जलवायु संकट पर कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता

ई वर्षों से वैज्ञानिक वैश्विक तापमान में वृद्धि और पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस की ऊपरी सीमा को लेकर निरंतर चेतावनी देते आए हैं। हालिया स्थिति देखें तो पिछले 11 महीनों (जुलाई 2023 से मई 2024) का औसत तापमान निरंतर इस निर्धारित सीमा से ऊपर रहा है। युरोपीय संघ के कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस का दावा है कि पिछले महीने (मई 2024) का तापमान पूर्व-औद्योगिक औसत से 1.52 डिग्री अधिक था।

विश्व मौसम संगठन के अनुसार 80 प्रतिशत संभावना है कि अगले पांच वर्षों में से कोई एक वर्ष ऐसा होगा जब औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगा जबकि 2015 में ऐसा होने की संभावना लगभग शून्य थी।

हालांकि, तापमान में इन अस्थायी उछालों का मतलब यह नहीं है कि हम हमेशा के लिए 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गए हैं। पेरिस जलवायु समझौते का उद्देश्य दीर्घकालिक औसत तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना है। इसमें यह स्पष्ट नहीं है कि वृद्धि के आकलन में समय का पैमाना क्या होगा।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है कि यदि हम जमकर काम करें तो 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा अभी भी हासिल की जा सकती है; ज़रूरत है ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए कड़ी मेहनत की।

1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को पूरा करने का सबसे उचित तरीका उत्सर्जन में भारी कटौती करना है। इसके लिए विशेषज्ञों का मत है कि वैश्विक उत्सर्जन 2025 तक चरम पर पहुंचकर कम होने लगना चाहिsए। इसे 2030 तक 42 प्रतिशत कम हो जाना चाहिए और 2050 तक नेट-ज़ीरो। फिलहाल तो हम इस मंज़िल से बहुत दूर हैं, क्योंकि वैश्विक स्तर पर हम हर साल लगभग 40 अरब मीट्रिक टन कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जित कर रहे हैं।

इस मामले में जलवायु विशेषज्ञ जिम स्की का मानना है कि कभी-कभार 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान बढ़ना लगभग अपरिहार्य है। हालांकि, उचित प्रयासों से तापमान को इस सीमा से नीचे लाना संभव है। ऐसा न करने पर समुद्र का जलस्तर बढ़ने और कई प्रजातियों के विलुप्त होने जैसी अपरिवर्तनीय घटनाएं घट सकती हैं। इसके अलावा, 1.5 डिग्री सेल्सियस से थोड़ी भी वृद्धि छोटे द्वीप देशों और तटीय समुदायों के लिए बहुत गंभीर परिवर्तन ला सकती है। इसलिए, इस सीमा में किसी भी तरह की वृद्धि और उसकी अवधि को कम करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

बहरहाल, चुनौती तो वास्तव में बहुत बड़ी है, लेकिन अभी भी हमारे पास मौका है। भविष्य की पीढ़ियों के लिए ग्रह को तभी सुरक्षित किया जा सकता है जब वैश्विक उत्सर्जन में तत्काल और पर्याप्त कमी की जाए। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://static.scientificamerican.com/dam/m/2772db8f3e8a62c8/original/GettyImages-1233960564.jpg?w=1200

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