नासा (NASA) ने घोषणा की है कि उसके परसेवरेंस रोवर (Perseverance Rover) द्वारा मंगल ग्रह (Mars) पर खोजी गई एक चट्टान पर ऐसे चिंह मिले हैं जो इस बात के प्रमाण हो सकते हैं कि मंगल पर अतीत में कभी सूक्ष्मजीवी जीवन (Microbial Life) रहा होगा। नासा के मुताबिक यह चट्टान इस बात का स्पष्ट प्रमाण देती है कि कभी यहां पानी (Water), कार्बनिक पदार्थ (Organic Matter) थे और ऐसी अभिक्रियाएं हुई थीं जो ऊर्जा का स्रोत हो सकती हैं।
लेकिन…जी हां लेकिन। इस निष्कर्ष को लेकर कई अगर-मगर हैं और सभी वैज्ञानिक इससे सहमत नहीं हैं। कइयों का तो कहना है कि मंगल की खोजबीन (Mars Exploration) के इतिहास में ऐसे कई ‘रोमांचक’ क्षण आए और गए हैं। ऐसी सबसे मशहूर चट्टान एलन हिल्स 84001 (Allan Hills 84001) रही है। यह दरअसल अंटार्कटिका में खोजी गई एक उल्का (Meteorite) थी। 1996 में साइंस पत्रिका में शोधकर्ताओं ने दावा किया था कि इसमें बैक्टीरिया के नैनो-जीवाश्म (Nano-Fossils) मौजूद थे। अलबत्ता, आज अधिकांश शोधकर्ता मानते हैं कि इस पर मिली ‘जीवाश्मनुमा’ रचनाएं जीवन के बगैर भी बन सकती हैं। इसी प्रकार का शोरगुल तब भी मचा था जब मार्स रोवर (Mars Rover) ने गेल क्रेटर (Gale Crater) में तमाम किस्म के कार्बनिक अणु (Organic Molecules) खोज निकाले थे। मार्स रोवर पर एक रासायनिक प्रयोगशाला भी थी।
लेकिन परसेवरेंस पर ऐसी कोई प्रयोगशाला नहीं है। वह जो भी चट्टानी नमूने (Rock Samples) खोदता है उन्हें एक कैप्सूल में भरकर जमा करता रहता है, जिन्हें बाद में मार्स सैम्पल रिटर्न मिशन (Mars Sample Return Mission) द्वारा पृथ्वी पर भेजा जाएगा। फिलहाल वह मिशन टल गया है। तो बगैर प्रयोगशाला के, महज़ चेयावा फॉल्स (Jezero Crater) से खोदी गई चट्टान के अवलोकनों के आधार पर सारा हो-हल्ला है। माना जा रहा है कि इस स्थान पर कभी कोई नदी (River) बहती थी। उसके साथ आई गाद ही अश्मीभूत हो गई है। इस चट्टान में कैल्शियम सल्फेट (Calcium Sulfate) से बनी शिराओं के बीच-बीच में चकत्ते हैं जैसे तेंदुओं की खाल पर होते हैं। नासा से जुड़े वैज्ञानिकों का मत है कि ये चकत्ते ऐसी रासायानिक अभिक्रियाओं के संकेत हैं जो धरती पर सूक्ष्मजीवों को ऊर्जा मुहैया कराती हैं।
रोवर पर लगे स्कैनर से चट्टान में कार्बनिक यौगिकों (Organic Compounds) की उपस्थिति का भी पता चला है। यह तो सही है कि ऐसे कार्बन यौगिक (Carbon Compounds) जीवन की अनिवार्य निर्माण इकाइयां होते हैं लेकिन ये गैर-जैविक प्रक्रियाओं से भी बन सकते हैं। सबसे रहस्यमयी तो तेंदुआ चकत्ते हैं – इन मिलीमीटर साइज़ के चकत्तों में फॉस्फोरस (Phosphorus) व लौह (Iron) पाए गए हैं। पृथ्वी पर ऐसे चकत्ते तब बनते हैं जब कार्बनिक पदार्थ जंग लगे लोहे से क्रिया करते हैं। यह क्रिया सूक्ष्मजीवों को ऊर्जा प्रदान कर सकती है। लेकिन इस तथ्य की अन्य व्याख्याएं भी हैं। जैसे चट्टान में पाए गए खनिज यह भी दर्शाते हैं कि यह ज्वालामुखी के लावा (Volcanic Lava) से बनी हैं और लावा का उच्च तापमान किसी जीवन को पनपने नहीं देगा।
बहरहाल, परसेवरेंस अब तक 22 चट्टानें इकट्ठी कर चुका है। इनमें से कई में ऐसे पदार्थ मिले हैं जो पृथ्वी पर सूक्ष्मजीवों को सहारा दे सकते हैं। लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ये नमूने पृथ्वी पर पहुंच पाएंगे क्योंकि यह काम बहुत महंगा (Expensive) है। कुछ लोगों का तो कहना है कि यह सारा हो-हल्ला फंडिंग (Funding) जारी रखने के लिए है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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