ज़ुबैर सिद्दिकी
मंगल ग्रह को पृथ्वीनुमा बनाने का विचार टेराफॉर्मिंग (Terraforming) यानी सर्द, बंजर ग्रह को मनुष्यों के रहने योग्य (habitable) बनाना लंबे समय से विज्ञान कथाओं का प्रिय विषय रहा है। और नए अध्ययन का निष्कर्ष है कि यह महत्वाकांक्षी लक्ष्य पहले की तुलना में अधिक सुलभता से प्राप्त किया जा सकता है। साइन्स एडवांसेस (Science Advances) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, मंगल के वायुमंडल (Mars atmosphere) में छोटे कण इंजेक्ट करने से ग्रह काफी गर्म हो सकता है, जिससे यह मानव निवास के लिए उपयुक्त हो जाएगा।
अध्ययन से पता चलता है कि हर साल मंगल के वायुमंडल में विशेष रूप से तैयार किए गए लगभग 20 लाख टन कणों को प्रविष्ट कराकर ग्रह का तापमान कुछ ही महीनों में 10 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ाया जा सकता है। यह तापमान वृद्धि मंगल पर तरल पानी (liquid water on Mars) की उपस्थिति के लिए पर्याप्त है, जो ग्रह को रहने योग्य बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
मंगल वर्तमान में एक ठंडा और दुर्गम स्थान है, जिसका औसत तापमान ऋण 62 डिग्री सेल्सियस के आसपास है। इसका पतला वायुमंडल और सूरज की कमज़ोर रोशनी के कारण पानी का तरल रूप में रहना असंभव है, जबकि यह जीवन (life on Mars) के लिए अनिवार्य है। वैसे, मंगल पर अरबों वर्ष पहले बहता हुआ पानी था, लेकिन आज जो कुछ बचा है वह ज़्यादातर ध्रुवीय बर्फ के रूप में है या सतह के नीचे जम गया है।
मंगल ग्रह को गर्म करने का विचार पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग (global warming) को बढ़ावा देने वाली प्रक्रिया के समान है – वहां एक कृत्रिम ग्रीनहाउस प्रभाव (greenhouse effect) उत्पन्न किया जा सकता है। वैज्ञानिक ऐसे पदार्थों की खोज कर रहे हैं जिन्हें मंगल के वायुमंडल में छोड़कर गर्मी को ठीक वैसे ही कैद किया जा सके जैसे पृथ्वी पर कार्बन डाईऑक्साइड और जल वाष्प करते हैं।
पिछले सुझावों में इस प्रभाव को उत्पन्न करने के लिए क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) या सिलिका एरोजेल का उपयोग करने का विचार शामिल था। हालांकि, इसके लिए पृथ्वी से बड़ी मात्रा में सामग्री ले जाने की आवश्यकता होगी, जो वर्तमान तकनीक के साथ व्यावहारिक नहीं है।
नए अध्ययन में मंगल ग्रह पर पहले से ही प्रचुर मात्रा में मौजूद पदार्थों से बने कणों का उपयोग करने का प्रस्ताव है। इसमें विशेष रूप से मंगल ग्रह की धूल में पाए जाने वाले लोहे और एल्यूमीनियम के यौगिक हैं। नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के पीएच.डी. छात्र समानेह अंसारी के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने छोटी छड़ों के आकार के कण तैयार किए हैं जो मंगल ग्रह की धूल के कणों से लगभग दुगनी साइज़ के हैं। इन कणों को मंगल ग्रह पर ही बनाकर वायुमंडल में छोड़ा जा सकता है जहां ये ग्रह की सतह की गर्मी को सोखने और उसे वापस मंगल की सतह पर पहुंचाने में मददगार हो सकते हैं। गौरतलब है कि सारे विचारों को कंप्यूटर अनुकृतियों (computer simulations) के आधार पर जांचा गया है।
कंप्यूटर सिमुलेशन से पता चलता है कि यह विधि मंगल को लगभग 10 डिग्री सेल्सियस तक गर्म कर सकती है, जबकि इसके लिए अन्य प्रस्तावित विधियों की तुलना में बहुत कम सामग्री की आवश्यकता होगी। 20 लाख टन कणों की तुलना में इस तरीके में कहीं कम सामग्री लगेगी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि यह सामग्री मंगल पर ही विद्यमान है।
हालांकि, मंगल का तापमान बढ़ाना इसे रहने योग्य बनाने की दिशा में मात्र एक कदम है। जहां पृथ्वी के वायुमंडल में 21 प्रतिशत ऑक्सीजन है वहीं लाल ग्रह के वायुमंडल में मात्र 0.1 प्रतिशत है। और तो और, मंगल पर वायुमंडलीय दबाव इतना कम है कि मानव रक्त उबलने लगे। इसके अतिरिक्त, मंगल पर हानिकारक पराबैंगनी विकिरण (ultraviolet radiation) से बचाने के लिए ओज़ोन परत का अभाव है, और इसकी मिट्टी फसल उगाने के लिए बहुत अधिक नमकीन या ज़हरीली भी है।
इन चुनौतियों के बावजूद, शोध दल प्रयोगशाला में अपने प्रस्तावित कणों का परीक्षण जारी रखने और ग्रीनहाउस प्रभाव को बढ़ाने के लिए अन्य संभावित सामग्रियों और आकृतियों का पता लगाने की योजना बना रहे हैं।
मंगल पर बड़े पैमाने पर इंजीनियरिंग करना फिलहाल दूर की कौड़ी है, लेकिन यह शोध हमें यह समझने के करीब लाता है कि मंगल को मानवता के लिए एक संभावित नया घर (new home for humanity) बनाने के लिए क्या करना पड़ सकता है। अध्ययन के सह लेखक युनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के प्रोफेसर एडविन काइट कहते हैं कि यह कार्य न केवल मंगल ग्रह के बारे में हमारे ज्ञान को बढ़ाता है, बल्कि पृथ्वी के जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र का अध्ययन करने के महत्व को भी रेखांकित करता है ताकि अन्यत्र इन्हें बनाने की कल्पना की जा सके। और शायद ऐसे अध्ययन हमें पृथ्वी को जीवन के विभिन्न रूपों के लिए ज़्यादा अनुकूल बनाने में भी मददगार साबित हों। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.zwyzvzm/full/_20240807_mars_terraforming-1723053606127.jpg