इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट और ऑस्ट्रेलियन वॉटर पार्टनरशिप की हालिया रिपोर्टों ने तीन प्रमुख एशियाई नदियों: सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र के संरक्षण के लिए देशों के बीच वैज्ञानिक सहयोग और डैटा साझेदारी की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हिमालय के हिंदूकुश क्षेत्र से निकलने वाली ये नदियां जलवायु परिवर्तन के कारण संकट में हैं। प्रमुख खतरे तेज़ी से ग्लेशियरों का पिघलना और वर्षा के पैटर्न में बदलाव है। इसके कारण सात देशों यानी अफगानिस्तान, नेपाल, पाकिस्तान, चीन, भारत, बांग्लादेश और भूटान के लगभग एक अरब लोगों के प्रभावित होने की संभावना है। इससे निपटने के लिए सभी देशों की समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता है।
रिपोर्ट का दावा है कि बढ़ती आबादी और पानी की बढ़ती मांग के साथ जलवायु परिवर्तन-प्रेरित परिवर्तन किसानों को लंबे समय तक पानी की कमी और आसपास के समुदायों के लिए बाढ़ के जोखिम को बढ़ा सकते हैं। गौरतलब है कि इन नदियों के प्रबंधन के लिए सात देशों के बीच विभिन्न समझौते तो मौजूद हैं लेकिन जल विज्ञान, पर्यावरण और सामाजिक आर्थिक कारकों से सम्बंधित महत्वपूर्ण डैटा साझा करने की कमी एक महत्वपूर्ण बाधा बनी हुई है।
इसका एक उदाहरण ब्रह्मपुत्र नदी पर जारी एक रिपोर्ट है जिसमें इस क्षेत्र में अपर्याप्त जलवायु निगरानी की बात कही गई है। इसके अलावा गंगा पर किए गए अध्ययन में विशेष रूप से भारत सरकार द्वारा जल विज्ञान सम्बंधित डैटा को रोकने की प्रवृत्ति को दर्शाया गया है।
इस बारे में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गुवाहाटी की अर्थशास्त्री अनामिका बरुआ के अनुसार डैटा साझेदारी में प्रमुख बाधा राष्ट्रीय सुरक्षा सम्बंधी चिंताओं के कारण है। डैटा तक पहुंच को सुनिश्चित करने के लिए कम से कम नदी बेसिन डैटा को सुरक्षा चिंताओं से मुक्त रखा जा सकता है।
भाषा सम्बंधी बाधाएं भी हैं। जैसे ब्रह्मपुत्र पर चीनी रिपोर्ट्स चीनी भाषा में होती हैं।
रिपोर्टों का मत है कि सभी राष्ट्र मौजूदा समझौतों और संस्थाओं का लाभ उठा सकते हैं। मसलन, सिंधु नदी के टिकाऊ उपयोग को बढ़ावा देने वाले अपर सिंधु घाटी नेटवर्क की मदद से चीन, भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सहयोग बढ़ाया जा सकता है।
सिंधु नदी रिपोर्ट के प्रमुख लेखक और ई-वॉटर ग्रुप के सलाहकार रसेल रोलासन विभिन्न देशों के बीच सहयोग के क्षेत्रों की पहचान करने की संभावना पर ज़ोर देते हैं। रसेल के अनुसार जल सुरक्षा के लिए क्षेत्रीय सहयोग की दिशा में बातचीत के लिए साझा समस्याओं पर ज़ोर दिया जा सकता है।
बहरहाल, इन रिपोर्टों से एक बात तो स्पष्ट है कि बेहतर डैटा साझेदारी और सहयोगात्मक प्रयासों के बिना इन महत्वपूर्ण नदियों पर जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न जोखिम बढ़ते रहेंगे। इससे लाखों लोगों की आजीविका और निवास खतरे में पड़ सकते हैं। यह इस बात की ओर भी संकेत देता है कि जलवायु परिवर्तन अलग-अलग देशों की नहीं बल्कि साझा समस्या है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.z6eh9kt/full/_20240321_on_india_river_research-1711124724823.jpg