युरेशियाई ऊदबिलाव (Castor fiber) की चपटी और चमड़े सरीखी पूंछ उनको तैरने में काफी मदद करती है। पूंछ उनके लिए पतवार का और दिशा देने का काम करती है। उनकी पूंछ की शल्कों का आवरण जहां पूंछ को उपयोगी बनाता है वहीं यह उनकी शिनाख्त में मदद भी कर सकता है और ‘फिंगरप्रिंट’ की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। ‘फिंगरप्रिंट’ पहचान कृत्रिम बुद्धि (एआई) के पैटर्न पहचान एल्गोरिद्म द्वारा पूंछ के शल्कों के पैटर्न देखकर की गई है।
एआई की यह सफलता ऊदबिलाव को उन पर पड़ रहे उस दवाब, तनाव या परेशानी से मुक्त कर सकती है जो उन्हें उनकी पहचान के लिए उन पर टैग और कॉलर-आईडी लगाते वक्त झेलना पड़ता है। दरअसल युरेशियाई ऊदबिलाव 19वीं सदी में लगभग विलुप्ति की कगार पर पहुंच गए थे। उनका शिकार उनके फर और कैस्टोरियम (एक खूशबूदार पदार्थ) के लिए खूब किया जाता था। विलुप्ति की कगार पर पहुंचाने के बाद जब इन्हें बचाने की मुहिम चली तो इनके कानों पर टैग और रेडियो कॉलर लगाकर इनकी आबादी पर नज़र रखना शुरू हुआ। लेकिन इस काम के लिए उन्हें पकड़कर निशानदेही करना उनको परेशान कर सकता है।
इसलिए शोधकर्ताओं ने शिकार हो चुके 100 युरेशियन ऊदबिलावों की पूंछ की तस्वीरें खींचीं और इनसे एआई को पैटर्न सीखने के लिए प्रशिक्षित किया। जब एआई की परीक्षा ली गई तो 96 प्रतिशत बार एआई ने उन्हें सटीक पहचाना था। ये नतीजे इकोलॉजी एंड इवॉल्यूशन में प्रकाशित हुए हैं।
किंतु एक दिक्कत यह है कि वैज्ञानिकों ने ये तस्वीरें प्रयोगशाला में अच्छी रोशनी की परिस्थिति में ली थीं और उन्हीं के आधार पर एआई को प्रशिक्षित करके जांचा है। किंतु प्राकृतवास में विचरते हुए जो तस्वीरें मिलेंगी वे संभवत: इस तरह उजली और इतनी साफ नहीं होंगी। और वास्तव में तो प्राकृतवास में खींची गई (पूंछ की) तस्वीरों से ही एआई को ऊदबिलावों में भेद करने में सक्षम होना चाहिए। बहरहाल, शोधकर्ताओं का कहना है कि इन क्षेत्रों में तस्वीर खींचने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले स्वचालित कैमरों में एक छोटा प्लास्टिक लेंस जोड़ने से तस्वीर की गुणवत्ता चार गुना बढ़ाई जा सकती है। (स्रोत फीचर्स)
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