प्रजनन के लिए मेंढक प्रजातियों में नर दो में से किसी एक रणनीति उपयोग करते हैं – या तो वे किसी जगह बैठकर मादा को पुकारते हैं और उनके आने का इंतज़ार करते हैं, या वे लगातार मादा की तलाश करते हैं और कम समय में अधिक से अधिक मादाओं के साथ संभोग करने की कोशिश करते हैं। अधिक से अधिक मैथुन करने के प्रयास में अक्सर, एक ही मादा पर कई नर चढ़ जाते हैं जिससे मेंढकों का गुत्थमगुत्था सा ढेर बन जाता है, जो मादा को गंभीर रूप से घायल कर सकता है और उसकी जान तक जा सकती है।
युरोपीय मेंढक (Rana temporaria) संभोग के लिए यही दूसरी रणनीति अपनाते हैं। सर्दियों की लंबी शीतनिद्रा से जागने के बाद युरोपीय नर मेंढक संभोग के लिए मादाओं के पीछे भागते हैं, उन्हें डराते हैं और उन्हें संभोग के लिए मजबूर करते हैं। चूंकि नर मेंढकों की संख्या मादाओं से काफी अधिक होती है इसलिए हालात मादाओं के लिए और भी बुरे हो जाते हैं।
वैज्ञानिकों को अब तक लगता था कि नर के इस संभोग हमले से बचने में मादा असहाय होती है। लेकिन रॉयल सोसायटी बी में प्रकाशित नतीजों से पता चलता है कि ये मादाएं इतनी भी असहाय नहीं होती और अवांछित संभोग से बचने के लिए वे कई युक्तियां अपनाती हैं – जैसे वे शरीर को घुमाकर नर के चंगुल से निकल भागती हैं, नर होने का स्वांग रचती हैं, यहां तक कि मरने का नाटक भी करती हैं।
इस बात का पता वैकासिक और व्यवहार जीवविज्ञानी कैरोलिन डीट्रिच को तब लगा जब वे युरोपीय मेंढकों में एक अन्य बात की जांच कर रही थी – चूंकि बड़ी साइज़ की मादाएं अधिक अंडे दे सकती हैं तो क्या नर मेंढक संभोग के लिए शरीर की साइज़ के आधार पर मादा साथी चुनते हैं?
शोधकर्ताओं को नर का किसी विशिष्ट डील-डौल वाली मादा के प्रति झुकाव तो नहीं दिखा लेकिन उन्होंने पाया कि मादाएं अवांछित नर से बचने के लिए मुख्यत: तीन रणनीति अपना रही थीं। अधिकतर मामलों में वे पानी में नर के नीचे अपने शरीर को घुमाकर उसकी बाहों से निकलने का प्रयास कर रही थीं।
मादाएं नर को मूर्ख भी बना रही थीं। वे इस बात का भी फायदा उठाती हैं कि नर संभोग-साथी के मामले में ज़्यादा नखरैल नहीं होते। अधिक से अधिक संभोग के चक्कर में युरोपीय नर मेंढकों का जिससे भी सामना होता है वे उसके साथ संभोग कर लेते हैं। यहां तक कि वे अन्य नरों के साथ, युरोपीय मादा मेंढक की तरह दिखने वाले युरोपीय भेक यानी टोड (Bufo bufo) के साथ, और यहां तक कि सर्वथा अलग प्रकार के उभयचरों के साथ भी संभोग कर लेते हैं।
जब कोई नर मेंढक दूसरे नर पर चढ़ने की कोशिश करता है तो दूसरा मेंढक घुरघुराने की आवाज़ निकाल कर गलती का एहसास कराता है। अवांछित नर को बेवकूफ बनाने के लिए मादाएं भी ऐसी आवाज़ निकालते हुए नज़र आईं।
कुछ मामलों में तो मादाएं मृत होने का अभिनय करते देखी गईं। एक घटना में पानी के अंदर एक मादा मेंढक अपने हाथ-पैर फैलाकर लेटी हुई थी और एक नर मेंढक उसके साथ संभोग करने का प्रयास कर रहा था। उस दौरान वह एकदम मृत शरीर की तरह स्थिर और सख्त रही। अंतत: जब नर की दिलचस्पी खत्म हो गई, तो वह उठी और तैर कर दूर चली गई।
आम तौर पर जीवों में मरने के स्वांग का यह व्यवहार शिकारी से बचाव की रणनीति के तौर पर देखा जाता है, जिसे ‘टोनिक अचलता’ (स्पर्श निश्चलता) कहा जाता है। लेकिन संभोग से बचने के लिए ऐसा व्यवहार अचरज की बात है। वैसे जबरन संभोग से बचने के लिए अन्य प्रजातियों में भी कुछ इसी तरह की युक्तियां दिखती हैं। जैसे, मादा बत्तखों में जबरन संभोग के प्रयासों को विफल करने के लिए जटिल जननांग विकसित हुए हैं, और इसके जवाब में नर जननांग विकसित हुए हैं।
शोधकर्ता मादा मेंढकों की इस बचाव रणनीति के बारे में कोई ठोस निष्कर्ष देने से कतरा रहे हैं क्योंकि यह अध्ययन प्रयोगशाला की कृत्रिम स्थितियों में हुआ था, जो जानवरों के व्यवहार को प्रभावित कर सकता है। बहरहाल, इस अवलोकन ने कई सवाल छोड़े हैं, जिन पर काम करने की आवश्यकता है। (स्रोत फीचर्स)
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लगभग 14,300 साल पहले फ्रांस स्थित चीड़ के जंगल में एक असाधारण घटना घटी थी जिसके निशान हाल ही में उजागर हुए हैं। ‘मियाके इवेंट’ नामक इस घटना में सौर कणों की इतनी शक्तिशाली बमबारी हुई थी कि ऐसी घटना यदि आज हुई होती तो इससे संचार उपग्रह तो नष्ट होते ही, साथ में दुनिया भर की बिजली ग्रिड को भी गंभीर नुकसान हुआ होता। यह दिलचस्प जानकारी पेरिस स्थित कॉलेज डी फ्रांस के जलवायु विज्ञानी एडुआर्ड बार्ड के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन से मिली है। उन्होंने फ्रांस के आल्प्स जंगलों में नदी के किनारे दबे पेड़ों के वलयों की जांच करके यह जानकारी दी है।
ऐसा माना जाता है कि मियाके घटनाएं सूर्य द्वारा उत्सर्जित उच्च-ऊर्जा प्रोटॉन्स के परिणामस्वरूप होती हैं। क्योंकि आधुनिक समय में अभी तक ऐसी कोई भी घटना नहीं देखी गई है इसलिए वैज्ञानिक इस रहस्य को जानने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि सूरज से ऊर्जावान कणों के बौछार की घटनाएं देखी गई हैं लेकिन मियाके घटना अब तक ज्ञात दस सबसे बड़ी घटनाओं में से एक है। इसका ऊर्जा स्तर 1859 की सौर चुंबकीय कैरिंगटन घटना से भी अधिक था।
गौरतलब है कि सूरज से ऊर्जित कणों से सम्बंधित घटनाओं के सबूत पेड़ की वलयों और बर्फ के केंद्रीय भाग में दर्ज हो जाते हैं, जिसमें आवेशित सौर कण वायुमंडल के अणुओं से संपर्क में आने पर कार्बन के रेडियोधर्मी समस्थानिक, कार्बन-14 में वृद्धि करते हैं। कार्बन-14 समय के साथ क्षय होता रहता है और इसके क्षय की स्थिर दर इसे कार्बनिक पदार्थों की डेटिंग के लिए उपयोगी बनाती है। पेड़ की वलयों में कार्बन-14 की बढ़ी हुई मात्रा मियाके घटना की ओर इशारा करती है।
विशेषज्ञों के अनुसार आखिरी ग्लेशियल मैक्सिमम के अंत में बर्फ की चादरों के पिघलने से नदियों का बहाव तेज़ हो गया। बहाव के साथ आने वाली तलछट के नीचे ऑक्सीजन विहीन पर्यावरण में पेड़ों के तने संरक्षित रहे। ये पेड़ आज भी सीधे खड़े हैं। 172 पेड़ों से लिए गए कार्बन-14 नमूनों का अध्ययन करने पर 14,300 साल पहले कार्बन-14 की अतिरिक्त मात्रा का पता चला।
समय की सही गणना के लिए शोधकर्ताओं ने सौर गतिविधि के एक अन्य संकेतक – बर्फीली कोर में बेरीलियम-10 – अध्ययन किया और पाया कि कार्बन-14 और बेरीलियम-10 दोनों में वृद्धि एक ही समय दर्ज हुई हैं, जो अभूतपूर्व सौर गतिविधि का संकेत है।
