पूर्वी रेलपथ पूर्वोत्तर भारत, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा को दक्षिणी राज्यों से जोड़ने वाली जीवन रेखा है। इस रेलमार्ग पर सफर करते हुए कई सुंदर नज़ारे दिखाई देते हैं; ट्रेन 900 वर्ग कि.मी. में फैली चिलिका झील के किनारे से होकर भी गुज़रती है।
इस रेलमार्ग से दक्षिण भारत की ओर यात्रा करते समय आप एक और दिलचस्प बात गौर करेंगे – कई यात्री दक्षिण भारतीय शहरों में स्थित नेत्र अस्पतालों में जा रहे होते हैं। दुनिया के कुल नेत्रहीन लोगों में से लगभग एक-चौथाई भारत में रहते हैं। इस रूट की ट्रेनों में गंभीर समस्याओं वाले मरीज़ और उनके साथ चिंतित रिश्तेदार दिखना एक आम दृश्य हैं; ये चेन्नई और हैदराबाद जैसे शहरों के प्रतिष्ठित और कम-खर्चीले या मुफ्त इलाज वाले नेत्र अस्पतालों की तलाश में जा रहे होते हैं।
पर्यावरणीय लागत
लेकिन ग्रामीण क्षेत्र से इन नेत्र विशेषज्ञों के पास आने-जाने का खर्चा और असुविधा इसमें एक बड़ी बाधा हो सकती है। एल. वी. प्रसाद आई इंस्टीट्यूट की बीएमसी ऑप्थेल्मोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन बताता है कि किसी ग्रामीण व्यक्ति को प्राथमिक उपचार पाने के लिए (कम से कम) 80 कि.मी. की यात्रा करनी पड़ती है। उन्नत चिकित्सा उपकरण और विशेषज्ञता वाले तृतीयक देखभाल केंद्र तक आने के लिए तो यह यात्रा और भी लंबी हो सकती है। एल. वी. प्रसाद आई इंस्टीट्यूट में आने वाले लगभग आधे मरीज़ ट्रेन से औसतन 1666 कि.मी. की यात्रा करके पहुंचते हैं। यही स्थिति चेन्नई के शंकर नेत्रालय और मदुरै के अरविंद आई हॉस्पिटल की भी है।
इसमें शामिल खर्चे के इतर यह पूरी यात्रा कार्बन पदचिन्ह छोड़ने में भी योगदान देती है। भारत के कुल कार्बन पदचिन्ह में लगभग 5 प्रतिशत योगदान स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का है, यानी यह हिस्सा इस क्षेत्र द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा है। जैसे-जैसे हमारा अधिकाधिक ज़ोर हरित (ऊर्जा अपनाने) होने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने पर जा रहा है, सुदूर चिकित्सा अपनी जगह बनाती जा रही है। सुदूर चिकित्सा में चिकित्सक दूर बैठे-बैठे रोगियों का निदान, उपचार और निगरानी करते हैं।
सुदूर नेत्र चिकित्सा
सुदूर नेत्र चिकित्सा के उपयोग के चलते नेत्र चिकित्सा एक बड़ी आबादी तक और कम सेवा-सुविधा वाले क्षेत्रों तक पहुंचने लगी है। सुदूर नेत्र चिकित्सा का एक गुप्त लाभ यह है कि नेत्र रोगों का शीघ्र पता लगाने, निदान करने और इन बीमारियों की प्रगति पर नज़र रखने में इमेजिंग प्रणालियां अहम हैं। इनमें से अधिकांश प्रणालियों में विशेष उपकरणों द्वारा आंख की आंतरिक सतह की तस्वीरें ली जाती हैं। फिर दूर बैठे नेत्र विशेषज्ञ छवियों का सावधानीपूर्वक अध्ययन करके निदान करते हैं।
मसलन, आंख के पीछे स्थित रेटिना की तस्वीरें फंडस फोटोग्राफी की मदद से ली जाती है, जो ग्लूकोमा और डायबिटिक रेटिनोपैथी जैसी स्थितियों का पता लगाने में सहायता करती है। इसी तरह, ऑप्टिकल कोहरेंस टोमोग्राफी से प्राप्त तस्वीरें रेटिना की परतों का ब्यौरा देती हैं और रेटिना डिटेचमेंट जैसी स्थितियों की निगरानी में खास उपयोगी होती हैं।
अधुनातन विकास की मदद से इस तरह के उपकरणों के आकार छोटे हो रहे हैं। कुछ मामलों में, ये उपकरण मोबाइल फोन के कैमरों से जुड़ जाते हैं। इससे इन उपकरणों का ग्रामीण लोगों के नज़दीकी प्राथमिक केंद्रों में उपयोग करना आसान हो जाएगा। अन्य तकनीकों (जैसे 5G सेवाओं) में प्रगति और उनकी उपलब्धता मरीज़ों और उनके दूरस्थ विशेषज्ञों के बीच संचार-संवाद को बेहतर कर सकती हैं।
सुदूर चिकित्सा ने चिकित्सा देखभाल के कई अन्य क्षेत्रों में भी प्रभाव छोड़ा है। पहनने योग्य उपकरण, जिनमें सबसे अधिक स्मार्टवॉच पहने हुए लोग दिखते हैं, के डैटा को निरंतर देखभालकर्ताओं/चिकित्सकों को भेजने के लिए सेट किया जा सकता है। जैसे स्मार्टवॉच से प्राप्त हृदय गति और रक्तचाप सम्बंधी डैटा को उन हृदय चिकित्सकों को भेजने के लिए सेट किया जा सकता है, जो इन गड़बड़ियों की निगरानी करते हैं।
तो, अगली बार आपको संदेह हो कि परिवार के किसी सदस्य को कंजक्टीवाइटिस है तो आप सुदूर परामर्श लेकर इसकी पुष्टि कर सकते हैं या अपनी शंका दूर कर सकते हैं! (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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