1957 में पहले कृत्रिम उपग्रह के प्रक्षेपण के बाद पृथ्वी की कक्षा, खासकर लो अर्थ ऑर्बिट (LEO), में उपग्रहों की भरमार हो गई है; अब तक तकरीबन 14,450 उपग्रह पृथ्वी की विभिन्न कक्षाओं में छोड़े जा चुके हैं।
लेकिन ये सभी उपग्रह हमेशा सक्रिय या ‘जीवित’ नहीं रहते। अपनी तयशुदा उम्र या काम के बाद वे ‘मर’ जाते हैं। बेकार पड़ चुके उपग्रहों को वहां से हटाना होता है वरना वे अंतरिक्ष में बढ़ रही उपग्रहों की भीड़ और मलबे को और बढ़ाएंगे। इसलिए पृथ्वी की भूस्थैतिक कक्षा में स्थापित उपग्रहों को धक्का देकर अधिक ऊंचाई की ‘कब्रस्तान कक्षा’ में भेज दिया जाता है, हालांकि इस तरह अंतरिक्ष में मलबा तो बरकरार ही रहता है। वहीं पृथ्वी की करीबी कक्षा में स्थापित उपग्रहों को धीमा किया जाता है। रफ्तार धीमी पड़ने पर ये पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश करते हैं, और जलकर नष्ट हो जाते हैं। लेकिन जलकर नष्ट होने से इनमें से एल्यूमीनियम ऑक्साइड और अन्य धातु कण वायुमण्डल में फैल जाते हैं, जो खतरा साबित हो सकते हैं।
जियोफिज़िकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि 250 किलोग्राम का एक उपग्रह वायुमण्डल में जलने पर करीब 30 किलोग्राम एल्यूमीनियम ऑक्साइड छोड़ता है। पाया गया है कि वर्ष 2022 में उपग्रहों को इस तरह ठिकाने लगाने के चलते वायुमण्डल में एल्यूमीनियम ऑक्साइड की मात्रा में 29.5 प्रतिशत (17 मीट्रिक टन) की वृद्धि हुई है। भविष्य में उपग्रह प्रक्षेपण की योजना के आधार पर अनुमान है कि वायुमण्डल में प्रति वर्ष करीब 360 मीट्रिक टन एल्यूमीनियम ऑक्साइड की वृद्धि होगी। नतीजतन ओज़ोन परत को क्षति पहुंचेगी।
इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए क्योटो युनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने लकड़ी का उपग्रह, लिग्नोसैट (LignoSat), बनाया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि लिग्नोसैट पारंपरिक उपग्रहों में इस्तेमाल की जाने वाली धातुओं की तुलना में अधिक टिकाऊ और कम प्रदूषणकारी है। शोधकर्ताओं का कहना है कि अपना काम समाप्त कर जब यह पृथ्वी पर वापस आएगा तो इसकी लकड़ी पूरी तरह से जल जाएगी और केवल जलवाष्प और कार्बन डाईऑक्साइड वायुमण्डल में मुक्त होगी। लकड़ी से उपग्रह बनाने का जो एक और फायदा दिखाई देता है वह है कि यह अंतरिक्ष के पर्यावरण को झेल सकता है और रेडियो तरंगों को अवरुद्ध नहीं करता है, जिसके चलते एंटीना को इसके अंदर लगाया जा सकता है।
घनाकार लिग्नोसैट की लंबाई-चौड़ाई-ऊंचाई लगभग 10-10 सेंटीमीटर है। इसका ढांचा मैग्नोलिया लकड़ी का बनाया गया है। इस पर सौर पैनल, सर्किट बोर्ड और सेंसर लगाए गए हैं जिनकी मदद से लकड़ी पर पड़ रहे दबाव, तापमान, भू-चुंबकीय बलों और विकिरण को मापा जाएगा। साथ ही साथ इससे रेडियो सिग्नल भेजने और प्राप्त करने की क्षमता का परीक्षण भी किया जाएगा। इसकी तख्तियों को जोड़ने के लिए गोंद या स्क्रू की बजाय लकड़ी जोड़ने की पारंपरिक जापानी विधि से एल्यूमीनियम के फ्रेम में कसा गया है।
लिग्नोसैट को इस साल सितम्बर में प्रक्षेपित किया जाएगा। उपग्रह की लकड़ी की तख्तियां वास्तविक परिस्थितियों में कितना कारगर रहती हैं यह तो कक्षा में पहुंचकर काम शुरू करने के बाद ही अच्छे से स्पष्ट होगा। यदि सफल रहा तो भावी अंतरिक्ष मिशनों में लकड़ी के उपयोग की संभावना बढ़ सकती है।
हालांकि लिग्नोसैट जलने पर मात्र जलवाष्प और कार्बन डाईऑक्साइड ही छोड़ता है लेकिन कार्बन डाईऑक्साइड की समस्याओं से भी हम भलीभांति अवगत हैं। इसलिए बड़े पैमाने पर लकड़ी-उपग्रहों के उपयोग के पर्यावरणीय असर का आकलन भी ज़रूरी है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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