साल 2017 में तंत्रिका विज्ञानी और युनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की क्लायमेट एक्शन युनिट के निदेशक क्रिस डी मेयर ने वैज्ञानिकों, वित्त पेशेवरों और नीति निर्माताओं के साथ एक मनोवैज्ञानिक अध्ययन किया था। उन्होंने इन क्षेत्रों से आए लोगों को समूह में बांटा – प्रत्येक समूह में छह व्यक्ति। फिर उन्हें जोखिम और अनिश्चितिता से सम्बंधित उनके व्यक्तिगत और व्यावसायिक अनुभवों के आधार पर कुछ प्रश्न और गतिविधियां करने को दीं। पाया गया कि लोग इस बात को लेकर आपस में एकमत और सहमत नहीं हो सके थे कि ‘जोखिम और अनिश्चितता’ क्या है। और तो और, इतने छोटे समूह में भी लोगों के परस्पर विरोधी और कट्टर मत थे।
इस नतीजे से डी मेयर को यह बात तुरंत समझ में आई कि क्यों जलवायु सम्मेलनों, समितियों वगैरह में सहभागी पेशेवर अक्सर एक-दूसरे की कही बातों को गलत समझते हैं। ऐसा इसलिए है कि बुनियादी शब्दों पर भी लोगों की अवधारणाएं या समझ बहुत भिन्न होती हैं। इसलिए कई बार हम किसी शब्द के माध्यम से जो कहना या समझाना चाहते हैं, ज़रूरी नहीं है कि सामने वाले को वही समझ आ रहा हो। जैसे शब्द ‘विकास’ के बारे में लोगों की समझ भिन्न हो सकती है, किसी के लिए विकास का मतलब अच्छी सड़कें, जगमगाता शहर, बुलेट ट्रेन हो सकती है, वहीं किसी और के लिए लिए विकास का मतलब स्वच्छ पेयजल, अच्छी स्वास्थ्य सुविधा हो सकती है। और समझ में इसी भिन्नता के चलते जलवायु वैज्ञानिक अपने संदेश को अन्य लोगों तक पहुंचाने और उन्हें जागरूक करने में इतनी जद्दोजहद का सामना करते हैं, और बड़े वित्तीय संगठन प्राय: जलवायु परिवर्तन के खतरों को कम आंकते हैं।
अध्ययन यह भी बताता है कि इस तरह के वैचारिक मतभेद या फर्क हर जगह सामने आते हैं, लेकिन आम तौर पर लोग इन विविधताओं से बेखबर होते हैं। तंत्रिका विज्ञान के अध्ययन दर्शाते हैं कि ये फर्क इस बात पर आधारित होते हैं कि किसी चीज़ या शब्द के बारे में हमारे विचार या अवधारणाएं किस प्रकार निर्मित हुई हैं, और हमारे ऊपर किस तरह के राजनीतिक, भावनात्मक और चरित्रगत असर हुए हैं। जीवन भर के अनुभवों, हमारे कामों या विश्वासों से बनी सोच को बदलना असंभव नहीं तो मुश्किल ज़रूर होता है।
लेकिन दो तरीके इसमें मदद कर सकते हैं: एक, लोगों को इस बारे में सचेत बनाना कि हमारे अर्थ और उनकी समझ में फर्क है; दूसरा, उन्हें नई भाषा चुनने के लिए प्रोत्साहित करना जो अवधारणात्मक बोझ से मुक्त हो।
‘अवधारणा’ शब्द को परिभाषित करना भी कठिन है। मोटे तौर पर अवधारणा का मतलब है किसी शब्द को सुनते, पढ़ते, या उपयोग करते समय हमारे मन में उभरने वाले उसके विभिन्न गुण, उदाहरण और सम्बंध और ये काफी अलग-अलग हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, ‘पक्षी’ की अवधारणा में शामिल हो सकते हैं कि पंख, उड़ना, घोंसले बनाना, गोरैया। ये शब्दकोश में दी गई परिभाषाओं से भिन्न होती हैं, जो अडिग और विशिष्ट होती हैं जिन्हें आम तौर पर सीखना होता है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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