फिलॉसॉफिकल ट्रांज़ेक्शन्स ऑफ रॉयल सोसायटी-ए में प्रकाशित यह खोज इसलिए दिलचस्प मानी जा रही है कि यह घटना अपेक्षाकृत शांत सौर हलचल के दौरान हुई। अनुमान है कि सूर्य की सतह के नीचे चुंबकीय क्षेत्र बनकर सौर तूफान के रूप में फूट गया होगा।
वैज्ञानिक सौर तूफानों की आवृत्ति और उसके नतीजों को बेहतर समझने का प्रयास कर रहे हैं। आज प्रौद्योगिकी पर हमारी अत्यधिक निर्भरता के कारण इनके परिणाम घातक हो सकते हैं। संचार, पॉवर ग्रिड और जीपीएस पर निर्भर वित्तीय बाज़ार अधिक प्रभावित होंगे। (स्रोत फीचर्स)
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मानवविज्ञानियों के बीच यह बहस का विषय रहा है कि क्या मनुष्य सदा से इतना ही क्रूर और हिंसक था, या पहले कम हिंसक था और अब अधिक हो गया है। और इस मामले में दो मत रहे हैं: पहला, खेती की शुरुआत होने के पहले तक मानव सभ्यताएं शांत-स्वभावी थीं और मैत्रीपूर्ण माहौल था; दूसरा, कृषि के पहले मानव बस्तियां क्रूर थीं और लड़ने को तत्पर थीं, और जब उन्होंने मिल-जुल कर खेती करना शुरू किया तो शांतिपूर्ण हो गईं।
लेकिन इनमें से किसी भी मत के पक्ष में ठोस सबूत नहीं मिले थे, और दोनों ही मतों पर संदेह बना रहा। हालिया अध्ययन इसी सवाल पर कोई मत बनाने का प्रयास है, और निष्कर्ष है कि इतिहास में मनुष्य की प्रवृत्ति को किसी एक खांचे, अधिक शांत या अधिक हिंसक, में नहीं रखा जा सकता। कोई मानव समाज कब-कितना हिंसक रहा इसे एक सीधी ऊपर जाती या सीधी नीचे उतरती रेखा से नहीं दर्शाया जा सकता है।
बार्सिलोना विश्वविद्यालय के आर्थिक इतिहासकार जियोकोमो बेनाटी और उनके साथियों द्वारा नेचर ह्यूमन बिहेवियर में प्रकाशित नतीजों के अनुसार, दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग कारणों से कई बार हिंसा भड़की और शांति बनी।
इन निष्कर्षों तक पहुंचने के लिए शोधकर्ताओं ने वर्तमान तुर्की, ईरान, इराक, सीरिया, लेबनान, इस्राइल और जॉर्डन में खुदाई में पाए गए कंकालों का विश्लेषण किया। अध्ययन में इन स्थानों पर 12,000 ईसा पूर्व से 400 ईसा पूर्व काल तक के 3500 से अधिक मानव कंकालों को देखा गया। उन्होंने पाया कि मानव समाज में सामाजिक-आर्थिक उथल-पुथल और बदलती जलवायु के दौर में पारस्परिक हिंसा अधिक दिखती है – मुख्य रूप से सिर पर आघात के मामले काफी मिलते हैं।
फिर शोधकर्ताओं ने उन खोपड़ियों को ध्यान से देखा जो ‘टोपी-किनारे की रेखा’ के ऊपर क्षतिग्रस्त हुई थीं। टोपी-किनारे की रेखा कपाल पर एक ऐसी काल्पनिक रेखा है जिसके आधार पर मानवविज्ञानी बताते हैं कि चोट किसी दुर्घटना के कारण लगी है या इरादतन प्रहार किया गया था। मसलन गिरने के कारण लगने वाली चोटें आंख, नाक और भौंह के आसपास लगती हैं, जबकि खोपड़ी के ऊपरी हिस्से पर चोट किसी प्रहार के कारण लगती है।
इसके अलावा उन्होंने हथियार से सम्बंधी चोटों की पुष्टि के लिए कंकाल के अन्य हिस्सों की भी जांच की, जैसे कि घोंपने के निशान या बचाव करते समय हड्डी में आया फ्रैक्चर वगैरह। हालांकि, शोधकर्ताओं ने चोट के इन निशानों पर कम भरोसा किया, क्योंकि इनमें यह पहचानना मुश्किल है कि ये निशान प्रहार के नतीजे हैं या दुर्घटना के। फिर भी विश्लेषण से यह पता चलता है कि प्राचीन मध्य पूर्व में हिंसा 6500 से 5300 साल पहले तक ताम्रपाषाण युग के दौरान चरम पर थी। इसके बाद प्रारंभिक और मध्य कांस्य युग के दौरान यह बहुत कम हो गई क्योंकि समूहों ने आक्रामक व्यवहार को नियंत्रित करने की अपनी क्षमता को मज़बूत कर लिया था। लौह युग की शुरुआत में, करीब 3000 साल पहले, फिर से बढ़ गई थी।
मध्य पूर्वी क्षेत्र में ताम्रपाषाण काल एक संक्रमणकाल था। बस्तियां फैल रही थीं, राज्य बनने लगे थे, और लकड़ी व पत्थर के औज़ारों की जगह धातु के औज़ार लेते जा रहे थे। बढ़ती आबादी, अधिक हकदारी तथा बेहतर हथियारों के चलते हिंसा बढ़ने लगी।
इसी तरह, लौह युग में हथियारों की गुणवत्ता कांस्य युग से बेहतर हो गई थी और असीरियन साम्राज्य के सत्ता में आने के साथ ही राजनैतिक पुनर्गठन भी हुआ था। और तो और, राजनैतिक और तकनीकी उथल-पुथल के अलावा यह क्षेत्र एक बड़े जलवायु परिवर्तन से भी गुज़रा – करीब 300 साल लंबा सूखा पड़ा, जिसने हज़ारों लोगों को विस्थापित कर दिया और भीषण अकाल पड़ा।
ये निष्कर्ष वर्तमान जलवायु परिवर्तन सम्बंधी चुनौती के लिए एक कड़ी चेतावनी देते हैं। कई विशेषज्ञों की चिंता है कि जैसे-जैसे पृथ्वी का तापमान बढ़ेगा, वैसे-वैसे मनुष्यों में हिंसक संघर्ष भी बढ़ेगा। लेकिन साथ ही शोधकर्ता अपने नतीजों के बारे मे आगाह भी करते हैं कि ये नतीजे समूह के व्यवहार को दर्शाते हैं, ये एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति से बर्ताव के बारे में नहीं हैं। अलबत्ता, इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि चरम जलवायु घटनाओं से संघर्ष उपज सकता है। लेकिन इस बात के भी प्रमाण हैं कि जब ऐसी संस्थाएं मौजूद होती हैं जो हिंसा को कम कर सकती हैं तो संघर्ष को कम किया जा सकता है।
बहरहाल, इतिहास से सबक लेकर ऐहतियात बरतने और संघर्षों को टालने की योजना बनाने में कोई बुराई नहीं है। (स्रोत फीचर्स)
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नासा ने हाल में साइकी नामक एक रहस्यमय धातुई क्षुद्रग्रह की जांच के लिए ‘साइकी’ मिशन शुरू किया है। 220 किलोमीटर चौड़े खगोलीय पिंड साइकी के आकार और संरचना काफी समय से वैज्ञानिकों को आकर्षित करती रहे हैं।
चट्टानी क्षुद्रग्रहों के विपरीत, साइकी ‘एम-टाइप’ क्षुद्रग्रह है जिसका घनत्व और परावर्तकता असाधारण हैं। लंबे समय से शोधकर्ताओं का अनुमान रहा है कि साइकी एक बहुत बड़े प्रोटोग्रह की धात्विक कोर है। इस संकल्पना के अनुसार, अरबों साल पहले एक विशाल निर्माणाधीन ग्रह के भीतर गुरुत्वाकर्षण बल और रेडियोधर्मी तत्वों के कारण चट्टानें आंशिक रूप से पिघलकर अलग-अलग परतों में जम गई होंगी। ज़ाहिर है, सबसे भारी धातुएं (लौह-निकल) केंद्र में पहुंची होंगी। आगे चलकर किसी अन्य खगोलीय पिंड के साथ भयंकर टक्कर से बाहरी परतें अलग होकर बिखर गई होंगी और लौह-निकल से समृद्ध कोर उजागर हो गया होगा।
