हाल ही में ड्यूक विश्वविद्यालय ने घोषणा की है कि वह अपने प्रतिष्ठित वनस्पति संग्रहालय (हर्बेरियम) को अगले 2-3 वर्षों में बंद कर देगा या अन्यत्र स्थानांतरित कर देगा। वैज्ञानिक समुदाय उसके इस निर्णय का जमकर विरोध कर रहा है। वित्तीय समस्याओं और बुनियादी ढांचे को अद्यतन करने की आवश्यकता से उत्पन्न इस निर्णय ने वनस्पति अनुसंधान और जैव विविधता अध्ययन के भविष्य को लेकर चिंताएं पैदा कर दी हैं। एक ओर तो विश्वविद्यालय के अधिकारी जीव विज्ञान के क्षेत्र में विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को बढ़ाने में संग्रहालय की भूमिका को स्वीकार करते हैं लेकिन दूसरी ओर उनका अधिक ज़ोर संस्था के अन्य वित्तीय दायित्वों को प्राथमिकता देने पर है।
गौरतलब है कि हर्बेरियम बनाना सदियों पुराना काम रहा है। हर्बेरियम ने वनस्पति अध्ययन को चिकित्सा से अलग एक स्वतंत्र विषय का रूप देने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके अलावा दूर-दराज के स्थानों और लंबी अवधि में प्राप्त होने वाली पौध सामग्री के लिए भी हर्बेरियम काफी उपयोगी रहे हैं। 1921 में स्थापित ड्यूक विश्वविद्यालय का हर्बेरियम वनस्पति विज्ञान की एक विशाल संपदा है जिसमें 8,25,000 से अधिक पौधों के नमूने हैं। इनमें विविध प्रकार के शैवाल, लाइकेन, कवक और काई भी शामिल हैं। यह न केवल वनस्पति की जानकारी का अमूल्य भंडार है, बल्कि पारिस्थितिक पैटर्न को समझने और पर्यावरणीय परिवर्तनों पर नज़र रखने के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन हैं।
येल विश्वविद्यालय के माइकल डोनोग्यू और स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन की कैथरीन पिकार्ड जैसे प्रमुख वैज्ञानिकों ने ड्यूक विश्वविद्यालय के इस फैसले का कड़ा विरोध किया है। उनका तर्क है कि संग्रहालय को बंद करना ‘भारी भूल’ होगी और यह वर्तमान में पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान खोजने का प्रयास कर रहे शोधकर्ताओं और आने वाली पीढ़ियों के लिए अहितकारी होगा। संग्रहालय के बंद होने से न केवल वर्तमान अनुसंधान बाधित होंगे, बल्कि इसके नमूनों का व्यापक संग्रह भी खतरे में पड़ जाएगा। इनमें कई नमूने ऐसे भी हैं जो क्षेत्रीय जैव विविधता और पारिस्थितिक गतिशीलता को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
संग्रहालय को बचाने के लिए संग्रहालय की निदेशक कैथलीन प्रायर और उनकी टीम ने विभिन्न रणनीतियों से पूर्ण प्रस्ताव दिए। इनमें बाहर से वित्तीय मदद लेना, दो प्रतियों को अन्यत्र भेजना और मौजूदा संसाधनों और जगह का बेहतर प्रबंधन करना शामिल हैं। उनके इन प्रस्तावों के बावजूद, आवश्यक धनराशि जुटाने में ड्यूक विश्वविद्यालय की अनिच्छा उसके इरादों पर संदेह पैदा करती है।
गौरतलब है कि पिछले 30 वर्षों में कई छोटे-बड़े वनस्पति संग्रहालय बंद किए गए हैं। सबसे हालिया मामला 2015 का है जब मिसौरी विश्वविद्यालय ने डन-पामर संग्रहालय को बंद करने का फैसला किया था जिसमें 1,70,000 से अधिक पौधे और हज़ारों काई, शैवाल और कवक के 119 साल पुराने नमूने संग्रहित थे। इन नमूनों को विश्वविद्यालय के छात्रों और शिक्षकों से 200 किलोमीटर दूर मिसौरी बॉटनिकल गार्डन में भेज दिया गया था।
ड्यूक विश्वविद्यालय के हर्बेरियम का बंद होना वित्तीय अनिश्चितता और भविष्य में अन्य संग्रहालयों के बंद होने की व्यापक प्रवृत्ति को दर्शाता है। ड्यूक हर्बेरियम की दुर्दशा बुनियादी वैज्ञानिक ढांचे की नाज़ुकता और वैज्ञानिक विरासत के संरक्षण को प्राथमिकता देने की अनिवार्यता का संकेत देती है। पादप वर्गिकी और जैव विविधता विज्ञान की दृष्टि से ऐसे संग्रहालय बचाने के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण की दरकार है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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