इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि भारत और दुनिया भर में पक्षियों की प्रजातियां और पक्षियों की संख्या तेज़ी से कम हो रही है। मानव गतिविधि जनित जलवायु परिवर्तन के अलावा, प्रदूषण, कीटनाशकों का उपयोग, सिमटते प्राकृतवास और शिकार इनकी विलुप्ति का कारण है। और अब इस बारे में भी जागरूकता काफी बढ़ रही है कि रात के समय किया जाने वाला कृत्रिम उजाला पक्षियों की कई प्रजातियों का बड़ा हत्यारा है।
साइंटिफिक अमेरिकन में प्रकाशित अपने एक लेख में नॉर्थ कैरोलिना के जोशुआ सोकोल ने इस नाटकीय प्रभाव का वर्णन किया है। 2001 में हुए 9/11 हमले की याद में न्यूयॉर्क शहर में दो गगनचुंबी प्रकाश स्तम्भ, ट्रायब्यूट इन लाइट, स्थापित किए गए हैं और पक्षियों की आबादी पर इनका प्रभाव पड़ रहा है। 11 सितंबर की रात में जब ये दो प्रकाश स्तम्भ ऊपर आकाश तक जगमगाते हैं तो ये फुदकी (warbler), समुद्री पक्षी (seabird), कस्तूर (thrush) जैसे हज़ारों प्रवासी पक्षियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इसके साथ ही शाहीन बाज़ (peregrine falcons) जैसे शिकारी पक्षी प्रवासी पक्षियों के इस भ्रम का फायदा उठाने और उन्हें चट करने को तत्पर होते हैं।
लेख के अनुसार, 20 मिनट के भीतर ट्रायब्यूट इन लाइट प्रकाश स्तम्भ के आधे किलोमीटर के दायरे में करीब 16,000 पक्षी इकट्ठे हो जाते हैं; साल में एक बार होने वाला यह आयोजन दस लाख से अधिक पक्षियों को एक जगह इकट्ठा कर देता है।
और जब चिंतित पर्यवेक्षक देखते हैं कि इसके चलते वहां बहुत सारे पक्षी जमा हो रहे हैं, तो आयोजक रोशनी कम कर देते हैं। और अब, यहां मौसम विज्ञानियों द्वारा कुल वर्षा का अनुमान लगाने के लिए उपयोग की जाने वाली एक रडार-आधारित प्रणाली स्थापित है जिसका उपयोग 11 सितंबर को पक्षियों की गिनती करने के लिए भी किया जाता है। साथ ही, पूरे साल के दौरान पूरे महाद्वीप में प्रवासी पक्षियों की आवाजाही का अनुमान लगाने के लिए भी। लेख के अनुसार, 11 सितंबर का अध्ययन बताता है कि रात में शहरों की जगमगाती रोशनी का प्रवासी पक्षियों के उड़ान पथ पर क्या प्रभाव हो सकता है। “समय के साथ ट्रायब्यूट इन लाइट की रोशनी से भटककर मंडराते हुए पक्षियों की ऊर्जा (शरीर की चर्बी) चुक जाती है, जिस कारण वे शिकारियों के आसान लक्ष्य बन जाते हैं। और सबसे बुरी बात यह है कि वे पास की इमारतों की खिड़कियों से टकराकर गंभीर रूप से घायल हो सकते हैं या मर सकते हैं।”
लेख कहता है कि यह अच्छी बात है कि ये अध्ययन जारी हैं, क्योंकि पक्षियों की घटती संख्या चिंताजनक है। अकेले उत्तरी अमेरिका में, 1970 के बाद से 2019 तक पक्षियों की संख्या में 3 अरब से अधिक की कमी आई है।
भारत की बात करें तो वेदर चैनल (Weather Channel) नामक एक पोर्टल की रिपोर्ट है कि भारत की 867 पक्षी प्रजातियों में से 80 प्रतिशत प्रजातियों की संख्या में तेज़ी से गिरावट आई है, और इनमें से 101 प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है। ये नतीजे देश भर के 15,500 पक्षी निरीक्षकों द्वारा किए गए एक करोड़ से अधिक अवलोकनों के आधार पर दिए गए हैं।