साइकी मिशन का उद्देश्य इस धातुई कोर की बारीकी से जांच करना है, ताकि ग्रहों के कोर की संरचना और इतिहास की जानकारी मिल सके। इस मिशन की सदस्य बिल बोटके के अनुसार पृथ्वी या शुक्र के कोर का अध्ययन करना काफी मुश्किल है, ऐसे में साइकी का अध्ययन एक सुनहरा अवसर है।
उम्मीद है कि 2029 तक अंतरिक्ष यान ‘साइकी’ इस क्षुदग्रह की कक्षा में होगा और वहां दो साल से अधिक समय बिताएगा। इस दौरान वैज्ञानिक पृथ्वी से प्रेषित रेडियो तरंगों में सूक्ष्म बदलाव करते हुए क्षुद्रग्रह के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र का मानचित्रण करेंगे। इस मानचित्र से यह जानने में मदद मिलेगी कि साइकी एक समान रूप से सघन धातु से बना है या फिर मलबे का ढेर है। यान में उपस्थित मैग्नेटोमीटर प्राचीन तरल धातु के अवशेषों की खोज करेगा, जबकि गामा किरणें और न्यूट्रॉन धातु कोर में निकल की उपस्थिति का पता लगाएंगे। उच्च-विभेदन इमेजिंग बास्केटबॉल कोर्ट जितने छोटे-छोटे इलाकों की छवियां कैप्चर करेंगे।
वैसे पृथ्वी से जुटाई गई दूरबीनी सूचनाओं ने धात्विक-कोर परिकल्पना पर कुछ संदेह पैदा किया है। ताज़ा अनुमान के अनुसार साइकी का घनत्व पूर्वानुमान की तुलना में कम है। इसके अतिरिक्त, इससे टकराकर आने वाला प्रकाश कार्बन-आधारित सामग्री और चट्टानी सिलिकेट खनिजों की उपस्थिति के संकेत देता है, जो खालिस धातुई क्षुद्रग्रह की धारणा को चुनौती देता है। इस डैटा के आधार पर शोधकर्ताओं का अनुमान है कि क्षुद्रग्रह का 30 से 60 प्रतिशत हिस्सा धातु से बना है जो संभवतः एक निर्माणाधीन ग्रह के कोर और मेंटल का मिश्रण है। इसका आकार अरबों वर्षों के दौरान अनेकों टकराव और कार्बनयुक्त धूल से ढंकने के कारण बदल गया है।
इस क्षुद्रग्रह के सम्बंध में एक अनुमान यह भी है कि इसमें एक पतले चट्टानी आवरण के नीचे धात्विक कोर है। चमकदार सतह के धब्बे प्राचीन ‘लौह-ज्वालामुखीय गतिविधियों’ का परिणाम हो सकते हैं, जिसमें सतह पर आयरन सल्फाइड द्रव रिसा होगा। या फिर साइकी प्रारंभिक सौर मंडल के धातु-समृद्ध क्षेत्र में गठित एक परत रहित पिंड भी हो सकता है।
हालांकि साइकी की धातु सामग्री उन दुर्लभ उल्कापिंडों से मिलती-जुलती है, जिन्हें एनस्टैटाइट कॉन्ड्राइट्स कहा जाता है। लेकिन साइकी की परिक्रमा कक्षा से लगता है कि इसकी उत्पत्ति बृहस्पति की कक्षा से बाहर हुई होगी। इस स्थिति में इसके गठन और क्षुद्रग्रह पट्टी तक पहुंचने के बारे में कई सवाल उठते हैं। बहरहाल, नासा साइकी के रहस्यों को उजागर करने के लिए प्रतिबद्ध है। नासा की इस परियोजना से क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं के बारे में हमारे ज्ञान में काफी वृद्धि होने की संभावना है। (स्रोत फीचर्स)
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30 अप्रैल 2020 के दिन नासा ने तीन निजी कंपनियों को 2024 का चंद्र अभियान पूरा करने के लिए 96.7 करोड़ डॉलर का एक संयुक्त ठेका दिया था। नासा के प्रशासक जिम ब्राइंडस्टोन ने दावा किया था कि यह वह अंतिम मोहरा है जिसकी ज़रूरत अमेरिका को चंद्रमा तक पहुंचने के लिए थी। इस बात को मीडिया में तो खूब प्रसारित किया गया था लेकिन इस बात पर बहुत कम चर्चा हुई थी कि अंतरिक्ष अभियानों को लेकर जो मौजूदा कानून/संधियां हैं वे निजी कंपनियों के उपक्रमों पर किस हद तक लागू होते हैं। दरअसल, कॉर्पोरेट जगत द्वारा धरती से बाहर कदम जमाने के चलते आशाओं और चिंताओं दोनों को हवा मिली है। चिंताएं और आशाएं अंतरिक्ष में बढ़ते पूंजीगत निवेश के संभावित लाभों को लेकर हैं।
1967 में राष्ट्र संघ बाह्य अंतरिक्ष संधि (OST) मंज़ूर की गई थी। यह यूएस के तथाकथित ‘नव-अंतरिक्ष’ किरदारों के उदय के संदर्भ में विश्लेषण का एक ढांचा माना गया था। इस लेख का तर्क है कि बाह्य अंतरिक्ष में निजी कंपनियों की मौजूदगी को लेकर कई महत्वपूर्ण कानूनी अस्पष्टताएं हैं। इन खामियों की वजह से ही यूएस सरकार को यह गुंजाइश मिली है कि वह OST के अंतर्गत अपने दायित्वों को दरकिनार कर सके और साथ ही संरचना को परिवर्तित करके अंतरिक्ष की ‘वैश्विक साझा संसाधन’ की धारणा को ठेस पहुंचा सके। OST के अंदर अंतरिक्ष के संसाधनों को लेकर निजी संपदा अधिकारों को लेकर विशिष्ट प्रावधान न होने के कारण यह जोखिम पैदा हो रहा है कि धरती के संसाधनों में जो गैर-बराबरी है वह, और अंतरिक्ष में यूएस का दबदबा दोनों अंतरिक्ष के संसाधनों पर भी लागू हो जाएंगे। इस तरह से, अंतरिक्ष के लाभ एक व्यापक विश्व समुदाय की बजाय मुट्ठी भर धनवान अमेरिकी निवेशकों के हाथों में सिमट जाएंगे।
इसके अलावा, OST में अंतरिक्ष निरीक्षण के नियमन को लेकर जो कमज़ोर प्रावधान हैं, उनके चलते यूएस उपग्रहों के नेटवर्क (global panopticon) को बढ़ावा मिलेगा। दोहरे उपयोग वाली टेक्नॉलॉजी के उभार की वजह से सैन्य और नागरिक अवलोकनों के बीच का अंतर धुंधला पड़ रहा है। इसके चलते यूएस द्वारा अंतरिक्ष-आधारित डैटा संग्रह की प्रकृति को लेकर गंभीर नैतिक चिंताएं पैदा हुई हैं।
और, अंतिम बात कि निजी उपग्रहों की बढ़ती संख्या इस बात की संभावना बढ़ा रही है कि अंतरिक्ष में फैले मलबे के बीच भयानक टक्करें होंगी और भू-राजनैतिक तनाव बढ़ेंगे। इस तरह के विकास की वजह से अंतरिक्ष में ऐसे अपमिश्रण की आशंका भी कई गुना बढ़ गई है, जिसकी कल्पना OST में नहीं की गई थी।
राष्ट्रसंघबाह्यअंतरिक्षसंधिऔरनव–अंतरिक्षकिरदार
हालांकि OST 1967 में अस्तित्व में आई थी, लेकिन संभवत: आज भी यही एक प्रासंगिक उपकरण है जिसके तहत बाह्य अंतरिक्ष में राज्य तथा गैर-राज्य गतिविधियों का विश्लेषण किया जा सके। शीत युद्ध के चरमोत्कर्ष पर अंतरिक्ष के सैन्यकरण तथा राष्ट्रों द्वारा आकाशीय पिंडों पर कब्ज़े, दोनों की रोकथाम के संदर्भ में OST का प्रमुख स्थान है। 100 से ज़्यादा राष्ट्रों ने इसका अनुमोदन किया है – जिनमें यूएस, रूस व चीन जैसे प्रमुख अंतरिक्ष यात्री राष्ट्र शामिल हैं – और इस प्रकार से यह संधि एक अधिकारिक दस्तावेज़ के तौर पर व्यापक रूप से मान्य है और यही बाद में बनने वाली अन्य अंतरिक्ष संधियों का आधार रही है। यह संधि बाद के दस्तावेज़ों से इस मायने में भिन्न है कि कई देश इन पर हस्ताक्षर करने से कतराते रहे हैं। उदाहरण के तौर पर 1972 की चंद्रमा संधि जिसका उद्देश्य चंद्र अभियानों और विकास में सहयोग को बढ़ावा देना है।
