यदि कभी अंतरिक्ष में जाने का मौका मिले और यदि आप खाने-पीने के शौकीन हैं तो आपको यह सफर अखरेगा। आपको शायद मालूम नहीं होगा कि अंतरिक्ष यात्रियों को कई-कई दिन सूखा (निर्जलित) फ्रोज़न भोजन खाकर गुज़ारना पड़ता है, जो काफी बेस्वाद और नीरस होता है।
दिक्कत यह है कि अंतरिक्ष में खाना पकाना आसान नहीं होता। अंतरिक्ष में न के बराबर गुरुत्वाकर्षण होता है। वहां हमारी तरह खुली कढ़ाई, तवे या पतीली में खाना पकाना संभव नहीं है। और यदि वहां खाना पकाने में तमाम अगर-मगर न होते तो अंतरिक्ष यात्री अवलोकनों और अध्ययन के साथ खाना भी पका रहे होते। दरअसल, अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा और मिशन की सफलता सर्वोपरी होती है। लिहाज़ा कुछ शोधकर्ताओं को इसकी परवाह ही नहीं होती कि वहां खाना लज़ीज है या बेस्वाद – बस जीवन के लिए ज़रूरी दाना-पानी नसीब हो जाना चाहिए।
लेकिन फूड साइंटिस्ट लैरिसा ज़ॉउ व कुछ अन्य शोधकर्ता चाहते हैं कि अंतरिक्ष यात्री हमेशा ऐसा बेस्वाद, फ्रोज़न खाना न खाएं। वास्तव में उनकी कोशिश है कि अंतरिक्ष यात्री कुछ ताज़ा पकाकर खा पाएं। तर्क है कि अंतरिक्ष यात्रियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का दुरुस्त रहना ज़रूरी है और उसमें ताज़ा पका हुआ खाना महत्व रखता है।
पहले भी ऐसे प्रयास किए गए हैं। जैसे, 2019 में अंतरिक्ष यात्रियों ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर एक छोटे ओवन में कुकीज़ बनाई थीं। फिर सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में सेंकने और तलने के उपकरण भी विकसित किए गए हैं। इस प्रयास में ज़ॉऊ ने नगण्य गुरुत्वाकर्षण में भोजन पकाने/उबालने वाली मशीन, हॉटपॉट (H0TP0T) बनाई है। एल्यूमीनियम और कांच से बना यह पात्र चीनी परंपरा के एक सामुदायिक उबालने वाले बर्तन के समान है।
लेकिन इनका अभी अंतरिक्ष तक पहुंचना और वास्तविक परिस्थितियों में उपयोग परखा जाना बाकी है।
अंतरिक्ष के जीवन को मात्र ज़रूरतों से एक कदम आगे बढ़कर, थोड़ा आरामदायक बनाने के दृष्टिकोण को समझाने के लिए ऑरेलिया इंस्टीट्यूट ने TESSERAE पेवेलियन बनाया है जो इसका नमूना पेश करता है कि अंतरिक्ष स्थितियों में बेहतर रहन-सहन किस तरह का हो सकता है। इस पेवेलियन की रसोई में H0TP0T उल्टा लटका हुआ है, जो दर्शाता है कि इस बर्तन का उपयोग अंतरिक्ष यात्री किसी भी दिशा में कर सकते हैं। इसे अगस्त में प्रदर्शित किया जाएगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://static.scientificamerican.com/dam/m/39981adcdd55e7a4/original/H0TP0T.jpg?w=900