सूंघने की शक्ति कई खतरों को टालने में मदद करती है; जैसे हम खराब खाना खाने से बचने के लिए उसे सूंघकर देखते हैं या हम गैस रिसने या कुछ जलने जैसी गंध के प्रति सचेत रहते हैं। तो क्या हम सूंघकर बीमारी की आहट नहीं भांप सकते?
वैज्ञानिकों का कहना है कि दुरुस्त घ्राण इंद्रियों वाला कोई भी व्यक्ति किसी ‘बीमारी की गंध’ पहचान सकता है। वैज्ञानिकों ने देखा है कि कई बीमारियों की अपनी एक विशेष गंध होती है, जिसे पहचान कर आप बता सकते हैं कि कोई व्यक्ति उस बीमारी से पीड़ित है या नहीं। जैसे डायबिटीज़ के रोगी के मूत्र से सड़े हुए सेब जैसी गंध आती है, टायफाइड के कारण शरीर की गंध ब्रेड जैसी हो सकती है, यहां तक कि पीत-ज्वर के कारण आपका शरीर कसाई की दुकान (कच्चे मांस) की तरह गंध मार सकता है।
दरअसल, हमारा शरीर हवा में लगातार वाष्पशील रासायनिक पदार्थ छोड़ता रहता है, जो हमारी सांस और त्वचा के सूक्ष्म छिद्रों द्वारा बाहर निकलते रहते हैं। इनकी अपनी एक विशिष्ट गंध हो सकती है। हमारे चयापचय तंत्र में उम्र, आहार, या किसी बीमारी के कारण आए बदलाव के कारण बाहर निकलने वाले वाष्पशील अणु बदल सकते हैं, जिसके चलते गंध भी अलग हो सकती है। फिर, हमारी आंत और त्वचा पर रहने वाले सूक्ष्मजीव भी चयापचय उप-उत्पादों के विघटन से विभिन्न गंधयुक्त अणु पैदा कर सकते हैं।
कुल मिलाकर हमारा शरीर गंध का एक कारखाना है। और यदि हम गंधों पर ध्यान दें, अपनी घ्राण शक्ति का भरपूर उपयोग करें और उसे प्रशिक्षित करें तो संभवत: हम बीमारियों की गंध पहचान पाएंगे।
कुछ समय पहले ऐसा ही एक मामला सामने आया था, जिसमें पता चला था कि एक महिला पार्किंसन रोग की गंध सूंघ सकती है। गौरतलब है कि समय रहते पार्किंसन का पता करना बेहद मुश्किल है, और जब तक इस बीमारी के लक्षण सामने आते हैं और इसकी पुष्टि हो पाती है तब तक काफी देर हो चुकी होती है। दरअसल, इस महिला के पति को पार्किंसन से ग्रसित पाया गया था। लेकिन पति में पार्किंसन का पता चलने के छह साल पहले से ही इस महिला को अपने पति में से कुछ अजीब सी गंध आने लगी थी – यह गंध थोड़ी लकड़ी, थोड़ी कस्तूरी जैसी थी। बाद में महिला जब पार्किंसन के रोगियों से भरे वार्ड में गई तो उन्हें अहसास हुआ कि ऐसी गंध सिर्फ उनके पति से ही नहीं, बल्कि सभी पार्किंसन रोगियों से आती है।
उनकी इस क्षमता को परखा गया। इसके लिए उन्हें छह पार्किंसन-पीड़ित और छह स्वस्थ लोगों की टी-शर्ट सुंघाई गई, और उन्हें पार्किंसन रोगियों की टी-शर्ट पहचानना था। उन्होंने छह के छह पार्किंसन पीड़ितों की टी-शर्ट की सही पहचान की, लेकिन उन्होंने कंट्रोल (यानी स्वस्थ व्यक्तियों वाले) समूह में से भी एक व्यक्ति को पार्किसन पीड़ित बताया।
तब तो यह लगा था कि उन्होंने पहचानने में गड़बड़ी की है, लेकिन आठ महीने बाद वास्तव में उस व्यक्ति को पार्किंसन से पीड़ित पाया गया।
लेकिन इस तरह की विशिष्ट क्षमता वाले किसी व्यक्ति को हमेशा बीमारी की पहचान के लिए बुलाना कहां तक संभव है? साथ ही यह भी समस्या है कि गंध की अदला-बदली भी हो सकती है: एक-दूसरे के कपड़े पहनने से, खचाखच भरी बस या ट्रेन में चिपक-चिपक कर बैठे हुए लोगों से।
इनमें से कुछ चुनौतियों से निपटने के लिए मैनचेस्टर इंस्टीट्यूट ऑफ बायोटेक्नॉलॉजी की एनालिटिकल केमिस्ट पर्डिटा बैरेन की टीम ने यह पहचानने का प्रयास किया है कि पार्किंसन की गंध के लिए कौन से अणु ज़िम्मेदार हैं। उन्हें ऐसे तीन अणु (आईकोसेन, हिपुरिक एसिड और ऑक्टाडेकेनल) मिले जो पार्किंसन पीड़ितों में अधिक होते हैं और एक अणु (पेरिलिक एल्डिहाइड) ऐसा मिला जो उनमें कम होता है। इन अणुओं के मिश्रण से उन्होंने पार्किंसन की विशिष्ट गंध बनाई। इसकी मदद से उन्होंने एक ऐसा परीक्षण बनाया जो गंध से लोगों में पार्किंसन की पहचान कर सके। प्रयोगशाला जांच में उनका यह परीक्षण 95 प्रतिशत सटीक रहा। अब वे इसे लोगों के उपयोग लायक बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
लेकिन हमने जहां से बात शुरू की थी वापिस उसी पर आते हैं कि क्या हम जैसे साधारण लोग सूंघकर बीमारी पहचान सकते हैं? अध्ययनों ने पाया है कि हमारी घ्राण शक्ति बहुत शक्तिशाली है। हमारे मस्तिष्क के घ्राण बल्बों में न्यूरॉन्स की संख्या को देखकर पता चलता है कि मनुष्यों की सूंघने की क्षमता चूहों से बेहतर हो सकती है जबकि हम चूहों और कुत्तों की घ्राण शक्ति के कायल हैं और कई मामलों में उनकी इस क्षमता का उपयोग भी करते हैं। बस हमारे साथ दिक्कत यह है कि हम गंधों पर उतना गौर नहीं करते जितना करना चाहिए। फिर हमारे पास ‘गंध कैसी है’ इसका विवरण देने वाली भाषा भी सीमित है।
लेकिन ऐसा देखा गया है कि यदि हम बारीकी से गौर करें तो हम बीमारी पहचान सकते हैं। 2017 में हुए एक अध्ययन में प्रतिभागियों ने शरीर की गंध और तस्वीरों के आधार पर बीमार और स्वस्थ लोगों की पहचान कर ली थी। तो हम भी अपनी या अपनों की गंध पर बारीकी से गौर करने की और शरीर का हाल जानने की कोशिश तो कर ही सकते हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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