कीटनाशक प्राकृतिक या रासायनिक रूप से संश्लेषित यौगिक हैं जो संपूर्ण खाद्य और पशु आहार उत्पादन चक्र के दौरान कीटों को रोकने, नष्ट करने, खदेड़ने या नियंत्रित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। कीटनाशक कई तरह के होते हैं। जैसे, पौधों के विकास नियामक, डिफॉलिएटर्स (पत्तीनाशी), डेसिकैंट्स (जलशोषक), फलों की तादाद कम करने वाले रसायन, और परिवहन एवं भंडारण के दौरान फसल को खराब होने से बचाने वाले रसायन जिन्हें कटाई के पहले या बाद में फसलों पर लगाया जाता है। जंतुओं के बाह्य-परजीवियों का प्रबंधन भी कीटनाशकों के माध्यम से किया जाता है। कीटनाशी, शाकनाशी, कवकनाशी, कृमिनाशी और पक्षीनाशी वगैरह कीटनाशकों की विभिन्न श्रेणियां हैं।
कीटनाशकों को उनके सक्रिय घटक, रासायनिक संरचना, क्रिया के तरीके और विषाक्तता के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। कीटनाशक कार्बनिक और अकार्बनिक दोनों तरह के हो सकते हैं। जैविक कीटनाशक कार्बन आधारित होते हैं, जैसे प्राकृतिक पदार्थों से प्राप्त कीटनाशक या कार्बनिक रसायनों से संश्लेषित कीटनाशक। अकार्बनिक कीटनाशक खनिज या ऐसे रासायनिक यौगिकों से प्राप्त होते हैं जो प्रकृति में जमा होते हैं। इनमें मुख्य रूप से एंटीमनी, तांबा, बोरॉन, फ्लोरीन, पारा, सेलेनियम, थैलियम, जस्ता के यौगिक तथा तात्विक फास्फोरस और सल्फर होते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कीटनाशकों को उनकी विषाक्तता के आधार पर वर्गीकृत किया है। अत्यधिक खतरनाक कीटनाशकों को वर्ग-1a, अधिक खतरनाक को वर्ग-1b, मध्यम खतरनाक को वर्ग-II और थोड़े खतरनाक को वर्ग-III में वर्गीकृत किया गया है।
किसानों की बढ़ती उत्पादकता और बढ़ती आमदनी के रूप में कीटनाशकों के उपयोग का भारी प्रभाव पड़ा है। लेकिन बढ़ती जनसंख्या के चलते बढ़ती वैश्विक खाद्य मांग ने इनके उपयोग को बेतहाशा बढ़ा दिया है।
कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग से खाद्य उपज में कीटनाशक अवशेष बचे रह जाते हैं जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। कीटनाशकों के अनियमित उपयोग और दुरुपयोग के कारण पर्यावरण में अवशेष जमा हो जाते हैं, जिनमें से कई आसानी से नष्ट नहीं होते और वर्षों तक वहीं बने रहते हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ जाता है और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अनाज, सब्ज़ियों, फलों, शहद और उनसे व्युत्पन्न उत्पादों, जैसे जूस आदि में कीटनाशकों के अंश पाए गए हैं। लापरवाह और अनुचित निपटान प्रथाएं मछली, अन्य जलीय जीवन, प्राकृतिक परागणकर्ताओं (मधुमक्खियों और तितलियों) सहित गैर-लक्षित जीवों (पशुधन, पक्षी और लाभकारी सूक्ष्मजीव) पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
खाद्य, कृषि उत्पादों या पशु आहार में कीटनाशक अवशेष विभिन्न रूपों में हो सकते हैं – जैसे उनके चयापचय से बने, परिवर्तन से बने, अभिक्रियाओं से बने पदार्थ। कीटनाशकों के बार-बार उपयोग से लाभकारी जीव मारे जाते हैं, कीटों में प्रतिरोध बढ़ जाता है और जैव विविधता का नुकसान होता है। इन सबके चलते कीटों का वापिस लौटना आसान हो जाता है। हेप्टाक्लोर, एंड्रिन, डायएल्ड्रिन, एल्ड्रिन, क्लोर्डेन, डीडीटी और एचसीबी कुछ टिकाऊ कार्बनिक पर्यावरण प्रदूषक हैं।
