दुनिया भर के लगभग साढ़े तेरह करोड़ लोगों की नज़र कमज़ोर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि इसमें से 80 प्रतिशत मामलों को या तो थामा जा सकता है या ठीक किया जा सकता है। इसलिए WHO ने इंटरनेशनल एजेंसी फॉर प्रिवेंशन ऑफ ब्लाइंडनेस (IAPB) के साथ ‘विज़न 2020: दृष्टि का अधिकार’ नामक कार्यक्रम चलाया है।
भारत में 13 लाख लोग जन्मांध हैं और 76 लाख लोग ऐसे दृष्टि दोषों से पीड़ित हैं जिनका आसानी से इलाज किया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों और कस्बों में दृष्टि केंद्र स्थापित कर, सक्षम नेत्र रोग विशेषज्ञों और साधन-सुविधाओं से लैस नेत्र चिकित्सालय खोलकर इन पीड़ितों को दृष्टि का अधिकार मिल सकता है। और वास्तव में, पूरे देश में दृष्टि केंद्र और नेत्र चिकित्सालय खोले भी जा रहे हैं। इसके अलावा, कुछ विश्व स्तरीय अत्याधुनिक नेत्र संस्थान सक्रिय रूप से विज़न 2020 पर काम कर रहे हैं, और ऐसा लगता है कि यह हासिल हो सकता है – पश्यंतु सर्वेजना: यानी सभी देख सकें।
हैदराबाद स्थित एल. वी. प्रसाद आई इंस्टीट्यूट (LVPEI), जहां मैं काम करता हूं, प्रतिदिन औसतन लगभग 1200 रोगियों को देखता है। इनमें से लगभग 100 रोगियों की आंखें बैक्टीरिया, फफूंद या वायरस से संक्रमित होती हैं। मेरी सहकर्मी डॉ. सावित्री शर्मा ने पूर्व में भारत में इस तरह के संक्रमणों की समीक्षा की थी। डॉ. शर्मा विश्व स्तर पर ऑक्यूलर माइक्रोबायोम (नेत्र सूक्ष्मजीव संसार) की विशेषज्ञ के तौर पर मशहूर हैं।
माइक्रोबायोम क्या है?
जीनोम से आशय होता है किसी कोशिका में उपस्थित डीएनए सूचनाओं का समूचा समुच्चय। मनुष्य की कोशिकाओं में यह 23 जोड़ी गुणसूत्रों के रूप में होता है। बायोम (जैव संसार) किसी स्थान पर मौजूद प्रजातियों का जगत होता है। ऑक्यूलर माइक्रोबायोम (या नेत्र सूक्ष्मजीव संसार) से तात्पर्य आंख में रहने या बसने वाले सूक्ष्मजीवों (बैक्टीरिया, फफूंद और वायरस) से है। एक स्वस्थ नेत्र के सूक्ष्मजीव संसार में सूक्ष्मजीव एक सुरक्षा दीवार की तरह काम करते हैं जो हानिकारक रोगजनकों के हमले से आंखों को महफूज़ रखते हैं।
स्वस्थ नेत्रों से तुलना करें तो फंगल केराटाइटिस जैसे संक्रामक रोगों से संक्रमित नेत्रों के कंजंक्टाइवा और कॉर्निया में नेत्र सूक्ष्मजीव संसार काफी अलग होता है। कंजंक्टाइवा आंख की सुरक्षा करने वाली पतली, पारदर्शी झिल्ली को कहते हैं, और कॉर्निया आंख की सबसे बाहरी पारदर्शी परत होती है जो प्रकाश को फोकस करने और अपवर्तन में मदद करती है।
भारत में स्थिति
वर्ष 2005 में भारत की जनसंख्या 115 करोड़ थी और वर्तमान में यह 140 करोड़ है। जनसंख्या में इतनी वृद्धि के बावजूद, भारत के ग्रामीण इलाकों में स्थापित नेत्र देखभाल केंद्रों, कस्बों और शहरों में अधिक नेत्र रोग विशेषज्ञों और शहरों में नेत्र अनुसंधान संस्थानों ने भारत को विज़न 2020: दृष्टि का अधिकार का समर्थक बनाने में मदद की है। लेकिन, देश भर में अत्यधिक धूलयुक्त वायु प्रदूषण के मौजूदा स्तर ने कई लोगों को ‘आंख आना’ (कंजंक्टिवाइटिस), आंख में खुजली और सूजन, और लेंस प्रभावित होने पर नज़र के धुंधलेपन से पीड़ित कर दिया है, और कई लोग तेज़ रोशनी के प्रति संवेदनशील हो गए हैं।
इससे कैसे निपटा जाए? अमेरिका में क्लीवलैंड क्लीनिक ने इससे निपटने के कई तरीके सुझाए हैं – आंखों को राहत देने के लिए उन पर भीगा, गर्म या ठंडा रुमाल रखें; सुरक्षात्मक चश्मा पहनें; यदि आप कॉन्टैक्ट लेंस लगाते हैं, तो उन्हें साफ रखें; अपने नेत्र चिकित्सक से संपर्क करें और उनसे उचित मलहम या दवा की सलाह लें। (स्रोत फीचर्स)
इस लेख पर सलाह और सहयोग के लिए मैं डॉ. शिवाजी को धन्यवाद देता हूं।
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://th-i.thgim.com/public/incoming/j4v9li/article67666229.ece/alternates/LANDSCAPE_1200/14isbs_human_eye.jpg