC के मुद्दे पर विस्तृत विचार-विमर्श के बाद कई FDC को बेतुका घोषित किया था।
उस दौरान चले विचार-विमर्श का सार कई वर्षों पूर्व लोकॉस्ट नामक संस्था द्वारा प्रकाशित पुस्तक आम लोगों के लिए दवाइयों की किताब में प्रस्तुत हुआ था। आगे की चर्चा उसी पुस्तक के अंशों पर आधारित है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization – WHO) की विशेषज्ञ समिति के अनुसार सामान्यतः मिश्रित दवाइयों का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। इनका उपयोग तभी किया जाना चाहिए जब वैकल्पिक इकहरी दवाइयां (Single Drug Alternatives) किफायती न हों। FDC से “साइड प्रभावों का खतरा बढ़ता है और अनावश्यक रूप से लागत भी बढ़ती है तथा तुक्केबाज़ीनुमा बेतुकी चिकित्सा को बढ़ावा मिलता है।” जब FDC का उपयोग किया जाता है, तब प्रतिकूल प्रतिक्रिया का खतरा अधिक होता है और यह पता करना मुश्किल होता है कि प्रतिक्रिया किस अवयव की वजह से हुई है। FDC इसलिए भी बेतुकी हैं कि उनकी स्थिरता (Stability) संदिग्ध है। लिहाज़ा कई मामलों में समय के साथ इनका प्रभाव कम हो जाता है।
जैसे, स्ट्रेप्टोमायसिन (टी.बी. की दवाई) और पेनिसिलीन के मिश्रित इंजेक्शन (अब प्रतिबंधित) का उपयोग बुखार, संक्रमणों और छोटी-मोटी बीमारियों के लिए बहुतायत से किया गया है। यह गलत है क्योंकि इसकी वजह से टी.बी. छिपी रह जाती है। इसके अलावा, हर छोटी-मोटी बीमारी में स्ट्रेप्टोमायसिन के उपयोग का एक परिणाम यह होता है कि टी.बी. का बैक्टीरिया (Mycobacterium Tuberculosis) इस दवाई का प्रतिरोधी हो जाता है। इसी प्रकार से स्ट्रेप्टोमायसिन और क्लोरेम्फिनेकॉल के मिश्रण का उपयोग (दुरुपयोग) दस्त के लिए काफी किया जाता था। इस पर रोक लगाने के प्रयासों का दवा कंपनियों ने काफी विरोध किया था मगर 1988 में अंततः इस पर रोक लग गई थी। दरअसल यह मिश्रण निरी बरबादी था क्योंकि दस्त के 60 प्रतिशत मामले तो वायरस की वजह से होते हैं और मात्र जीवन रक्षक घोल (Oral Rehydration Solution – ORS) से इन पर काबू पाया जा सकता है, बैक्टीरिया-रोधी दवाइयों की कोई ज़रूरत नहीं होती। क्लोरेम्फिनेकॉल का अंधाधुंध उपयोग भी खतरनाक है क्योंकि इससे एग्रेनुलोसायटोसिस जैसे जानलेवा रक्त दोष पैदा हो सकते हैं। जब इसका उपयोग मिश्रण के रूप में किया जाता है, तो टायफॉइड बैक्टीरिया इसका प्रतिरोधी होने लगता है।
कई अन्य FDC को चिकित्सकीय दृष्टि से बेतुका पाया गया है। जैसे, विभिन्न एंटीबायोटिक्स के मिश्रण या उनके साथ कार्टिकोस्टीरॉइड्स या विटामिन जैसे पदार्थों के मिश्रण; बुखार और दर्दनिवारकों के मिश्रण जैसे इबुप्रोफेन+पेरासिटेमॉल (Ibuprofen+Paracetamol), एस्पिरिन+पेरासिटेमॉल (Aspirin+Paracetamol), डिक्लोफेनेक+पेरासिटेमॉल (Diclofenac+Paracetamol); दर्द निवारकों के साथ लौह, विटामिन्स या अल्कोहल के मिश्रण; कोडीन (Codeine) (जिसकी लत लगती है) के अन्य दवाइयों के साथ मिश्रण।
