धरती पर करोड़ों वर्षों से लाखों तरह के जीवन रूप फल-फूल रहे हैं। मनुष्य के धरती पर आगमन से पहले भी यहां बहुत जैव-विविधता मौजूद थी। सवाल यह है कि जब किसी भी अन्य ज्ञात ग्रह या उपग्रह पर अभी तक जीवन तक का पता नहीं चल सका है, तो विशेषकर धरती पर ही लाखों तरह के जीवन रूप किस तरह पनप सके?
गौरतलब है कि धरती पर कुछ विशेष तरह की जीवनदायिनी स्थितियां मौजूद हैं व इनकी उपस्थिति के कारण ही धरती पर इतने विविध तरह का जीवन इतने लंबे समय तक पनप सका है। ये जीवनदायिनी क्षमताएं मुख्य रूप से कई स्थितियों से जुड़ी है – वायुमंडल में विभिन्न गैसों की विशेष अनुपात में उपस्थिति, पर्याप्त मात्रा में जल की उपलब्धता, वन व मिट्टी की अनुकूल स्थिति वगैरह।
यह जीवनदायिनी स्थितियां सदा से धरती पर रही तो हैं, पर इसका अर्थ यह नहीं है कि इनमें कभी कोई बड़ी उथल-पुथल नहीं आ सकती है या इनमें कभी कोई कमी-बेशी नहीं हो सकती है। तकनीकी व औद्योगिक बदलाव के साथ-साथ मनुष्य द्वारा ऐसे अनेक व्यापक बदलाव लाए जा रहे हैं जो इन जीवनदायिनी स्थितियों में बदलाव ला सकते हैं। उदाहरण के लिए, विभिन्न तरह के प्रदूषण के साथ कार्बन डाईऑक्साइड व अन्य ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि से वायुमंडल में मौजूद गैसों का अनुपात बिगड़ सकता है, प्राकृतिक वन बहुत तेज़ी से लुप्त हो सकते हैं, मिट्टी के मूल चरित्र व प्राकृतिक उपजाऊपन में बड़े बदलाव आ सकते हैं, पानी के भंडार तेज़ी से कम हो सकते हैं व प्रदूषित हो सकते हैं। यहां तक कि मानव निर्मित विविध कारणों से ऐसा भी हो सकता है कि सूर्य का प्रकाश व ऊष्मा धरती पर सुरक्षित व सही ढंग से न पहुंच सकें।
दो परमाणु बमों का पहला उपयोग हिरोशिमा व नागासाकी (जापान) में वर्ष 1945 में हुआ था। उसके बाद अनेक प्रमुख देशों में परमाणु हथियार बनाने की होड़ लग गई। आज विश्व में लगभग 12,500 परमाणु बम हैं।
किसी परमाणु बम को गिराने पर मुख्य रूप से चार तरह से बहुत भयानक तबाही होती है – आग, अत्यधिक ताप, धमाका व विकिरण का फैलाव। खास तौर से, विकिरण का असर कई पीढ़ियों तक रह सकता है।
यह सब तो केवल एक परमाणु बम गिराने पर भी होता है, पर चूंकि अब विश्व में 12,500 से अधिक परमाणु बम हैं, तो वैज्ञानिक इस पर भी विचार करते रहे हैं कि यदि परमाणु बमों का अधिक व्यापक स्तर पर उपयोग चंद दिनों या घंटों के भीतर हो गया तो क्या परिणाम होगा?
यदि कुल मौजूद 12,500 परमाणु हथियारों में से कभी 10 प्रतिशत का भी उपयोग हुआ तो इसका अर्थ है कि 1250 परमाणु हथियारों का उपयोग होगा व 5 प्रतिशत का उपयोग हुआ तो 625 हथियारों का उपयोग होगा।
यदि 5 से 10 प्रतिशत हथियारों का उपयोग कभी हुआ तो कल्पना की जा सकती है कि आग, ताप, धमाकों व विकिरण का कैसा सैलाब आएगा। इसके अतिरिक्त इतना धूल-धुआं-मलबा वायुमंडल में फैल जाएगा कि सूर्य की किरणें धरती पर भलीभांति प्रवेश नहीं कर पाएंगी। इस कारण खाद्य उत्पादन व अन्य ज़रूरी काम नहीं हो पाएंगे। इस सबका मिला-जुला असर यह होगा कि सभी मनुष्य व अधिकांश अन्य जीव-जंतु, पेड़-पौधे यानी सभी तरह के जीवन-रूप संकटग्रस्त हो जाएंगे।
स्पष्ट है कि कई स्तरों पर मानव के क्रियाकलापों से ऐसी स्थितियां उत्पन्न हो गई हैं जिनसे धरती की जीवनदायिनी क्षमता बुरी तरह खतरे में पड़ सकती है। यह हमारे समय की सबसे बड़ी समस्या है। इससे पहले कि यह बहुत विध्वंसक व घातक रूप में सामने आए, इस समस्या का समाधान आवश्यक है।
इस समस्या के कई पक्ष हैं और अभी इनके संदर्भ में अलग-अलग प्रयास हो रहे हैं। सबसे अधिक चर्चित वे प्रयास हैं जो जलवायु बदलाव व ग्रीनहाऊस गैसों को नियंत्रित करने के लिए किए जा रहे हैं। इनके बारे में भी वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने कई बार चेतावनी दी है कि ये निर्धारित लक्ष्यों से पीछे छूट रहे हैं। परमाणु हथियारों के खतरों को कम करने के लिए कुछ संधियां व समझौते हुए थे, पर इनमें से कुछ रद्द हो गए हैं व कुछ का नवीनीकरण समय पर नहीं हो सका है।
अब अनेक वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि कृत्रिम बुद्धि (एआई) तकनीकों के सैन्यकरण होने से व अति विनाशक हथियारों में इनका उपयोग होने से खतरे और बढ़ जाएंगे। सबसे अधिक चिंता की बात यह मानी जा रही है कि अंतरिक्ष के सैन्यकरण की ओर भी कदम उठाए जा रहे हैं।
समय रहते धरती की जीवनक्षमता को संकट में डालने वाले सभी कारणों को नियंत्रित करना होगा व इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाकर, विभिन्न देशों को मिलकर कार्य करना होगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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