बाह्य अंतरिक्ष के क्षेत्र में शामिल हो रहे अमेरिकी किरदारों में बहुत विविधता आई है। हालांकि ये 1950 के दशक से ही नासा के साथ काम करते रहे हैं, लेकिन तब व्यावसायिक उद्यम मूलत: रॉकेटों तथा अंतरिक्ष गतिविधियों से सम्बंधित अन्य पुर्ज़ों का उत्पादन किया करते थे। लेकिन, अपोलो 11 के चांद पर उतरने के बाद से नासा के बजट में कुल मिलाकर तेज़ गिरावट देखी गई और इसके साथ ही सरकारी कार्यों के निजीकरण की प्रवृत्ति भी बढ़ी। इसकी वजह से निजी अंतरिक्ष कंपनियों की क्षमताएं और नज़रिया दोनों बदले हैं।
एक ओर अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में विश्व स्तर पर विस्तार हो रहा है, वहीं 2012 से 2013 के दरम्यान सरकारों का खर्च 1.3 प्रतिशत कम हुआ है और व्यावसायिक क्षेत्र में लगभग 7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। निजी अंतरिक्ष क्षेत्र में विस्तार का प्रमुख ज़ोर तथाकथित ‘नव-अंतरिक्ष’ किरदारों से आया है। ये मूलत: यूएस स्थित उद्यमी हैं जो 30 से अधिक वर्षों से अंतरिक्ष को व्यावसायिक क्षेत्र बनाने का प्रयास करते आए हैं। अर्थव्यवस्था के उदारवादी नज़रिए से चालित और अंतरिक्ष खोजबीन में नासा की ऐतिहासिक पकड़ के आलोचक ये किरदार स्वयं को ‘अंतिम मोर्चे’ के अग्रणि किरदार कहते आए हैं जो निजी वित्तपोषित अंतरिक्ष अभियानों के ज़रिए मानवता को विलुप्ति से बचाएंगे।
अपोलो अभियानों की मदद से प्राप्त चंद्रमा की चट्टानों के नमूनों में हीलियम-3 जैसे दुर्लभ तत्व हैं जो पृथ्वी पर पारंपरिक नाभिकीय परमाणु बिजली घरों की अपेक्षा ज़्यादा बिजली पैदा कर सकते हैं और इनमें कचरा भी कम पैदा होगा। ऐसे ही संसाधनों ने धरती से परे संसाधनों के खनन के लिए प्रलोभन-प्रोत्साहन प्रदान किया है। इस विचार को और बल मिला जब यह पता चला कि पृथ्वी के नज़दीकी पिंडों (जैसे तथाकथित एंटेरॉस क्षुद्र ग्रह) में शायद पांच खरब डॉलर मूल्य का मैग्नीशियम सिलिकेट और एल्युमिनियम मौजूद है।
अंतरिक्ष-यात्री राष्ट्रों द्वारा अंतरिक्ष के संसाधनों पर कब्ज़ा करने के ऐसे संभावित प्रयासों के मद्देनज़र राष्ट्र संघ OST के अनुच्छेद II में घोषित किया गया था कि: “बाह्य अंतरिक्ष पर राष्ट्रीय संप्रभुता के आधार पर, कब्ज़ा करके, उसका उपयोग करके या अन्य किसी तरीके से, अधिग्रहित करने की अनुमति नहीं है।” राष्ट्रीय संप्रभुता के दावों पर ज़ोर देने का मुख्य सरोकार उस समय जारी शीत युद्ध के माहौल से था, जब अंतरिक्ष गतिविधियां पूरी तरह सरकारी संस्थाओं का एकाधिकार थीं और इन्हें सैन्य वर्चस्व या राष्ट्रीय प्रतिष्ठा के उद्देश्य से शुरू किया जाता था।
अलबत्ता, 1980 के दशक से अंतरिक्ष उद्योग के निजीकरण का अर्थ हुआ है कि उक्त कानून में अंतरिक्ष में संसाधनों के निजी दोहन के नियमन को लेकर कई कानूनी अस्पष्टताएं हैं और व्याख्या की गुंजाइश है। जैसा कि एम. शेयर ने दर्शाया है, अनुच्छेद II इस समस्या को संबोधित करने में असफल रहता है कि अंतरिक्ष का दोहन वित्तीय लाभ के लिए करने पर या निजी उद्योग द्वारा उस पर अपना अधिकार जताने पर क्या किया जाएगा।
बहरहाल, राष्ट्र संघ संधि का अनुच्छेद VI कहता है: “राष्ट्रीय अंतरिक्ष गतिविधियों के लिए राज्य ज़िम्मेदार होगा, चाहे वे गतिविधियां सरकारी एजेंसी द्वारा की जाएं या गैर-सरकारी एजंसियों द्वारा।” कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह अनुच्छेद निजी अंतरिक्ष कॉर्पोरेशन्स की गतिविधियों पर काफी अंकुश लगा सकता है, क्योंकि इसके अंतर्गत निजी एजेंसियों की गतिविधियों का दायित्व भी राज्य पर होगा। अलबत्ता, यूएस सरकार ने हाल ही में एक कानून लागू किया है जिसमें इस अनुच्छेद का फायदा उठाया गया है ताकि अपने प्रतिबंधों को बायपास कर सके और अंतरिक्ष में यूएस के आर्थिक दबदबे को मज़बूत कर सके। 2015 के यूएस अंतरिक्ष कानून के पारित होने से “यूएस के नागरिकों को अंतरिक्ष से प्राप्त हुए संसाधनों को अपने पास रखने, उनके स्वामित्व, परिवहन और बिक्री” का अधिकार मिल गया है। अर्थात इसमें सावधानीपूर्वक राष्ट्रीय संप्रभुता के दावे को छोड़ दिया गया है।
तो, चाहे वह कोई अमेरिकी निजी कंपनी हो या सार्वजनिक उद्यम हो, यूएस अपने भू-राजनैतिक हितों की पूर्ति कर रहा है जिसके लिए वह अमेरिकी लाभ के लिए अंतरिक्ष के संसाधनों को समेट रहा है। इस तरह से राष्ट्र की सॉफ्ट शक्ति में चीन जैसे अंतरिक्ष-यात्री देशों की कीमत पर इजाफा हो रहा है।
दरअसल, नव-अंतरिक्ष किरदारों ने विधेयक के पारित होने से पहले इन सामरिक सरोकारों को चतुराई से उछाला था। जैसे अरबपति अंतरिक्ष उद्यमी रॉबर्ट बिजलो ने दावा किया था कि सबसे बड़ा खतरा चांद पर निजी उद्यमियों से नहीं है बल्कि इस बात से है कि “अमेरिका सोता रहे, कुछ न करे जबकि चीन आगे आए…सर्वेक्षण करे और [चांद पर] दावा ठोंक दे।”
यूएस सरकार द्वारा निजी कंपनियों को समर्थन से संभावना है कि संपदा में पृथ्वी-आधारित गैर-बराबरी को अंतरिक्ष में मज़बूत किया जाएगा। कई नव-अंतरिक्ष किरदार अंतरिक्ष में अपनी दीर्घावधि महत्वाकांक्षाओं को मानवीय सुर में ढालते हैं। जैसे, वे यह वादा करेंगे कि वे मानव जाति को आसन्न विलुप्ति के खतरे से बचाने के लिए अंतरिक्ष में बस्तियां बनाएंगे। अलबत्ता, इस तरह का विमर्श शायद ही उनकी खालिस निजी प्रकृति को छुपा सके। वे यह कहते नज़र आते हैं कि पूरे मामले में आम नागरिकों का हित जुड़ा है लेकिन हकीकत यह है कि ये अंतरिक्ष अग्रदूत वास्तव में एक छोटे से ब्रह्मांडीय आभिजात्य समूह के सदस्य हैं – Amazon.com, Microsoft, Pay Pal के संस्थापक और तरह-तरह के गेम डिज़ाइनर तथा होटल व्यवसायी।
वास्तव में, निजी अंतरिक्ष उद्यमियों ने स्वयं सुझाव दिया है कि उन पर कोई दायित्व नहीं होना चाहिए कि वे अंतरिक्ष से प्राप्त खनिज संसाधनों को विश्व समुदाय के साथ साझा करें। यह बात नाथन इंग्राहम (टेकसाइट EngadAsteroid mining के वरिष्ठ संपादक) के भाषण में साफ प्रतिबिंबित हुई थी। उन्होंने कहा था कि क्षुद्रग्रह खनन कैसा होगा यह इस बात पर निर्भर है कि “अमेरिका अंतरिक्ष में कैसे आगे बढ़ता है और अगली वेगास स्ट्रिप कैसे विकसित करता है।” ऐसी टिप्पणियां उस चीज़ को रेखांकित करती हैं जिसे बीयरी ‘स्केलर पोलिटिक्स’ कहते हैं। जिस तरह से गैर-बराबर अंतर्राष्ट्रीय सम्बंधों ने बाह्य अंतरिक्ष के साथ हमारे सम्बंधों को ‘वैश्विक साझा संपदा’ की आड़ में छिपाया है, उसी तरह निजी कंपनियां, अपनी मानवीय लफ्फाज़ी के ज़रिए, अंतरिक्ष से संसाधनों का दोहन करके पार्थिव गैर-बराबरियों और सामाजिक सम्बंधों को अंतरिक्ष में पहुंचा रही हैं। नव-अंतरिक्ष किरदार अपने उद्यमों की रचना इस तरह से करते हैं कि वे आम हित लुभाएं, और इसके पर्दे में यह बात छिपा लें कि वास्तव में व्यावसायिक संसाधन दोहन मात्र उनके निजी हितधारकों (शेयरहोल्डर्स) के हितों को पूरा करता है। और यह काम दुनिया के बहुसंख्य लोगों की कीमत पर किया जाता है।
