आज प्लास्टिक हर जगह उपस्थित है। खाद्य पैकेजिंग, टायर, कपड़ा, पाइप आदि में उपयोग होने वाले प्लास्टिक से बारीक प्लास्टिक कण निकलते हैं जिसे माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है। यह पर्यावरण में व्याप्त है और अनजाने में मनुष्यों द्वारा उपभोग या श्वसन के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर रहा है।
सर्जरी से गुज़रे 200 से अधिक रोगियों पर किए गए हालिया अध्ययन से पता चला है कि लगभग 60 प्रतिशत लोगों की किसी मुख्य धमनी में माइक्रोप्लास्टिक या नैनोप्लास्टिक मौजूद है। चौंकाने वाली बात यह है कि इन प्लास्टिक कणों वाले व्यक्तियों में सर्जरी के बाद लगभग 34 महीनों के भीतर दिल के दौरे या स्ट्रोक जैसी हृदय सम्बंधी समस्याओं से पीड़ित होने की संभावना 4.5 गुना अधिक होती है।
वैसे दी न्यू इंगलैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित यह अध्ययन केवल माइक्रोप्लास्टिक को इसका ज़िम्मेदार नहीं बताता है। सामाजिक-आर्थिक स्थिति जैसे अन्य कारक भी स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं, जिन पर इस अध्ययन में विचार नहीं किया गया है।
दरअसल, जल्दी नष्ट न होने के कारण माइक्रोप्लास्टिक सजीवों के शरीर में जमा होते रहते हैं और पर्यावरण में भी टिके रहते हैं। माइक्रोप्लास्टिक मानव रक्त, फेफड़े और प्लेसेंटा में भी पाए गए हैं, लेकिन इनके स्वास्थ्य सम्बंधी प्रभाव स्पष्ट नहीं हैं।
इसी विषय में अध्ययन करते हुए इटली स्थित युनिवर्सिटी ऑफ कैम्पेनिया लुइगी वानविटेली के चिकित्सक ग्यूसेप पाओलिसो और उनकी टीम जानती थी माइक्रोप्लास्टिक्स वसा अणुओं की ओर आकर्षित होते हैं। लिहाज़ा, उन्होंने यह देखने का प्रयास किया कि क्या ये कण रक्त वाहिकाओं के भीतर प्लाक (वसा की जमावट) के भीतर इकट्ठे होते हैं। इसके बाद टीम ने ऐसे 257 लोगों को ट्रैक किया जो गर्दन की धमनी से प्लाक हटाकर स्ट्रोक के जोखिम को कम करने की सर्जरी करवा रहे थे।
प्लाक की जांच करने पर पता चला कि 150 प्रतिभागियों के नमूनों में कोशिकाओं और अपशिष्ट उत्पादों के साथ माइक्रोप्लास्टिक वाले दांतेदार थक्के मौजूद हैं। इनके रासायनिक विश्लेषण से पॉलीथीन और पॉलीविनाइल क्लोराइड जैसे प्रमुख प्लास्टिक घटक मिले जो आम तौर पर रोज़मर्रा की वस्तुओं में पाए जाते हैं। अधिक माइक्रोप्लास्टिक वाले लोगों में सूजन वाले आणविक चिंह मिले जो स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याओं का संकेत देते हैं।
इसके अलावा, जिन व्यक्तियों के प्लाक में माइक्रोप्लास्टिक पाया गया वे युवा, पुरुष, धूम्रपान करने वाले थे और उन्हें पहले से मधुमेह या हृदय रोग जैसी समस्याएं थी। चूंकि यह अध्ययन केवल उन लोगों पर किया गया था जो स्ट्रोक का जोखिम कम करने के लिए सर्जरी करवा रहे थे, इसलिए इसके सामान्य प्रभाव पर अभी अनिश्चितता है।
शोधकर्ताओं को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि 40 प्रतिशत प्रतिभागियों में माइक्रोप्लास्टिक्स अनुपस्थित थे क्योंकि प्लास्टिक से पूरी तरह बचना तो मुश्किल है। इसलिए यह समझने के लिए आगे के शोध की आवश्यकता है कि कुछ लोगों में माइक्रोप्लास्टिक क्यों नहीं पाया गया।
यह अध्ययन प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने के उद्देश्य से एक वैश्विक संधि तैयार करने के राजनयिक प्रयासों से मेल खाता है। 2022 में, 175 देशों द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार इस संधि को 2024 के अंत तक कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते का रूप देना है, हालांकि प्रगति काफी धीमी है। अध्ययन के निष्कर्षों से उम्मीद की जा रही है कि अप्रैल में ओटावा में होने वाली वार्ता में निर्णय लिए जाएंगे। तब तक, अपनी निजी आदतों में बदलाव लाना आवश्यक है ताकि प्लास्टिक उपयोग को कम से कम किया जा सके। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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