व्यापकता
पिछले महीने जब यह खबर आई कि तटीय और भीतरी शहरों सहित चीन के आधे से अधिक प्रमुख शहर ज़मीन में धंसते चले जा रहे हैं, तो कई लोगों को यह दुनिया के किसी सुदूर कोने में होने वाली कोई मामूली-सी घटना लगी। लेकिन यह घटना न केवल व्यापक और चिंताजनक है, बल्कि भारत समेत दुनिया के कई हिस्सों के लिए प्रासंगिक भी है। यहां तक कि हमारे यहां कुछ जगहों पर स्थिति बदतर भी हो सकती है। लेकिन पहले यह समझ लेते हैं कि यह खबर किस बारे में थी।
नेचर एंड साइंस में प्रकाशित रिपोर्ट बताती है कि चीन के तटीय और भीतरी शहरों समेत लगभग आधे प्रमुख शहर भूमि धंसाव का सामना कर रहे हैं। यह आकलन चीन के 20 लाख से अधिक आबादी वाले 82 शहरों के अध्ययन पर आधारित है। ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2120 तक चीन के तटीय शहरों के 10 प्रतिशत निवासी, यानी इन शहरों के 5.5 से 12.8 करोड़ लोग समुद्र तल से नीचे रह रहे होंगे, और बाढ़ों तथा अन्य अपूरणीय क्षति का सामना कर रहे होंगे। चीन के प्रमुख शहरों का 16 प्रतिशत क्षेत्र प्रति वर्ष 10 मि.मी. की तीव्र दर से धंसता जा रहा है। वहीं, लगभग 45 प्रतिशत क्षेत्र प्रति वर्ष 3 मि.मी. से अधिक की मध्यम दर से धंस रहा है। प्रभावित शहरों में राजधानी बीजिंग भी शामिल है।
शोधकर्ताओं ने उपग्रहों के रडार पल्स का उपयोग उपग्रह और ज़मीन के बीच की दूरी में परिवर्तन को मापने के लिए किया ताकि यह पता किया जा सके कि 2015 से 2022 के बीच इनके बीच की दूरी कैसे बदली। इस सूची में अधिकतर गैर-तटीय शहर शामिल हैं, जैसे कुनमिंग, नैन्निंग और गुइयांग। ये शहर अत्यधिक घनी आबादी वाले या औद्योगिक शहर नहीं हैं, फिर भी ये उल्लेखनीय धंसाव का सामना कर रहे हैं।
अन्य देश भी
ज़मीन के धंसाव की समस्या सिर्फ चीन तक सीमित नहीं है। जकार्ता इतनी तेज़ी से धंस रहा है कि इंडोनेशिया एक नए शहर को राजधानी बनाने पर विचार कर रहा है। जकार्ता के कुछ हिस्से एक दशक में एक मीटर से अधिक धंस गए हैं। फरवरी 2024 में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में पाया गया था कि दुनिया भर की लगभग 63 लाख वर्ग किलोमीटर भूमि पर निरंतर धंसाव का खतरा है। इंडोनेशिया सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है। वर्तमान में दुनिया के 44 मुख्य तटीय शहर इस समस्या से जूझ रहे हैं, और इनमें से 30 शहर एशिया में स्थित हैं।
मनीला, हो-ची-मिन्ह सिटी, न्यू ऑरलियन्स और बैंकॉक भी यही जोखिम झेल रहे हैं। ईरान की राजधानी तेहरान के कुछ हिस्से हर साल 25 सें.मी. तक धंस रहे हैं, जहां करीब 1.3 करोड़ लोग रहते हैं। नेदरलैंड इस तथ्य के लिए प्रसिद्ध है कि यहां की लगभग 25 प्रतिशत भूमि समुद्र सतह से नीचे चली गई है। अनुमान है कि वर्ष 2040 तक दुनिया की लगभग 20 प्रतिशत आबादी धंसावग्रस्त भूमि पर रह रही होगी।
ढाका एक ऐसे शहर का उदाहरण है जिसने बाढ़ आने की आवृत्ति बढ़ने के बाद यह पता लगाना शुरू किया कि यह शहर धंस रहा है। वर्तमान में, तेज़ी से फैल रहे इस शहर में भूमि धंसाव और इसके प्रभावों पर आंकड़े नदारद हैं। बड़े पैमाने पर भूजल दोहन के कारण भूजल स्तर हर वर्ष 2-3 मीटर तक गिर रहा है। वर्तमान में 87 प्रतिशत पानी की आपूर्ति भूजल से होती है, और यह कहा जा रहा है कि भूजल की बजाय सतही जल से आपूर्ति लेना आवश्यक हो गया है। लेकिन ऐसा करना मुश्किल है क्योंकि सतह पर मौजूद अधिकतर पानी प्रदूषित है।
उपग्रह डैटा के विश्लेषण से पता चला है कि 2010 के बाद से मेक्सिको की खाड़ी में समुद्र जल स्तर में वृद्धि वैश्विक औसत दर से दुगनी हुई है। पृथ्वी पर कुछ अन्य स्थानों पर भी ऐसी ही वृद्धि दर देखी गई है, जैसे कि युनाइटेड किंगडम के नज़दीकी नॉर्थ सी में।
पिछली एक सदी का ज्वार उठने का डैटा और हाल ही का ऊंचाई मापने का (अल्टीमेट्री) डैटा, दोनों इस बात का खुलासा करते हैं कि 2010-22 के दौरान यू.एस. पूर्वी तट और मेक्सिको की खाड़ी के तट पर समुद्र स्तर में तेज़ी से वृद्धि हुई है। इस प्रकार, 2010 के बाद से, समुद्र के स्तर में वृद्धि या सापेक्ष भूमि धंसाव बहुत ही असामान्य और अभूतपूर्व है। समुद्र सतह में हो रही तेज़ी से वृद्धि दर तो समय के साथ कम हो जाएगी, किंतु हाल के वर्षों में जल स्तर में जो वृद्धि हो चुकी है वह तो बनी रहेगी।
