डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन, सुशील चंदानी
जानवरों के विपरीत, पेड़-पौधे अपने शिकारियों से बचने के लिए भाग नहीं सकते – वे बस एक ही जगह जड़ खड़े रहते हैं। इसलिए पेड़ों ने अपनी सुरक्षा के लिए खुद को असंख्य रासायनिक ‘हथियारों’ (chemical weapons) से लैस किया है।
वैसे तो अपनी जगह से हिल-डुल न पाने के कारण समूचे पेड़-पौधे ही अपने शिकारियों से असुरक्षित होते हैं लेकिन पेड़-पौधों के वे हिस्से जो ज़मीन के नीचे होते हैं, हमलावरों से विशेष रूप से असुरक्षित होते हैं (underground threats). इनके भूमिगत खतरों की सूची लंबी है – बैक्टीरिया, कवक, कृमि, इल्लियां, घोंघे, चूहे आदि इस सूची में शामिल हैं (soil threats). अचरज न होगा कि सुरक्षा के लिए प्याज़ और लहसुन जैसे पौधों ने हर संभव तरह के सुरक्षा रसायनों से खुद को लैस किया है (onion and garlic, protective chemicals)। ये अपनी भूमिगत गाँठों (बल्बों) में भावी विकास के लिए भोजन (पोषण) संग्रहित करते हैं (bulbs, nutrition storage)।
तेईस सौ रसायन (2300 Chemicals)
हाल ही में, बहुत ही सूक्ष्म रासायनिक विश्लेषण करने वाले उपकरणों की मदद से पड़ताल करने पर पता चला है कि लहसुन की कलियों (या फांकों) में 2300 से अधिक रसायनों की ‘आणविक फौज’ (molecular arsenal) मौजूद होती है। इनमें से अधिकांश रसायनों की उपस्थिति का कारण हम अब तक समझ नहीं पाए हैं। इनमें से बमुश्किल 70 रसायन ही वर्तमान के पोषण चार्ट में शामिल हैं (nutritional chart). लहसुन इनमें से तीन पोषक तत्वों से मुख्य रूप से लबरेज़ है: मैंग्नीज़, सेलेनियम और विटामिन बी-6 (manganese, selenium, vitamin B6)।
लहसुन के कई अन्य घटक – जैसे थायोसल्फिनेट्स, लेक्टिन, सैपोनिन और फ्लेवोनॉइड्स – मनुष्यों में सुरक्षात्मक भूमिका निभा सकते हैं (thyiosulfates, lectins, saponins, flavonoids, protective role)। आश्चर्य की बात नहीं है कि मनुष्यों ने लंबे समय से अपने आहार में लहसुन को शामिल किया है (historical use of garlic)। 4000 साल पुरानी सुमेरियन मृदा तख्तियों में लहसुन के व्यंजनों का उल्लेख मिलता है (Sumerian tablets, garlic recipes)। और कई संस्कृतियों में लहसुन का उपयोग, पौष्टिक महत्व से परे, औषधीय गुणों के चलते किया जाता है (medicinal properties of garlic)।
भारत में (In India)
आयुर्वेद में, लहसुन वाला गर्म दूध (लहसुन क्षीरपाक) सांस सम्बंधी समस्याओं – जैसे दमा, खांसी, सर्दी-ज़ुकाम – में फायदेमंद माना जाता है (Ayurveda, garlic milk benefits)। साथ ही यह शक्तिवर्धक भी माना जाता है। इसी तरह, लहसुनी पानी का उपयोग टॉनिक के रूप में किया जाता है: यह पाचन सम्बंधी एंज़ाइमों के स्राव को उकसा कर पाचन में सुधार करता है, और इसके वातहारी गुण गैस बनने की समस्या को कम करते हैं (digestive tonic, garlic water benefits)।
लहसुन एवं सम्बंधित प्रजातियों के अन्य मसालों की खासियत है इनकी तीखी महक (pungent odor). यह महक इनमें सल्फर युक्त यौगिक से आती है (sulfur compounds)। लहसुन की खास महक एलिसिन (Allicin) नामक रसायन से आती है। लेकिन साबुत लहसुन या उसकी साबुत कली में एलिसिन मौजूद नहीं होता है (allicin formation). एलिसिन तो लहसुन में तब बनता है जब उसमें मौजूद एलिनेज़ (Alliinase) नामक एंज़ाइम गंधहीन एलीन (Alliin) से क्रिया करता है (enzyme reaction, alliin). जब हम लहसुन को काटते, कूटते, कुचलते या चबाते हैं तब ये दोनों (एलिनेज़ और एलीन) संपर्क में आते हैं और उनकी परस्पर क्रिया के फलस्वरूप एलिसिन बनता है (garlic preparation).