दुनिया भर में पक्षियों की कम होती संख्या और विविधता का गंभीर प्रभाव खाद्य सुरक्षा पर पड़ रहा है। पक्षियों से हमें मिलने वाला पहला लाभ (या यू कहें कि सेवा) है कीट नियंत्रण। अनुमान है कि पक्षीगण एक साल में तकरीबन 40-50 करोड़ टन कीट खा जाते हैं। शिकारियों के कुनबे में भी पक्षी महत्वपूर्ण हैं; वे शिकार कर चूहों जैसे कुतरने वाले जीवों की आबादी को नियंत्रित रखते हैं। लेकिन पक्षियों के लिए खेती में उपयोग किए जाने वाले कीटनाशकों का असर बाकी किसी भी कारक से अधिक नुकसानदायक होगा।
कृषि के इतर भी पक्षी पौधों और शाकाहारियों, शिकार और शिकारियों का संतुलन बनाए रखते हैं, जिससे दलदल और घास के मैदान पनपते हैं। और ये दलदल और घास के मैदान वे प्राकृतिक एजेंट हैं जो कार्बन भंडारण करते हैं, जलवायु को स्थिर रखते हैं, ऑक्सीजन देते हैं और प्रदूषकों को पोषक तत्वों में बदलते हैं। यदि पक्षी न होते तो इनमें से कई पारिस्थितिक तंत्र अस्तित्व में ही नहीं होते।
और हालांकि हम तितलियों और मधुमक्खियों को सबसे महत्वपूर्ण परागणकर्ता मानते हैं, लेकिन कई ऐसे पौधे हैं जिनका परागण पक्षियों द्वारा होता है। जिन फूलों में गंध नहीं होती, और हमारे द्वारा भोजन या औषधि के रूप में उपयोग किए जाने वाले 5 प्रतिशत पौधों का परागण पक्षियों द्वारा होता है। इसके अलावा पक्षियों की बीज फैलाने में भी भूमिका होती है। जब पक्षी एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं, तो उनके द्वारा खाए गए बीज भी उनके साथ वहां पहुंच जाते हैं, जो मल त्याग से बाहर निकल वहां फैल जाते हैं। पक्षी नष्ट हो चुके पारिस्थितिकी तंत्र को फिर से जिलाते हैं (बीजों के माध्यम से), पौधों को समुद्र के पार भी ले जाते हैं और वहां के भूदृश्य को बदल सकते हैं। न्यूज़ीलैंड के एक करोड़ हैक्टर में फैले जंगल में से 70 प्रतिशत जंगल पक्षियों द्वारा फैलाए गए बीजों से उगा है।
दुनिया भर में संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था एनडेन्जर्ड स्पीशीज़ इंटरनेशनल का कहना है कि “कुछ पक्षियों को मुख्य (कीस्टोन) प्रजाति माना जाता है क्योंकि पारिस्थितिकी तंत्र में उनकी उपस्थिति (या अनुपस्थिति) अन्य प्रजातियों को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है।” उदाहरण के लिए, कठफोड़वा पेड़ों में कोटर बनाते हैं जिनका उपयोग बाद में कई अन्य प्रजातियों द्वारा किया जाता है। डोडो के विलुप्त होने के बाद यह पता चला कि एक पेड़, जिसके फल डोडो का प्रमुख भोजन थे, के बीज डोडो के पाचन तंत्र से गुज़रे बिना अंकुरित होने में असमर्थ थे – डोडो का पाचन तंत्र बीज के आवरण को गला देता था और अंकुरण को संभव बनाता था।
पक्षी जो दूसरी भूमिका निभाते हैं वह है सफाई का काम। यह तो हम जानते हैं कि गिद्ध एक घंटे के भीतर मृत जानवर तक पहुंच जाते हैं, और फिर उसके पूरे शरीर और सभी अवशेषों का निपटान कर देते हैं। यही कार्य यदि जंगली कुत्तों या चूहों पर छोड़ दिया जाए तो शव (या अवशेष) के निपटान में कई दिन लग सकते हैं, जिससे सड़न और बीमारी फैल सकती है। बर्डलाइफ इंटरनेशनल पोर्टल का अनुमान है कि भारत में गिद्धों की संख्या में गिरावट के कारण जंगली कुत्तों की आबादी 55 लाख तक बढ़ गई है, जिसके कारण रेबीज़ के मामले बढ़ गए हैं, और 47,300 लोगों की मौत हो गई है।