टेक्सास के गैल्वेस्टन में समुद्र का जलस्तर असाधारण दर से बढ़ा है — 14 वर्षों में 8 इंच। विशेषज्ञों का कहना है कि यह तेज़ी से धंसती ज़मीन के कारण और बढ़ गया है। यहां 2015 के बाद से कम से कम 141 बार उच्च ज्वार के कारण बाढ़ आई है, और वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इनकी आवृत्ति और बढ़ेगी।
संयुक्त राज्य अमेरिका में, 45 राज्यों में 44,000 वर्ग कि.मी. से अधिक भूमि सीधे तौर पर धंसाव से प्रभावित हुई है; इसमें से 80 प्रतिशत से अधिक मामले तो भूजल दोहन से जुड़े हैं। शोध से पता चला है कि धंसती ज़मीन और समुद्र के बढ़ते स्तर के कारण न्यूयॉर्क, बोस्टन, सैन फ्रांसिस्को और मायामी सहित 32 अमेरिकी तटीय शहरों के पांच लाख से अधिक लोग बाढ़ों का सामना करेंगे।
भारत में भूमि धंसाव
भारत में, भूमि धंसाव की व्यापक तस्वीर पेश करने और धंसाव के कारणों को बताने के लिए हमारे पास व्यवस्थित निगरानी या जानकारी की कमी है। हालांकि, यह देखते हुए कि भारत दुनिया में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है और यहां भूजल उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है, और यह देखते हुए कि पिछले 4 दशकों से भूजल अब तक भारत की जीवन रेखा रहा है, भारत में धंसाव के संभावित आयाम चिंताजनक हैं। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बांध निर्माता भी रहा है और संभवत: वर्तमान का सबसे बड़ा बांध निर्माता है। देश भर में धंसाव की निगरानी और मापन तुरंत शुरू करना ज़रूरी है। हमें डेल्टा क्षेत्रों में धंसाव पर बांधों के प्रभाव का भी आकलन करना चाहिए।
जैसा कि ऊपर बताया गया है नदियों के ऊपर बने बांधों में फंसी गाद की मात्रा और इस कारण डेल्टा क्षेत्रों तक नहीं पहुंच रही गाद को देखते हुए डेल्टा क्षेत्रों की स्थिति हमारे लिए चिंता का विषय होनी चाहिए।
भारत में हाल के दिनों में धंसाव की सबसे प्रसिद्ध घटना उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में हुई थी। यहां धंसाव में अन्य कारकों के अलावा निर्माणाधीन पनबिजली परियोजना की भूमिका होने का संदेह है, लेकिन यह मुद्दा अनसुलझा है।
भूमि धंसाव की कई घटनाएं हुई हैं। सबसे हालिया घटनाएं मई 2024 में रामबन और डोडा ज़िलों में और अब संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र के जम्मू और कश्मीर के उधमपुर में हुई हैं। इन घटनाओं के लिए सड़कों और रेलवे सुरंगों के लिए पहाड़ियों को काटने और विस्फोट करने, पनबिजली परियोजनाओं के प्रसार सहित कई कारकों को ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है।
अप्रैल 2024 में राजस्थान में भूमि धंसने की दो बड़ी घटनाएं हुई थीं, जिन्होंने भूगर्भशास्त्रियों और आम लोगों दोनों को चिंता में डाल दिया। दोनों ही घटनाएं रेगिस्तानी ज़िलों में हुईं, जिससे इन दोनों घटनाओं के बीच सम्बंध होने की आशंका बढ़ गई। 16 अप्रैल, 2024 को बीकानेर ज़िले की लूणकरणसर तहसील के सहजरासर गांव में डेढ़ बीघा जमीन धंस गई। उस समय यात्रियों से भरी एक ट्रेन वहां से गुज़र रही थी, लेकिन धंसती ज़मीन की चपेट में आने से बाल-बाल बच गई। धंसाव से करीब 70 फीट गहरा गड्ढा बन गया था। ग्रामीणों के अनुसार अब यह गड्ढा करीब 80-90 फीट गहरा हो गया है।
दूसरी घटना 6 मई 2024 को बाड़मेर ज़िले के नागाणा गांव में हुई। यहां ज़मीन में करीब डेढ़ किलोमीटर लंबी दो दरारें पड़ गई थीं। थार रेगिस्तान में हुई इन दो घटनाओं पर भूगर्भीय टीम ने अन्य कारणों के साथ भूजल दोहन को ज़िम्मेदार ठहराते हुए अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट प्रशासन को सौंप दी है। उपग्रह तस्वीरों, जल दोहन के आंकड़ों और अन्य तकनीकी सूचनाओं के आधार पर एक विस्तृत रिपोर्ट आने वाली है।
इससे स्पष्ट है कि हमें काफी अध्ययन करने की ज़रूरत है। (स्रोत फीचर्स)
लेख के दूसरे अंक में इस परिघटना के कारणों व समाधान की चर्चा करेंगे।
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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