चींटियां भी अंग-विच्छेदन शल्य क्रिया करती हैं!

ई बार डॉक्टरों को किसी घायल मरीज़ की जान बचाने के लिए नागंवार फैसला करना पड़ता है – मरीज़ की भुजा या कोई अंग काटकर अलग करना। इसे अंग-विच्छेद या एम्प्यूटेशन कहते हैं। क्या अन्य जंतु भी ऐसा करते हैं?

हाल ही में जर्मनी के वुर्ज़बर्ग विश्वविद्यालय के जीव वैज्ञानिक एरिक फ्रैंक ने ऐसा ही एक चौंकाने वाला अवलोकन रिपोर्ट किया है। वे और उनके सहयोगी फ्लोरिडा कारपेंटर चींटियों (Camponotus floridanus) को अपनी प्रयोगशाला में लाए। वे देखना चाहते थे कि चोट लगने पर ये चींटियां क्या करती हैं।

देखा गया है कि अधिकांश प्रजातियों की चीटियां अपने घायल साथी की चोटग्रस्त या कटी हुई भुजा पर सूक्ष्मजीव-रोधी लेप लगा देती हैं। अधिकांश प्रजातियों में कुछ ग्रंथियां सूक्ष्मजीव-रोधी पदार्थों का स्राव करती हैं और ये पदार्थ बैक्टीरिया व फफूंद संक्रमण से बचाव करते हैं।

लेकिन कारपेंटर चींटियां अलग तरीका अपनाती हैं। वे तो शेष बची भुजा को चबा डालती हैं। कहा जा सकता है कि वे उस भुजा का एम्प्यूटेशन कर देती हैं। मनुष्य के अलावा यह पहला जंतु देखा गया है जो इस तकनीक का सहारा लेता है। इन चींटियों में उद्विकास के दौरान किसी वजह से उक्त ग्रंथियां नदारद हो गईं। तो फिर ये अपना बचाव कैसे करती होंगी?

इसी सवाल का जवाब पाने की दृष्टि से फ्रेंक के दल ने चींटियों की टांग को फीमर नामक हड्डी के निकट से काट दिया और घाव को मिट्टी में पाए जाने वाले एक बैक्टीरिया स्यूडोमोनास एरुजिनोसा (Pseudomonas aeruginosa) के संपर्क में रखा। इसके बाद कुछ चींटियों को अलग-थलग रहने दिया गया जबकि कुछ को उनकी बांबी में छोड़ दिया गया।

जिन चींटियों को बांबी में छोड़ा गया था, जल्दी ही उनके पास एक-दो साथी चींटियां पहुंच गईं। उन्होंने टांग के फीमर के ऊपर वाले हिस्से को कुतर डाला और पूरी टांग को अलग कर दिया। जिन चींटियों को यह ‘शल्य क्रिया’ मिली थी उनमें से 90 प्रतिशत जी गईं जबकि अलग-थलग रखी गई चींटियों में से मात्र 40 प्रतिशत ही बच पाईं।

कुछ मामलों में शोधकर्ताओं ने टांग को थोड़ा नीचे (टिबिया के पास) क्षतिग्रस्त किया। ऐसा करने पर उनकी साथी चींटियों ने टांग को काटकर अलग नहीं किया बल्कि सिर्फ घाव को चाटा ताकि अपनी जीभ से बैक्टीरिया वगैरह को साफ कर सकें। इस मामले में भी अलग-थलग पड़ी घायल चींटियों में से मात्र 10 प्रतिशत जीवित रहीं जबकि बांबियों में रखी गईं 75 प्रतिशत जीवित रहीं।

शोधकर्ताओं ने यह भी समझने की कोशिश की कि कारपेंटर चींटियां ये अलग-अलग रणनीतियां क्यों अपनाती हैं। उन्होंने पाया कि इसका सम्बंध चीटिंयों की शरीर क्रिया से है। फ्लोरिडा कारपेंटर चींटी की फीमर हड्डी से जुड़ी कई मांसपेशियां होती हैं जो हीमोलिंफ (हमारे रक्त जैसा) के बहाव को रोकती हैं, और प्रवाह बाधित होने पर बैक्टीरिया शरीर में अंदर प्रवेश नहीं कर पाते। हो सकता है कि इसी वजह से फीमर की चोट के मामले में एम्प्यूटेशन का सहारा लिया जाता है क्योंकि उन्हें इतना समय मिल जाता है। दूसरी ओर, टिबिया के इर्द-गिर्द इतनी मांसपेशियां नहीं होतीं जो हिमोलिंफ के प्रवाह को रोक सकें। अर्थात टिबिया चोट का उपचार तुरंत करना ज़रूरी होता है। वास्तव में शोधकर्ताओं ने जांच की तो पाया कि फीमर चोट के बाद एम्प्यूटेशन से बैक्टीरिया संक्रमण सचमुच रुक जाता है जबकि टिबिया चोट के संदर्भ में नहीं। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/content/article/ants-may-be-only-animal-performs-surgical-amputations

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