पारिस्थितिकी को बनाए रखने में इतनी सारी भूमिकाएं होने के साथ ही पक्षी इस तरह अनुकूलित हैं कि वे लंबा प्रवास कर अपने माकूल स्थानों पर जाते हैं। इस तरह, ठंडे उत्तरी ध्रुव के अरबों पक्षी सर्दियों के लिए दक्षिण की ओर प्रवास करते हैं, और फिर मौसम बदलने पर वापस घर की ओर उड़ जाते हैं। और हालांकि इस प्रवासन की अपनी कीमत (जोखिम) और मृत्यु की आशंका होती है, लेकिन ये पैटर्न प्रजनन मौसम में फिट बैठता है और संख्या बरकरार रहती है।
लेकिन रात के समय पक्षियों के उड़ान पथ पर चमकीली रोशनियां और जगमगाते शहर पक्षियों के दिशाज्ञान को प्रभावित करते हैं और भ्रम पैदा करते हैं। इसके चलते ऊर्जा की बर्बादी होती है, भिड़ंत होती है और समूह टूटता है – और शिकारियों के मज़े होते हैं। रात के समय दूर के शहर से आने वाली रोशनी भी आकाशगंगा की रोशनी का भ्रम दे सकती है और पक्षियों के दिशा बोध को बिगाड़ सकती है। पक्षियों में चमकदार रोशनी के प्रति जो रहस्यमयी आकर्षण होता है, वह पक्षियों को तेज़ रोशनी वाली खिड़की के शीशों की ओर जाने को उकसाता है!
यह कोई हालिया घटना नहीं है। वर्ष 1880 में, साइंटफिक अमेरिकन ने अपने एक लेख में बताया था कि रात की रोशनी में पक्षी उलझ जाते थे। लाइटहाउस के प्रकाश का पक्षियों पर प्रभाव जानने के उद्देश्य से हुए एक अध्ययन में सामने आया था कि इससे दस लाख से अधिक पक्षी प्रभावित हुए और इसके चलते ढेरों पक्षी मारे गए।
न्यूयॉर्क में ट्रायब्यूट इन लाइट का अनुभव नाटकीय रूप से उस क्षति की विकरालता को सामने लाता है जो रात की प्रकाश व्यवस्था से पक्षियों की आबादी को होती है। साइंटिफिक अमेरिकन का एक लेख बताता है कि अब रात के समय अत्यधिक तीव्र प्रकाश वाले क्षेत्रों के मानचित्र बनाने के लिए उपग्रह इमेजिंग का, और पक्षियों व उनकी संख्या को ट्रैक करने के लिए रडार का उपयोग नियमित रूप से किया जाता है। इस तरह, अमेरिका में उन शहरों की पहचान की जा रही है जिनकी रोशनी का स्तर प्रवासी पक्षियों को प्रभावित करने की सबसे अधिक संभावना रखता है। इसके अलावा बर्डकास्ट नामक एक कार्यक्रम महाद्वीप-स्तर पर मौसम और रडार डैटा को एक साथ रखता है और मशीन लर्निंग का उपयोग करके ठीक उन रातों का पूर्वानुमान लगाता है जब लाखों प्रवासी पक्षी अमेरिकी शहरों के ऊपर से उड़ेंगे।
यह जानकारी पक्षियों के संरक्षण के प्रति जागरूक समूहों को उनके उड़ान पथ में पड़ने वाले शहरों से प्रकाश तीव्रता नियंत्रित करने वगैरह की पैरवी करने में सक्षम बनाती है। उनके ये प्रयास प्रभावी भी रहे हैं – न्यूयॉर्क शहर ने एक अध्यादेश पारित किया है जिसके तहत प्रवासन के मौसम में इमारतों को रोशनी बंद करनी होती है। इस जागरूकता का प्रचार दर्जनों अन्य शहरों में भी जारी है।
यह एक ऐसा आंदोलन है जिसे दुनिया भर में जड़ें फैलाने की ज़रूरत है, ताकि एक ऐसे महत्वपूर्ण अभिकर्ता को संरक्षित किया जा सके जो पारिस्थितिकी को व्यवस्थित रखता है और एक ऐसी त्रासदी से बचा जा सके जो पृथ्वी को टिकाऊ बनाए रखने के अन्य प्रयासों पर पानी फेर सकती है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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