मानव आबादी का अस्तिस्व बनाए रखने के लिए ज़रूरी है कि प्रति प्रजननक्षम व्यक्ति के 2.1 बच्चे पैदा हों। इसे प्रतिस्थापन दर कहते हैं। काफी समय से जननांकिकीविदों का अनुमान था कि कुछ सालों के बाद प्रजनन दर इस जादुई संख्या (2.1) से कम रह जाएगी।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग (UNPD) की 2022 की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि यह पड़ाव वर्ष 2056 में आएगा। 2021 में विट्गेन्स्टाइन सेंटर फॉर डेमोग्राफी एंड ग्लोबल ह्यूमन कैपिटल ने इस पड़ाव के 2040 में आने की भविष्यवाणी की थी। लेकिन दी लैंसेट में प्रकाशित हालिया अध्ययन थोड़ा चौंकाता है और बताता है कि यह मुकाम ज़्यादा दूर नहीं, बल्कि वर्ष 2030 में ही आने वाला है।
देखा जाए तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि जनसंख्या नियंत्रण पर जागरूकता लाने के प्रयास, लोगों के शिक्षित होने, बढ़ती आय, गर्भ निरोधकों तक बढ़ती पहुंच जैसे कई सारे कारकों की वजह से कई देशों में प्रजनन दर में काफी गिरावट आई है, और यह प्रतिस्थापन दर से भी नीचे पहुंच गई है। मसलन, संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रजनन दर 1.6 है, चीन की दर 1.2 है और ताइवान की 1.0 है। लेकिन कई देशों, खासकर उप-सहारा अफ्रीका के गरीब देशों, में यह दर अभी भी काफी अधिक है: नाइजर की 6.7, सोमालिया की 6.1 और नाइजीरिया की 5.1।
चूंकि हर देश की प्रजनन दर बहुत अलग-अलग हो सकती है, ये रुझान विश्व को दो हिस्सों में बांट सकते हैं: कम प्रजनन वाले देश, जहां युवाओं की घटती संख्या के मुकाबले वरिष्ठ नागरिकों की आबादी अधिक होगी; और उच्च-प्रजनन वाले देश, जहां निरंतर बढ़ती जनसंख्या विकास में बाधा पहुंचा सकती है।
यहां यह स्पष्ट करते चलें कि प्रजनन दर का प्रतिस्थापन दर से नीचे पहुंच जाने का यह कतई मतलब नहीं है कि वैश्विक जनसंख्या तुरंत कम हो जाएगी। ऐसा होने में लगभग 30 और साल लगेंगे।
इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (IHME) के शोधकर्ताओं ने अपने मॉडल में प्रजनन दर कब प्रतिस्थापन दर से नीचे जाएगी, इस समय का अनुमान इस आधार पर लगाया है कि प्रत्येक जनसंख्या ‘समूह’ (यानी एक विशिष्ट वर्ष में पैदा हुए लोग) अपने जीवनकाल में कितने बच्चों को जन्म देंगे। इस तरीके से अनुमान लगाने में लोगों के अपने जीवनकाल में देरी से बच्चे जनने के निर्णय लेने जैसे परिवर्तन पता चलते हैं। इसके अलावा IHME के इस मॉडल ने अनुमान लगाने में लोगों की गर्भ निरोधकों और शिक्षा तक पहुंच जैसे चार कारकों को भी ध्यान में रखा है जो प्रजनन दर को प्रभावित कर सकते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है यह पड़ाव चाहे कभी भी आए, देशों की प्रजनन दर में बढ़ती असमानता (अन्य) असमानताओं को बढ़ाने में योगदान दे सकती है। मध्यम व उच्च आय के साथ निम्न प्रजनन दर वाले देशों में प्रजनन दर प्रतिस्थापन दर से कम होने से वहां काम करने वाले लोगों की कमी पड़ सकती है और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों, राष्ट्रीयकृत स्वास्थ्य बीमा और सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों पर दबाव पड़ सकता है। वहीं, निम्न आय के साथ उच्च प्रजनन दर वाले देशों के आर्थिक रूप से और अधिक पिछड़ने की संभावना बनती है। साथ ही, बहुत कम संसाधनों के साथ ये देश बढ़ती आबादी को बेहतर स्वास्थ्य, कल्याण और शिक्षा मुहैया नहीं करा पाएंगे। बहरहाल, इस तरह की समस्याओं को संभालने के लिए हमें समाधान खोजने की ज़रूरत है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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