एलिसिन, ट्राइजेमिनल (trigeminal) तंत्रिका में संवेदी न्यूरॉन्स पर पाए जाने वाले ग्राहियों के साथ जुड़ता है (sensory neurons). ये ग्राही मुंह और नाक की संवेदनाओं को ग्रहण करते हैं (sensory receptors)। लहसुन की तीखी महक ग्राहियों से इसी जुड़ाव का नतीजा है (pungent sensation)।
एलिसिन और लहसुन के अन्य घटक जैसे डायलिल डाईसल्फाइड शोथ को प्रभावित करते हैं (diallyl disulfide, inflammation). इसके लाभकारी प्रभावों में रक्तचाप का नियंत्रण और हृदय सम्बंधी स्वास्थ्य का ख्याल रखना शामिल हैं (blood pressure control, heart health)। एक अन्य घटक, फ्लेवोनॉइड ल्यूटिओलिन, एमिलॉयड बीटा प्लाक के बनने को और उसके एक जगह जुटने को रोकता है (flavonoid luteolin, amyloid beta plaque); एमिलॉयड बीटा प्लाक का जमघट अल्ज़ाइमर रोग की प्रमुख निशानी है (Alzheimer’s disease).
लहसुन पर केंद्रित शोध भविष्य में लहसुन में पाए जाने वाले कई अन्य रसायनों की भूमिकाओं को उजागर कर सकते हैं (future research, garlic chemicals)। संभव है कि इनमें से कुछ रसायन, अकेले ही या किसी अन्य रसायन के साथ, मानव स्वास्थ्य की बेहतरी में योगदान देते हों (health benefits). लेकिन वर्तमान में हमें यह मालूम है कि लाभ के लिए हमारे आहार में लहसुन का संतुलित मात्रा में उपयोग महत्वपूर्ण है (balanced consumption). ताकि इसकी अति के चलते होने वाले सीने में जलन और दस्त जैसे दुष्प्रभावों से बचा जा सके (side effects, heartburn, diarrhea)। कुछ चिकित्सकों का कहना है कि हर दिन चार ग्राम सही मात्रा है (recommended dosage, 4 grams daily)।
भारत, लहसुन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है (India, second largest producer of garlic)। लहसुन की बढ़िया किस्में (जैसे रियावन लहसुन) मध्य प्रदेश के नीमच और रतलाम से आती हैं (Riyavan garlic, Neemuch, Ratlam); मध्य प्रदेश लहसुन का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है (largest producer state)। दक्षिण भारत में, कर्नाटक के गदग की लहसुन की स्थानीय किस्में अपने तेज़, और तीखे स्वाद और सुगंध के कारण खूब बिकती हैं (Gadag garlic, Karnataka). और फिर कई कश्मीरी किस्में भी हैं (Kashmiri varieties).
आप चाहें जिस भी किस्म के लहसुन इस्तेमाल करें, थोड़ा सा लहसुन ज़ायका बढ़ा सकता है और आपको सेहतमंद रखने में मदद कर सकता है (garlic benefits, enhance taste). (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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