एक हालिया उपलब्धि में कृत्रिम बुद्धि (एआई) द्वारा प्रबंधित स्वचालित प्रयोगशालाओं की एक टीम ने ऐसे पदार्थ की खोज करने में सफलता प्राप्त की है जो अत्यंत कार्य-कुशलता से लेज़र उत्पन्न करता है। साइंस जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार इस विशिष्ट उपलब्धि से लगता है कि एआई संचालित प्रयोगशालाएं अनुसंधान के कुछ क्षेत्रों में मानव वैज्ञानिकों को पछाड़ सकती हैं, खासकर वे ऐसी खोज कर सकती हैं जो मनुष्यों की नज़रों से चूक गई हों।
दरअसल, नए अणु और सामग्री बनाने के पारंपरिक तरीके अक्सर धीमे और श्रम-साध्य होते हैं। शोधकर्ताओं को कई विधियों से और अभिक्रिया की कई स्थितियों में प्रयोग करना पड़ता है, प्रत्येक चरण में नए यौगिकों के साथ वही परीक्षण दोहराना पड़ता है और बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए उनकी क्षमता का मूल्यांकन करना होता है।
पिछले दशक से इनमें से कई तरह की अभिक्रियाओं को दोहराने का काम रोबोट्स ने संभाल लिया है। मसलन 2015 में, इलिनॉय युनिवर्सिटी के रसायनज्ञ मार्टिन बर्क द्वारा छोटे अणुओं के संश्लेषण के लिए एक स्वचालित प्रणाली शुरू की गई थी। इस प्रणाली में एआई को शामिल करने से फीडबैक लूप तैयार किया जा सका जिससे नई विशेषता वाले यौगिकों का डैटा भविष्य के संश्लेषण प्रयासों का मार्गदर्शन कर सकता है।
इस आधार पर, बर्क और टोरंटो विश्वविद्यालय के रसायनज्ञ एलन असपुरु-गुज़िक ने समन्वित रूप से काम करने वाली स्व-चालित प्रयोगशालाओं के नेटवर्क की कल्पना की। उन्होंने कई प्रयोगशालाओं – दक्षिण कोरिया के इंस्टीट्यूट फॉर बेसिक साइंस, ग्लासगो विश्वविद्यालय, ब्रिटिश कोलंबिया युनिवर्सिटी (यूबीसी) और जापान की क्यूशू युनिवर्सिटी की प्रयोगशाला – को जोड़ा। प्रत्येक प्रयोगशाला की संश्लेषण की प्रक्रिया में अपनी विशेषज्ञता थी। लक्ष्य था अत्यधिक शुद्ध लेज़र प्रकाश उत्सर्जित करने में सक्षम कार्बनिक यौगिकों की खोज करना। इससे उन्नत किस्म के डिस्प्ले और दूरसंचार तंत्र स्थापित करने में मदद मिलेगी।
सबसे पहले ग्लासगो और यूबीसी प्रयोगशालाओं ने थोड़ी मात्रा में आधारभूत सामग्री का निर्माण किया। फिर इन्हें बर्क और असपुरु-गुज़िक की टीमों को भेजा गया, जहां रोबोट ने इन पदार्थों से विभिन्न संयोजन (मिश्रण) बनाए। इन संभावित उत्सर्जकों को टोरंटो प्रयोगशाला भेजा गया, जहां अन्य रोबोट ने उनके प्रकाश उत्सर्जक गुणों का मूल्यांकन किया। सबसे अच्छे प्रदर्शन करने वाले उत्सर्जकों को यूबीसी भेजा गया, जहां यह पता किया गया कि बड़े पैमाने पर उपयोग के लिए इन पदार्थों का संश्लेषण और शोधन कैसे किया जाएगा, और फिर इन्हें व्यावहारिक लेज़रों में परिवर्तित करने और उसके परीक्षण के लिए क्यूशू विश्वविद्यालय भेजा गया।
इस पूरी प्रक्रिया को क्लाउड-आधारित एआई प्लेटफॉर्म द्वारा संचालित किया गया था, जिसे मुख्य रूप से टोरंटो और दक्षिण कोरिया की टीमों द्वारा विकसित किया गया है। इस प्लेटफॉर्म ने प्रत्येक प्रयोग से सीखा और अगली पुनरावृत्तियों में फीडबैक को शामिल किया, जिससे एक कुशल और फुर्तीली शोध प्रक्रिया विकसित हुई।
इस सहयोगी प्रयास से 621 नए यौगिक तैयार हुए, जिनमें 21 ऐसे थे जो अत्याधुनिक लेज़र उत्सर्जकों से मेल खाते थे और एक तो ऐसा था जो किसी भी अन्य ज्ञात कार्बनिक पदार्थ की तुलना में अधिक कुशलता से नीले रंग की लेज़र रोशनी उत्सर्जित करता था।
गौरतलब है कि हाल ही में मिली सफलता एआई-संचालित प्रयोगशाला अनुसंधान में एकमात्र सफलता नहीं है। पिछले साल, मिलाद अबुलहसानी की प्रयोगशाला ने रिकॉर्ड-सेटिंग फोटोल्यूमिनेसेंस के साथ नैनोकणों का निर्माण किया था।
एआई के क्षेत्र में भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए बर्क को उम्मीद है कि स्वचालन और एआई में प्रगति वैश्विक स्तर पर अधिक प्रयोगशालाओं को सहयोग करने में सक्षम बनाएगी। इस तरह की साझेदारी वैज्ञानिकों को ढर्रा कार्यों से मुक्त करेगी, ताकि वे अनुसंधान के अधिक जटिल और रचनात्मक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित कर सकें। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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