2013 से शुरू होकर, यूएस नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी के कर्मचारी एडवर्ड स्नोडेन के द्वारा लीक की गई गोपनीय सूचनाओं से पता चला था कि किस हद तक अमेरिकी गुप्तचर एजेंसियां निगरानी के व्यापक कार्यक्रमों में निजी एजेंसियों के साथ मिलकर काम कर रही हैं। इसे समाज के ‘सुरक्षाकरण’ (securitisation) का नाम दिया गया है और इसके तहत वर्तमान राज्य ‘राजनीति से निगरानी की ओर तथा शासन से (प्रजा के) प्रबंधन की ओर’ बढ़े हैं। और यह परिवर्तन नागरिकों की सहमति के बगैर किया गया है। हालांकि पारंपरिक रूप से ये क्रियाकलाप पृथ्वी-आधारित रहे हैं, लेकिन अंतरिक्ष ने उपग्रहों के ज़रिए निगरानी के रणनीतिक रूप से लाभदायक तरीके उपलब्ध करा दिए हैं।
यह सही है कि कई सारे व्यावसायिक उपग्रह पृथ्वी के पर्यावरण और इंटरनेट के लिहाज़ से महत्वपूर्ण क्षमताएं प्रदान करते हैं, लेकिन साथ ही ये राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से यूएस के दबदबे के लिए अत्यंत ज़रूरी हैं। इसीलिए उपग्रहों की प्रकृति को दोहरे उपयोग की प्रकृति कहा जाता है। इसमें नागरिक उपयोग और सैन्य उद्देश्य एक ही अवलोकन उपकरण में घुल-मिल जाते हैं और इन्हें ज़रूरत के अनुसार अलग-अलग कार्यों में तैनात किया जा सकता है। दोहरे उपयोग उपग्रह टेक्नॉलॉजी यूएस सेना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रही है और इसने जंग के मैदानों में विशेष लाभ दिया है। और इसमें से उपग्रह संचार की 80 प्रतिशत ज़रूरतों की पूर्ति व्यावसायिक उपग्रहों द्वारा की जाती है। इन नेटवर्क्स पर निर्भरता यूएस सैन्य दबदबे का एक प्रमुख घटक है जिसे ‘अंतरिक्ष नियंत्रण’ कहा जाता है। इसका एक लक्ष्य यह है कि व्यावसायिक उपग्रह डैटा के संचार को सुरक्षित रखा जाए जिसकी मदद से संवेदनशील सैन्य सूचनाएं उजागर न हों।
बाह्य अंतरिक्ष संधि में ऐसा कोई अनुच्छेद नहीं है जिसमें अंतरिक्ष में डैटा निगरानी के लिए नियम-कानून निर्धारित किए गए हों। फिर भी यह माना जा सकता है कि किसी भी रूप में बदनीयती या गैर-कानूनी ढंग से की गई निगरानी अनुच्छेद XI का उल्लंघन है। अनुच्छेद XI में राज्यों से अपेक्षित है कि वे “अपनी अंतरिक्ष गतिविधियों की प्रकृति, संचालन, भौगोलिक स्थिति और परिणामों के बारे में राष्ट्र संघ के महासचिव के अलावा आम लोगों तथा अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय को यथासंभव अधिक से अधिक तथा व्यावहारिक रूप से संभव सूचना प्रदान करेंगे।” कानूनी विशेषज्ञों ने मत व्यक्त किया है कि यह अनुच्छेद काफी कमज़ोर है क्योंकि राज्य अपनी अंतरिक्ष गतिविधियों की सूचना यह कहकर रोक सकते हैं कि उसे प्रसारित करना संभव या व्यावहारिक नहीं है। राष्ट्र संघ के किसी स्पष्ट दिशानिर्देश की अनुपस्थिति का मतलब यह भी रहा है कि अमेरिकी उपग्रह कंपनियां बढ़ते क्रम में अपनी मंशाएं उजागर करने से इन्कार कर पा रही हैं। वे यह भी बताने से इन्कार कर पा रही हैं कि उनके ग्राहक कौन हैं। यूएस सरकार ऐसे ही गुप्त ग्राहकों में है।
1994 में यूएस राष्ट्रपति के निर्णय क्रमांक 23 ने यूएस सरकार को यह अधिकार प्रदान किया था कि वह कंपनियों द्वारा कतिपय उपग्रह चित्र बेचने पर प्रतिबंध लगा सके या ऐसी बिक्री को सीमित कर सके। इस प्रक्रिया को ‘शटर कंट्रोल’ कहा जाता है। यह इस मायने में विवादास्पद है कि यह यूएस कार्यपालिका को यह अधिकार देती है कि वह कतिपय परिस्थितियों में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी को सीमित कर सके, जो संभवत: प्रथम संशोधन में प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन है। 2001 के अफगानिस्तान युद्ध के दौरान यूएस सरकार ने जियोआई उपग्रह से प्राप्त उन समस्त तस्वीरों के अधिकार खरीद लिए थे जो युद्धस्थल के ऊपर से ली गई थीं। इसका कारण राष्ट्रीय सुरक्षा बताया गया था। अलबत्ता, मीडिया समूहों ने सरकार के इस सौदे पर आरोप लगाया था कि इसके ज़रिए उन्हें आम लोगों को महत्वपूर्ण मामलों के बारे में सूचना देने से रोका जा रहा है, जिनमें राष्ट्रीय सुरक्षा का कोई मसला है भी नहीं। उदाहरण के लिए इसमें ऐसी सूचनाएं शामिल थीं कि सिविल इमारतों को कितना नुकसान पहुंचा है या कितने नागरिक मारे गए हैं। लिहाज़ा, इन कदमों ने OST के अनुच्छेद XI का उल्लंघन किया था क्योंकि इनके ज़रिए महत्वपूर्ण सूचनाएं जनता से छिपाई गई थीं जबकि यह व्यावहारिक रूप से संभव था और बहाना राष्ट्रीय सुरक्षा का बनाया गया था। इसके अलावा, इन कदमों से यूएस सरकार उन इलाकों के कवरेज के साथ भी छेड़छाड़ कर सकी जो उसे अफगानिस्तान युद्ध में जनता के समर्थन की दृष्टि से महत्वपूर्ण लगे, और साथ ही अंतरिक्ष में अपना दबदबा भी बढ़ाया। कई मायनों में इसे ‘वैश्विक पैनॉप्टिकल’ खुफिया नेटवर्क को सुगम बनाने की एक रणनीति भी माना जा सकता है।
बाह्य अंतरिक्ष में सार्वजनिक-निजी संकर ढांचे को बढ़ावा देकर कंपनियों और सरकारों को यह अवसर मिल जाता है कि वे किसी भी स्थान पर विश्व भर के करोड़ों नागरिकों की निगरानी, उनके जाने बगैर, कर सकें और इसके ज़रिए विशाल मात्रा में आंकड़े जुटा सकें। यह जानी-मानी बात है कि जियोआई को उसके आईकोनोस चित्रों के लिए यूएस सरकार से लगभग 20 लाख डॉलर मिले थे। इससे व्यावासायिक उपग्रह उद्योग को प्रलोभन मिलेगा कि वह ऐसी जानकारियों को छिपाकर रखे जो दुनिया भर में नागरिकों के हित में काम आ सकती है। इस मायने में, उपग्रह तस्वीरें एक किस्म के कक्षीय डैटा अधिग्रहण का रूप ले सकती हैं जहां कंपनियां अतंरिक्ष में निगरानी करेंगी और अपनी सूचनाएं सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को बेच देंगी। और इस प्रक्रिया में निजता वगैरह की कोई परवाह नहीं की जाएगी। कैम्ब्रिज एनालिटिका और फेसबुक से जुड़े मामलों में यह स्पष्ट रूप से सामने आ चुका है कि कंपनियां किस हद तक अपने उपभोक्ताओं की सूचनाओं का मौद्रिकरण कर रही हैं।