भारत कीटनाशकों का एक प्रमुख निर्माता और आपूर्तिकर्ता है। भारत में कीटनाशक उद्योग एक अरब डॉलर का है। जिसमें एसीफेट का उत्पादन सबसे अधिक होता है, इसके बाद अल्फामेथ्रिन और क्लोरपाइरीफॉस का नंबर आता है। एनएसीएल इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड, यूपीएल लिमिटेड और भारत रसायन लिमिटेड के अलावा बायर क्रॉप साइंस लिमिटेड, रैलीज़ कुछ प्रमुख कीटनाशक निर्माता हैं। एक ओर भारत से 6,29,606 मीट्रिक टन कीटनाशकों का निर्यात किया जाता है वहीं दूसरी ओर, 1,33,807 मीट्रिक टन कीटनाशकों का आयात किया जाता है।
कीटनाशकों की खपत युरोप में सबसे अधिक है। इसके बाद चीन और यूएसए का नंबर आता है। भारत में भी प्रति हैक्टर कीटनाशकों की खपत बढ़ी है।
2022 की आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कीटनाशकों की औसत खपत लगभग 0.381 कि.ग्रा सक्रिय घटक/हैक्टर है। तुलना के लिए, विश्व की औसत खपत 0.5 कि.ग्रा. सक्रिय घटक/हैक्टर है। (विश्व स्तर पर) उपयोग के लिए पंजीकृत 293 कीटनाशकों में से भारत में 104 कीटनाशकों का निर्माण हो रहा है। 2022 तक, हमारे देश में 46 कीटनाशकों और 4 कीटनाशक फॉर्मूलेशन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। अभी भी 39 कीटनाशक वर्ग-1b के हैं, जबकि 23 कीटनाशक वर्ग-II और वर्ग-III स्तर के हैं। भारत में खपत होने वाले कुल कीटनाशकों में से अधिकांश अत्यधिक या अधिक खतरनाक (1a या 1b) श्रेणी में आते हैं और केवल 10-15 प्रतिशत गैर-विषैले कीटनाशक के रूप में पंजीकृत हैं।
भारत में कीटनाशकों के उपयोग का नियमन व नियंत्रण 1968 के कीटनाशक अधिनियम और 1971 के कीटनाशक नियमों के अधीन है। ये नियम-अधिनियम मनुष्यों, जानवरों और पर्यावरण की सुरक्षा के उद्देश्य से कीटनाशकों के आयात, पंजीकरण, निर्माण, बिक्री, परिवहन, वितरण और उपयोग को नियंत्रित करते हैं।
यद्यपि दो कीटनाशकों, बेरियम कार्बोनेट व कूमाक्लोर का उपयोग बंद कर दिया गया है लेकिन तीन बेहद खतरनाक कीटनाशक, ब्रोडिफाकम, ब्रोमैडायओलोन और फ्लोकोमाफेन (1a) अभी भी भारत में उपयोग के लिए पंजीकृत हैं। फरवरी 2020 में प्रकाशित एक मसौदा अधिसूचना (S.O.531(E)) में प्रस्ताव दिया गया था कि मनुष्यों व जानवरों के स्वास्थ्य और पर्यावरण सम्बंधी खतरों को देखते हुए ट्राइसाइक्लाज़ोल और बुप्रोफेज़िन के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए।
वैकल्पिक उपाय
1. जैव कीटनाशक – ये पौधों, जानवरों, बैक्टीरिया और कुछ खनिजों जैसे प्राकृतिक पदार्थों से बने होते हैं। ये पर्यावरण के अनुकूल हैं। और आम तौर पर रासायनिक कीटनाशकों की तुलना में अधिक सुरक्षित होते हैं।
2. एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) – कीट प्रबंधन के लिए एक समग्र दृष्टिकोण जिसमें रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग को कम करने के लिए जैविक और यांत्रिक तरीकों सहित विभिन्न कीट नियंत्रण विधियां हैं।
3. मिश्रित फसलें – इसके तहत कीटों को दूर रखने या लाभकारी कीटों को आकर्षित करने के लिए एक साथ विभिन्न फसलें लगाई जाती हैं।
4. जैविक खाद – जैविक खाद का उपयोग मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता को कम करने के लिए किया जा सकता है; रासायानिक उर्वरक कीटों को आकर्षित कर सकते हैं।
हालांकि ये उपाय उतने प्रभावी नहीं हैं लेकिन अधिक सुरक्षित व टिकाऊ हैं। जैविक खेती, परिशुद्ध खेती और कृषि-पारिस्थितिकी जैसे कुछ अन्य वैकल्पिक उपाय रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता घटाकर अधिक टिकाऊ विधियां अपनाने में मदद कर सकते हैं (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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