कई लोग जानते हैं कि कुत्ते हमारी भावनाओं, हमारे मूड को महसूस कर पाते हैं। संभव है कि उनकी यह क्षमता जन्मजात हो। हाल ही में एनिमल बिहेवियर में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि उनमें यह क्षमता मनुष्यों के संग सह-विकास का परिणाम है।
यह तो देखा गया है कि घोड़े मनुष्यों की हंसी की तुलना में उनके गुर्राने पर अधिक गौर करते हैं। इसी प्रकार से, सूअर मनुष्यों की आवाज़ पर अधिक सशक्त प्रतिक्रिया देते हैं बजाय जंगली सूअरों की आवाज़ पर। लेकिन इस बात को बहुत कम समझा गया है कि जानवर केवल इंसानी ध्वनियों पर प्रतिक्रिया देते हैं, या वे उनके पीछे की भावनाओं को समझते भी हैं।
अधिकांश जानवर केवल अपनी प्रजाति के अन्य सदस्यों की भावनाओं को ही सटीकता से प्रतिध्वनित कर सकते हैं। लेकिन कुछ अध्ययन बताते हैं कि कुत्ते (Canis familiaris) अपने आसपास के लोगों की भावनाओं को हूबहू व्यक्त कर सकते हैं।
लेकिन एक सवाल यह उठता है कि क्या इस भावनात्मक ‘छूत’ का आधार ‘भावनाओं के सार्वभौमिक ध्वनि संकेतों’ में है जिन्हें सभी पालतू जानवर समझ सकते हैं, या यह विशेषता सिर्फ कुत्तों जैसे संगी जानवरों में है? इसका जवाब पाने के लिए शोधकर्ताओं ने मानव ध्वनियों के प्रति कुत्तों और पालतू सूअरों (Sus scrofa domesticus) की तनाव प्रतिक्रिया की तुलना की।
कुत्तों की तरह, पालतू सूअर भी सामाजिक जानवर होते हैं जिन्हें बचपन से ही पाला जाता है। इसलिए यदि भावनात्मक लगाव महज लोगों के साथ निकटता से सीखा जा सकता है, तो कुत्तों और पालतू सूअरों की इंसानी भावनात्मक ध्वनियों के प्रति प्रतिक्रिया समान होनी चाहिए। लेकिन एक अंतर है – कुत्तों के विपरीत, सूअरों को मनुष्यों ने अपने साथ सिर्फ पशुधन के रूप में रखा है, साथी के रूप में नहीं।
फैनी लेहोज़्की, इओटवॉस लौरेंड और पौला पेरेज़ फ्रैगा की टीम ने दुनिया भर के कुत्तों और सूअर मालिकों को अध्ययन में शामिल किया। और उन्हें उनके पालतू जानवरों के साथ एक कमरे में रखा। जानवरों को रोने या गुनगुनाने की रिकॉर्डेड आवाज़ें सुनाई गईं। इन आवाज़ों के प्रति जानवरों के व्यवहार – जैसे कुत्तों के मामले में कराहना और जम्हाई लेना, और सूअरों के मामले में कान तेज़ी से फड़फड़ाना का अवलोकन किया गया – और देखा गया कि किसने इस तरह कितनी बार प्रतिक्रिया दी।
जैसा कि अपेक्षित था, कुत्ते हमारी ध्वनियों की भावनाओं को समझने में काफी कुशल थे – वे रोने की आवाज़ पर तनावग्रस्त हो जाते थे और गुनगुनाने की आवाज़ पर काफी हद तक अप्रभावित रहते थे। हालांकि सूअरों ने भी रोने की आवाज़ पर थोड़ा तनाव ज़ाहिर किया लेकिन उनके व्यवहार से लगता है कि उनके लिए गुनगुनाना कहीं अधिक तनावपूर्ण आवाज़ थी।
जैसा कि परिणाम से ज़ाहिर है पशुधन जानवरों की तुलना में साथी जानवरों में मनुष्यों के साथ भावनात्मक लगाव अधिक दिखता है। लेकिन विशेषज्ञ इस पर अधिक अध्ययन करने की ज़रूरत बताते हैं, क्योंकि सूअर भी काफी संवेदनशील होते हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.aae0219/full/sn-dogs.jpg