अंतरिक्ष में विचरती मानव-निर्मित निरुद्देश्य वस्तुओं को अंतरिक्ष मलबा कहा जा सकता है। ये वस्तुएं पहले किए गए अंतरिक्ष अभियानों के निष्क्रिय टुकड़े हो सकते हैं, उपग्रहों के टुकड़े हो सकते हैं। पृथ्वी की कक्षा में लगभग 30,000 मलबा टुकड़े हैं। यह सही है कि अधिकांश मलबे का आकार सेंटीमीटर या मिलीमीटर में ही है लेकिन ये टुकड़े अक्सर बंदूक की गोली की रफ्तार से चलते हैं। अर्थात ऐसे दो टुकड़ों के बीच टक्कर काफी घातक हो सकती है – पर्यावरण, यांत्रिकी और वित्तीय दृष्टि से।
1978 में केसलर सिंड्रोम सिद्धांत का विकास हुआ था – यह सिद्धांत भविष्यवाणी करता है कि अंतरिक्ष मलबा इतना घना हो जाएगा कि एक टक्कर टक्करों के एक सिलसिले को जन्म दे देगी। ऐसा माना जाता है कि अंतरिक्ष मलबा तात्कालिक रूप से सैन्य-अंतरिक्ष गतिविधियों की अपेक्षा ज़्यादा बड़ा खतरा होगा। यह पता करना भी मुश्किल होगा कि कोई टक्कर मात्र एक हादसा थी या जानबूझकर करवाई गई थी। इस अनिश्चितता के चलते समस्या और विकराल हो जाती है क्योंकि कहते हैं कि ‘अंतरिक्ष की हर वस्तु शेष समस्त वस्तुओं के लिए खतरा है।’ इन्हीं बातों के चलते यूएस प्रशासन कक्षीय मलबे के संदर्भ में अधिक से अधिक सुरक्षाकरण का विमर्श अपनाने लगा है। इसका परिणाम यह हो सकता है कि भविष्य में अमेरिकी उपग्रहों की टक्कर के प्रति यूएस की प्रतिक्रिया सैन्य दृष्टिकोण से दी जाएगी।
कई सारे नव-अंतरिक्ष किरदार, हालिया उपग्रह प्रस्तावों के ज़रिए, शायद इस चिंता को और पेचीदा बनाएंगे। एक ओर तो बोइंग लगभग 3000 उपग्रहों का नक्षत्र प्रस्तावित कर रही है वहीं स्पेसएक्स की योजना तो और भी महत्वाकांक्षी है – वह तो 4425 उपग्रह प्रक्षेपित करने की योजना बना रही है और निकट भविष्य में इनकी संख्या 12,000 कर देगी। तुलना के लिए देखें कि फिलहाल पृथ्वी की कक्षा में मात्र करीब 1400 सक्रिय उपग्रह हैं। बताने की ज़रूरत नहीं है कि ये किस तरह के सुरक्षा सम्बंधी खतरों को जन्म दे सकते हैं।
इसके अलावा, व्यावसायिक उपग्रहों की यह बाढ़ महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दे भी उठाती है। OST का अनुच्छेद IX कहता है: ‘राज्य अंतरिक्ष गतिविधियों को इस तरह करेंगे कि उनसे कोई हानिकारक संदूषण अथवा पृथ्वी पर कोई प्रतिकूल पर्यावरणीय परिवर्तन न हो।’ अलबत्ता, ‘हानिकारक’ या ‘प्रतिकूल परिवर्तन’ जैसे शब्दों के इस्तेमाल से इस मामले में अस्पष्टता झलकती है कि पर्यावरणीय परिवर्तन का ठीक-ठीक मतलब क्या है या किसे हानि से बचाया जाना चाहिए। इसमें अंतरिक्ष मलबे की समस्या को संबोधित करने में नाकामी दिखती है क्योंकि पूरा विमर्श रासायनिक प्रदूषण पर केंद्रित है और इसमें अंतरिक्ष में तैरते मलबे को हटाने का कोई ज़िक्र नहीं है।
अंतरिक्ष में पर्यावरणीय सरोकारों को उपयुक्त ढंग से संबोधित करने में OST की नाकामी को नव-अंतरिक्ष समुदाय ने आगे बढ़ाया है जहां पारिस्थितिक मसलों को नकारा गया है: “बाह्य अंतरिक्ष संसाधन विकास सम्बंधी सैकड़ों आलेख और पुस्तकें कभी-कभार ही यह ज़िक्र करती हैं कि ऐसी गतिविधियां पर्यावरण को इस तरह प्रतिकूल प्रभावित कर सकती हैं जो उनके अपने उद्यमों और उन्हें क्रियान्वित करने वाले मनुष्यों को नुकसान पहुंचा सकती हैं।” ऐसे वर्णन उन दिक्कतों को उजागर करते हैं जिनका सामना निजी कंपनियां पृथ्वी पर कर चुकी हैं – पूंजी और पर्यावरण का ऐसा तालमेल बनाना जो उनके मुनाफे को कम न करे। फिर भी ऐसा करते हुए अंतरिक्ष में मलबे का फैलाव अवश्यंभावी है जिसे संबोधित करने में ओएसटी नाकाम रही है। वैसे तो बाह्य अंतरिक्ष बहुत विशाल है लेकिन मानवीय उपयोग अथवा लाभ की दृष्टि से उसका बहुत छोटा हिस्सा ही काम आ सकता है। इसका मतलब होगा कि बढ़ते अंतरिक्ष मलबे के साये में विकासशील देशों के लिए अंतरिक्ष का उपयोग संभव नहीं रह जाएगा।
एलन मस्क की स्पेसएक्स कंपनी ने पृथ्वी पर बैठे खगोलशास्त्रियों की मुश्किलें बढ़ा भी दी हैं। अन्य उपग्रहों के मुकाबले उनके स्टारलिंक उपग्रहों की चमक इतनी है कि वह दूरबीन से ली जाने वाली तस्वीरों को धुंधला कर रही है। उससे भी ज़्यादा चिंता की बात यह है कि स्टारलिंक उपग्रह संभवत: उषाकाल में ज़्यादा नज़र आएंगे और इसका असर खतरनाक धूमकेतुओं के समय रहते अवलोकन करने पर पड़ेगा। इस मायने में, हालांकि निजी अंतरिक्ष उद्यम बड़े-बड़े उपग्रह समूह स्थापित करके अपना मुनाफा तो बढ़ा लेंगे लेकिन ये पृथ्वी पर शोधकर्ताओं के वैज्ञानिक काम को बरबाद कर देंगे।
निष्कर्ष : अंतरिक्षबतौरएकवैश्विकमाल
अंतत: यह लेख उजागर करता है कि कैसे OST निजी अंतरिक्ष उद्यमों का उपयुक्त ढंग से नियमन करने में असफल रही है। मूलत: यह संधि राज्य-केंद्रित नज़रिए से विकसित की गई थी, लेकिन राज्य और निजी क्षेत्र के बढ़ते मेलजोल का परिणाम है कि दोनों ही अपने अंतरिक्ष हितों को साधने में संधि की अस्पष्टताओं का फायदा उठा रहे हैं।
इन प्रक्रियाओं से एक बात और स्पष्ट होती है – कि बाह्य अंतरिक्ष संधि के निर्माताओं की संकल्पना और नव-अंतरिक्ष किरदारों की संकल्पना, दोनों ही पृथ्वी-आधारित सामाजिक सम्बंधों और शक्ति के ढांचों से जुड़ी हैं। चाहे संसाधनों को लेकर दावे-प्रतिदावे हों या पर्यावरण के मुद्दे हों, जो सरोकार पेश हुए हैं वे पृथ्वी पर चल रहे घटनाक्रम को प्रतिबिंबित करते हैं। जिस समय OST विकसित की गई थी, उस समय के अनुरूप यह राज्यों को एक-दूसरे द्वारा किए जा सकने वाले नुकसान से बचाने के लिए बनी थी। उस समय माहौल तीखे अंतर्राष्ट्रीय टकरावों का था और परमाणु युद्ध का खतरा मुंह बाए खड़ा था। तो उस समय अंतरिक्ष के पर्यावरण की रक्षा कोई सरोकार नहीं था। स्वयं को मानवता के रक्षक बताने वाले नव-अंतरिक्ष उद्यमियों का अंतरिक्ष में मुनाफा अधिकतम करने पर ज़ोर है और इसलिए आलोचना वही है जो पृथ्वी के संदर्भ में थी। नासा द्वारा 2020 में स्थापित नज़ीर का मतलब यह होगा कि भविष्य में निजी कंपनियां अंतरिक्ष ‘में सार्वजनिक पहुंच को और कम करेंगी। वास्तव में बाह्य अंतरिक्ष की धारणा ‘वैश्विक साझा संपदा’ से बदलकर ‘वैश्विक माल’ में तबदील होती जा रही है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है। Photo Credit : https://www.iasexpress.net/wp-content/uploads/2019/08/outer-space-treaty-upsc-e1566130694740.jpeg
बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) का उपयोग यह पता करने के लिए किया जाता है कि किसी व्यक्ति का वज़न स्वस्थ सीमा के भीतर है या नहीं। बीएमआई की गणना वज़न (कि.ग्रा.) को ऊंचाई (मीटर) के वर्ग से विभाजित करके की जाती है। लेकिन इस सरलता के साथ कई खामियां भी हैं।
पिछले कुछ वर्षों में मोटापे को लेकर चल रही चर्चा से पता चलता है कि यह माप किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य के सम्बंध में अक्सर पूरी तस्वीर प्रदान नहीं करता है। विशेषज्ञ इस संदर्भ में अधिक व्यापक दृष्टिकोण खोजने का प्रयास कर रहे हैं।
कई दशकों से बीएमआई स्वास्थ्य के आकलन के एक वैश्विक मानक के रूप में उपयोग किया जाता रहा है। यह शरीर में वसा के द्योतक के रूप में कार्य करता है; वसा की उच्च मात्रा से चयापचय सम्बंधी रोगों में वृद्धि होती है और यहां तक कि मृत्यु का खतरा भी बढ़ जाता है।
स्वास्थ्य सूचकांक के रूप में बीएमआई का उपयोग करते हुए उम्र, लिंग और नस्ल जैसे कारकों को ध्यान में नहीं रखा जाता है जबकि ये वज़न के साथ-साथ किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य के आकलन के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। बीएमआई सदैव अस्वस्थता का सूचक नहीं होता। देखा गया है कि बराबर बीएमआई वाले लोगों की स्वास्थ्य सम्बंधी स्थिति काफी अलग-अलग हो सकती है।
इन कमियों को ध्यान में रखते हुए विशेषज्ञों द्वारा मोटापे के आकलन हेतु अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण अपनाने पर ज़ोर दिया जा रहा है। अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (एएमए) ने बीएमआई की खामियों को स्वीकार करते हुए पूरक के तौर पर वजन-सम्बंधी अन्य मापों का सुझाव दिया है।
बीएमआई की धारणा लगभग दो शताब्दी पूर्व एडोल्फ क्वेटलेट द्वारा ‘औसत आदमी’ को परिभाषित करने के प्रयासों से उभरी थी। प्रारंभ में, इसका स्वास्थ्य से बहुत कम और मानक तय करने से अधिक लेना-देना रहा था। एन्सेल कीज़ ने बाद में इसे बॉडी-मास इंडेक्स के रूप में पुनर्निर्मित किया। कीज़ के अनुसार यह उस समय की ऊंचाई-वज़न तालिकाओं की तुलना में स्वस्थ शरीर के आकार का एक बेहतर संकेतक था।
बीएमआई जनसंख्या-स्तर पर मृत्यु के जोखिम से सम्बंधित है – बहुत कम बीएमआई भी मृत्यु का जोखिम बढ़ाता है और बहुत अधिक बीएमआई भी। लेकिन जब इसका उपयोग व्यक्तिगत स्वास्थ्य जोखिमों का आकलन करने के लिए किया जाता है तो यह असफल रहता है।
एक अध्ययन से पता चला है कि अधिक वजन वाले व्यक्तियों में मृत्यु का जोखिम ‘स्वस्थ’ वज़न वाले लोगों के समान होता है। इसके अतिरिक्त, बीएमआई के पैमाने पर मोटापे से ग्रस्त कुछ व्यक्तियों का हृदय-सम्बंधी स्वास्थ्य सामान्य लोगों के समान ही होता है, जो बीएमआई की धारणा को चुनौती देता है।
दरअसल, बीएमआई का मुख्य आकर्षण इसकी आसानी में निहित है, जो इसे एक सुविधाजनक स्क्रीनिंग टूल बनाता है। विशेषज्ञों का तर्क है कि यह स्वास्थ्य का सटीक आकलन करने में नाकाम है। इसकी मुख्य समस्या है कि यह शरीर में वसा या मांसपेशियों के द्रव्यमान और वितरण जैसे कई महत्वपूर्ण कारकों को ध्यान में नहीं रखता है, जो लोगों के बीच काफी भिन्न हो सकते हैं।
इससे भी बड़ी समस्या यह है कि बीएमआई को श्वेत आबादी के डेटा का उपयोग करके विकसित किया गया है जिसका सीधा मतलब है कि इसका निर्धारण नस्लीय और जातीय समूहों के बीच शरीर की संरचना और वसा वितरण को ध्यान में रखते हुए नहीं किया गया है। उदाहरण के लिए, शरीर में वसा की मात्रा और वितरण में भिन्नता के कारण कम बीएमआई के बावजूद एशियाई आबादी में हृदय रोग का खतरा अधिक हो सकता है। यह बात बीएमआई के अत्यधिक उपयोग के विरुद्ध एक चेतावनी है।
बीएमआई के नैदानिक उपयोग को कम करने के लिए एएमए की हालिया नीति को एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इसके तहत केवल बीएमआई के आधार पर निदान करने की बजाय, चिकित्सकों को सलाह दी जा रही है कि वे इसका उपयोग मात्र एक स्क्रीनिंग टूल के रूप में करें, ताकि उन लोगों को पहचाना जा सके जिनका आगे आकलन करने की ज़रूरत है। इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि चिकित्सक कोलेस्ट्रॉल, रक्त शर्करा, पारिवारिक इतिहास और आनुवंशिकी जैसे अतिरिक्त कारकों पर भी ध्यान दें जो मोटापे और इससे सम्बंधित स्थितियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इस बदलाव में एक बड़ी चुनौती यह है कि प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में चिकित्सकों को कम समय में रोगी के स्वास्थ्य के कई पहलुओं पर ध्यान देना होता है। मात्र बीएमआई के आधार पर मोटापा-रोधी दवाइयां लिखना चिंता का विषय है।
बहरहाल, बीएमआई से परे मोटापे को फिर से परिभाषित करने के प्रयास चल रहे हैं। एक अंतरराष्ट्रीय आयोग विभिन्न अंग तंत्रों पर वज़न के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए नए नैदानिक मानदंडों पर काम कर रहा है। इसके अतिरिक्त, शारीरिक, मानसिक और कामकाजी स्वास्थ्य का आकलन करने के लिए बीएमआई के साथ-साथ एडमोंटन ओबेसिटी स्टेजिंग सिस्टम (ईओएसएस) विकसित की गई है, जो मोटापा नियंत्रण के लिए अधिक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करती है।
बहरहाल, मुद्दा यह है कि इन परिवर्तनों को अमली जामा पहनाना एक बड़ी चुनौती है। फिर भी, यह स्पष्ट है कि स्वास्थ्य की जटिलताओं और मोटापे की विविध प्रकृति को ध्यान में रखते हुए बीएमआई से आगे बढ़ने का समय आ गया है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है। Photo Credit : https://images.everydayhealth.com/images/why-bmi-calculation-is-flawed-and-the-history-behind-how-it-came-to-define-obesity-alt-1440×810.jpg?sfvrsn=a0865fa5_1
झींगुर से लेकर समुद्री अर्चिन तक और बॉटलनोज़ डॉल्फिन से लेकर बोनोबोस तक 1500 से अधिक प्रजातियों में समलैंगिक व्यवहार देखने को मिलता है।
