पिछले कुछ समय में जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GenAI) में काफी विस्तार हुआ है। GenAI प्रशिक्षण के तौर पर दिए गए डैटा से पैटर्न, बनावट, विशेषताएं और बारीकियां सीखकर एकदम नया वांछित डैटा (संदेश, छवियां, वीडियो, ऑडियो, 3डी मॉडल वगैरह) गढ़ सकता है। GenAI के इस कौशल से कई आसानियां हुईं हैं; जैसे इसने मूवी डबिंग बेहतर की है, जीन अनुक्रमण को आसान बनाया है। लेकिन इसने उतनी ही समस्याएं भी पैदा की हैं।
GenAI की मदद से (किसी भी व्यक्ति या जंतु की) कृत्रिम आवाज़ बनाने की गुणवत्ता इतनी बेहतर हो गई है कि अब यह अंतर कर पाना मुश्किल है कि वे किसी वास्तविक व्यक्ति या जानवर की आवाज़ है या डीपफेक से सृजित नकली आवाज़। ऐसे में किसी व्यक्ति की मर्ज़ी और जानकारी के बिना उसकी आवाज़ को किसी जालसाज़ी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे किसी अभिनेता की आवाज़ में कोई अमुक प्रतियोगिता जीतने का झांसा देने में, पैसे ऐंठने, धमकाने वगैरह में। और धोखाधड़ी या आवाज़ से छेड़खानी के लिए आपके किसी लंबे-चौड़े ऑडियो की ज़रूरत नहीं होती, बस चंद सेकंड लंबी रिकॉर्डिंग या वॉइस नोट ही आपकी आवाज़ में संदेश गढ़ने के लिए काफी है। तस्वीरों और वीडियो के मामले में तो इस तरह से नकली तस्वीर और वीडियो गढ़ने और धमकाने व वायरल करने के कितने सारे मामले सामने आ चुके हैं।
ये तकनीकें उपयोगी हों लेकिन साथ ही सुरक्षित भी रहें, इसी उद्देश्य से वाशिंगटन विश्वविद्यालय के कंप्यूटर वैज्ञानिक निंग झांग ने एक एंटीफेक नामक टूल बनाया है। एंटीफेक सायबर अपराधियों या अनाधिकृत लोगों को अपेक्षित ऑडियो सृजित करने ही नहीं देता और अपराध होने के पहले ही रोक लेता है।
आवाज़ों की चोरी रोकने और जालसाजी से बचाने के लिए एंटीफेक ध्वनि डैटा और रिकॉर्डिंग से उन विशेषताओं को हासिल करना मुश्किल बना देता है जो कृत्रिम ध्वनि बनाने के लिए ज़रूरी हैं। ऐसा करने के लिए यह रिकॉर्डेड ऑडियो या डैटा को बस इतना विकृत कर देता है या उसमें खलल डाल देता है कि हमें सुनने में तो वह आवाज़ ठीक-ठाक ही लगती है, लेकिन नकली आवाज़ गढ़ने वाले मॉडल को इसके ज़रिए सीखना-समझना असंभव हो जाता है।
छवियों के मामले में इसी तकनीक पर आधारित ग्लेज़ जैसे सुरक्षा टूल पहले ही मौजूद हैं। लेकिन ध्वनि सुरक्षा के मामले में एंटीफेक पहला प्रयास है। एंटीफेक अभी आवाज़ों की छोटी रिकॉर्डिंग की मदद से बनाई जाने वाली आवाज़ या ध्वनि क्लोनिंग से सुरक्षा दे सकता है, यह छोटी रिकॉर्डिंग ही सायबर आपराधियों द्वारा जालसाज़ी का सबसे आम ज़रिया है।
एंटीफेक द्वारा ऑडियो सुरक्षा का दावा किए जाने का आधार वह परीक्षण है जो शोधकर्ताओं ने पांच आधुनिक ध्वनि सिंथेसाइज़र के विरुद्ध किया है। एंटीफेक ने ऑडियो रिकॉर्डिंग को 95 प्रतिशत सुरक्षा दी है, यहां तक उन अज्ञात ध्वनि सिंथेसाइज़र के खिलाफ भी जिनके लिए इसे विशेष रूप से डिज़ाइन नहीं किया गया था। इसके अलावा, 24 प्रतिभागियों के साथ भी इस एंटीफेक की जांच की गई है। अधिक व्यापक अध्ययन इस एंटीफेक की कुशलता को और अधिक स्पष्ट करेंगे।
वैसे एक बात यह भी है कि इस डिजिटल युग में डैटा की पूर्ण सुरक्षा हासिल करना नामुमकिन है। क्योंकि जैसे-जैसे सुरक्षा तकनीकें परिष्कृत होती जाएंगी, सायबर अपराधी भी और अधिक शातिर होते जाएंगे। और दोनों में ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की स्थिति बनी रहेगी। लेकिन फिर भी सुरक्षा दीवार को भेदना मुश्किल से मुश्किलतर करके अपराधिक मामलों की संख्या को शून्य न सही लेकिन शून्य के करीब लाया जा सकता है।
फिलहाल, इस तकनीक के सामने कुछ चुनौतियां भी हैं। एक बड़ी चुनौती तो यह है कि फिलहाल उपयोगकर्ताओं को स्वयं इसका उपयोग करना होगा, जिसे चलाने के लिए थोड़े-बहुत प्रोग्रामिंग कौशल की आवश्यकता होगी। दूसरी चुनौती यह है कि सुरक्षा के लिए जो तरीके और उपकरण निरंतर विकसित किए जा रहे हैं लोगों को उन्हें अनिवार्य तौर पर अपनाना और लगातार अपग्रेड करते जाना होगा। वरना लगातार अधिक शातिर और अपग्रेड होते जा रहे सायबर अपराधियों से डैटा असुरक्षित ही रहेगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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