FDC के उपयोग के खिलाफ कुछ तर्क और भी हैं। एक है कि कई बार ऐसे मिश्रणों में दो एक-सी दवाइयों को मिलाकर बेचा जाता है जिसका कोई औचित्य नहीं है। इसके विपरीत कुछ FDC में दो विपरीत असर वाली औषधियों को मिला दिया जाता है।
FDC अलग-अलग औषधियों की मात्रा के स्वतंत्र निर्धारण की गुंजाइश नहीं देती। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि FDC में मिलाई गई दवाइयों के सेवन का क्रम भिन्न-भिन्न होता है (जैसे एक दवाई दिन में दो बार लेनी है, तो दूसरी दवाई दिन में तीन बार)। ऐसे में मरीज़ को अनावश्यक रूप से दोनों दवाइयां एक साथ एक ही क्रम में लेना होती है।
WHO के अनुसार FDC को निम्नलिखित स्थितियों में ही स्वीकार किया जा सकता है:
1. जब चिकित्सा साहित्य में एक साथ एक से अधिक दवाइयों के उपयोग को उचित बताया गया हो।
2. जब मिश्रण के रूप में उन दवाइयों का सम्मिलित असर अलग-अलग दवाइयों से अधिक देखा गया हो।
3. जब मिश्रण की कीमत अलग-अलग दवाइयों की कीमतों के योग से कम हो।
4. जब मिश्रण के उपयोग से मरीज़ द्वारा अनुपालन में सुधार हो (जैसे टी.बी. मरीज़ को एक से अधिक दवाइयां लेनी पड़ती हैं, और वे एकाध दवाई लेना भूल जाते हैं)।
भारत में वर्तमान में जो FDC बेचे जाते हैं उनमें से ज़्यादातर तर्कसंगत नहीं हैं क्योंकि उनके चिकित्सकीय फायदे संदिग्ध हैं। उदाहरण से तौर पर निमेसुलाइड के नुस्खों की भरमार का प्रकरण देखा जा सकता है। सन 2003 में फार्माबिज़ (Pharmabiz) के संपादकीय में पी.ए. फ्रांसिस ने लिखा था:
“…देश में निमेसुलाइड के 200 नुस्खे भारतीय औषधि महानियंत्रक (Drug Controller General of India – DCGI) की अनुमति के बगैर बेचे जा रहे हैं। इन 200 नुस्खों में से 70 तो निमेसुलाइड के सस्पेंशन हैं जबकि शेष 130 विभिन्न अन्य दवाइयों के साथ निमेसुलाइड के मिश्रण हैं। इस समूह में सबसे ज़्यादा तो निमेसुलाइड और पेरासिटेमॉल के मिश्रण हैं जिनकी संख्या 50 है। निमेसुलाइड और मांसपेशियों को शिथिल करने वाली दो दवाइयों (टिज़ेनिडीन और सेराशियोपेप्टिडेज़) के मिश्रण भी काफी प्रचलित हैं, इनके 52 ब्रांड्स उपलब्ध हैं। हैरत की बात यह है कि निमेसुलाइड के इतने सारे बेतुके मिश्रण देश में बेचे जा रहे हैं जबकि स्वयं निमेसुलाइड की सुरक्षा सवालों के घेरे में है…”
कुल मिलाकर, FDC पर रोक का निर्णय स्वास्थ्य के क्षेत्र में सही दिशा में एक कदम है हालांकि स्वास्थ्य क्षेत्र के कई कार्यकर्ता और जानकारी मिलने तक कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते। वर्तमान निर्णय के साथ एक दिक्कत यह है कि प्रत्येक FDC को लेकर विशिष्ट रूप से कोई विवरण नहीं दिया है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://th-i.thgim.com/public/sci-tech/health/rjwmde/article67194496.ece/alternates/LANDSCAPE_1200/NKV-GenericDrugs.jpg