एक मत है कि जंतुओं में यह व्यवहार उद्विकास की शुरुआत से ही दिखाई पड़ता है। लेकिन स्तनधारियों पर किए गए हालिया अध्ययन का निष्कर्ष इससे अलग है। इसके अनुसार स्तनघारी जंतुओं में समलैंगिक व्यवहार तब विकसित हुआ जब उन्होंने समूहों में रहना शुरू किया। अध्ययन के मुताबिक हालांकि इस तरह के व्यवहार से किसी जंतु के जीन्स संतानों में नहीं पहुंचते लेकिन संभवत: यह अन्य वैकासिक लाभ प्रदान करता है। जैसे समूह में संघर्षों को सुलझाने और सदस्यों के बीच सकारात्मक सम्बंध बनाने में मदद करता है।
अलबत्ता, शोधकर्ता आगाह करते हैं कि इन नतीजों को मनुष्यों में दिखने वाली लिंग पहचान की समस्या या समलैंगिक व्यवहार से जोड़कर न देखा जाए। अन्य जीवों में समलैंगिक व्यवहार मनुष्यों में दिखने वाले व्यवहार से काफी भिन्न है और इसलिए यह अध्ययन मनुष्यों के संदर्भ में कोई व्याख्या नहीं देता है।
देखा जाए तो समलैंगिक व्यवहार को समझने का यह पहला अध्ययन नहीं है। पूर्व में भी इस पर अध्ययन हुए हैं लेकिन वे सारे अध्ययन एक ही प्रजाति या जीवों के एक छोटे समूह के अवलोकन पर आधारित थे।
स्पेन के वैकासिक जीवविज्ञानी जोस गोमेज़ का यह अध्ययन इस दृष्टि से व्यापक है कि उन्होंने स्तनधारियों की 6649 प्रजातियों में इस व्यवहार की तलाश की। इसके लिए उन्होंने वैज्ञानिक साहित्य खंगाला और देखा कि इनमें से कौन-सी और कितनी प्रजातियां समलैंगिक व्यवहार – रिझाना, मिलना-जुलना, प्रेमालाप करना, संभोग और दृढ़ रिश्ते बनाना – दर्शाती देखी गई हैं। उन्हें 261 प्रजातियों में समलैंगिक व्यवहार के प्रमाण मिले।
उन्हें यह भी दिखा कि नर और मादा दोनों ही बराबर समलैंगिक व्यवहार करते हैं। कुछ प्रजातियों में, या तो सिर्फ नर या तो सिर्फ मादा में समलैंगिक व्यवहार दिखा।
तो इन जंतुओं में समलैंगिक व्यवहार उपजा कैसे? इसके जवाब की तलाश के लिए शोधकर्ताओं ने इन प्रजातियों का वंशवृक्ष बनाया। इसमें उन्होंने पाया कि प्रत्येक प्रजाति में यह व्यवहार स्वतंत्र रूप से उपजा है, और अलग-अलग समय पर कई-कई बार उपजा है।
नेचर कम्युनिकेशंस में शोधकर्ता बताते हैं कि जीवित स्तनधारियों के शुरुआती पूर्वजों, जैसे प्राइमेट या बिल्लियों, में समलैंगिक व्यवहार नहीं दिखता है। लेकिन जैसे-जैसे नए वंशज विकसित हुए, उनमें से कुछ में यह व्यवहार दिखने लगा। जैसे, वानर में लीमर्स की तुलना में समलैंगिक व्यवहार अधिक तेज़ी से विकसित हुआ। वानर लगभग 2.5 करोड़ वर्ष पहले अन्य प्राइमेट्स से अलग हो गए थे।
इसके बाद उन्होंने समलैंगिक व्यवहार दर्शाने वाली प्रजातियों में समानताओं पर ध्यान दिया – पाया गया कि ये सभी प्रजातियां समूह में रहती हैं। अत: ये नतीजे इस परिकल्पना का समर्थन करते हैं कि समलैंगिक व्यवहार का मूल समूह में रहना है, जैसा कि अन्य अध्ययनों का भी निष्कर्ष था।
समूह में रहने पर सदस्यों के बीच हिंसा या संघर्ष हो सकता है, जिसके चलते समूह टूट सकता है। ऐसा होने पर समूह में रहने से मिलने वाले फायदे मिलना बंद हो जाएंगे। समलैंगिक व्यवहार एक तरीका हो सकता है जिससे सदस्यों के बीच पनपे इस संघर्ष को दूर किया जा सकता है, और समूह को जोड़े रखा जा सकता है। यह कुछ-कुछ रूठने-मनाने जैसा लगता है।
लेकिन मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर इवोल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी के वैकासिक जीवविज्ञानी डाइटर लुकास को इस निष्कर्ष पर संदेह है। वे कहते हैं कि समलैंगिक व्यवहार की यही एकमात्र व्याख्या नहीं हो सकती। उनको लगता है कि प्राकृतिक परिस्थितियों में इस व्यवहार के अवलोकन में शायद कुछ प्रजातियों का व्यवहार नज़रअंदाज़ हुआ हो। जैसे, हो सकता है कि कुछ निशाचर जंतु उपेक्षित रह गए हों।
दिलचस्प बात है कि एक अन्य अध्ययन में झींगुर में भी समलैंगिक व्यवहार दिखा है। नर झींगुर कभी-कभी प्रेम-गीत गाते हैं जिससे वे अन्य नर और किशोरों के साथ सम्बंध बनाने की कोशिश करते दिखे हैं। लेकिन झींगुर तो समूहों में नहीं रहते। इसलिए यदि समूह में रहना समलैंगिक व्यवहार की एकमात्र व्याख्या दी जाए, तो फिर झींगुर के व्यवहार को कैसे समझेंगे? संभव है कि झींगुर समेत कुछ अन्य प्रजातियां संभोग के अधिक से अधिक अवसरों का लाभ उठाने की रणनीति के हिस्से के रूप में समलैंगिक व्यवहार करती हों। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है। Photo Credit : https://www.popsci.com/uploads/2023/10/04/mammals-same-sex-sexual-behavior.png?auto=webp
विटामिन सी को प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करने वाला माना जाता रहा है। लेकिन क्या इसकी महत्ता उचित है या इसको ज़रूरत से अधिक महत्व दिया जाता है।
दरअसल, 1970 के दशक में विटामिन सी को लायनस पौलिंग के दम पर प्रतिष्ठा हासिल हुई थी। उनका दावा था कि विटामिन सी काफी मात्रा में लिया जाए तो सामान्य ज़ुकाम के अलावा हृदय रोग तथा कैंसर से भी लड़ने में मदद मिलती है। अलबत्ता, नेशनल इंस्टिट्यूट्स ऑफ हेल्थ (एनआईएच) सहित कई शोधकर्ताओं के अनुसार इसके कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं।
अध्ययन बताते हैं कि यह सर्दी-ज़ुकाम के खिलाफ आवश्यक सुरक्षा प्रदान नहीं करता। दैनिक अनुशंसित मात्रा से अधिक लेने से बेहतर स्वास्थ्य की कोई संभावना नहीं होती है। दरअसल, 1000 मिलीग्राम से अधिक विटामिन सी लें, तो अतिरिक्त मात्रा मूत्र के साथ बाहर निकल जाती है।
विटामिन सी की कमी या शारीरिक तनाव के मामलों को छोड़ दिया जाए तो विटामिन सी की उच्च खुराक न तो सामान्य सर्दी-ज़ुकाम के लक्षणों को रोकती है, न ही उनको कम करती है।
वैसे विटामिन सी शरीर में कुछ अहम भूमिकाएं निभाता है। यह इंटरफेरॉन जैसे प्रोटीन निर्माण को बढ़ावा देता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करता है। इससे कोशिकाओं को वायरल हमलों से सुरक्षा मिलती है और संक्रमण से लड़ने वाली श्वेत रक्त कोशिकाओं में भी वृद्धि होती है। विटामिन सी कोलाजन निर्माण में भी सहायक है जो हड्डियों, मांसपेशियों, रक्त वाहिकाओं और त्वचा के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है। स्किन-केयर उत्पादों में इसका उपयोग चमड़ी के लटकने, झुर्रियों, काले धब्बों और मुहांसों से बचने के लिए किया जाता है। इसके अलावा सनस्क्रीन में यह सूर्य की हानिकारक किरणों से कुछ हद तक सुरक्षा प्रदान करता है।
विटामिन सी ऑक्सीकरण-रोधी के रूप में भी काम करता है। इसके अतिरिक्त, यह मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र में महत्वपूर्ण रासायनिक संकेतकों और हार्मोन के उत्पादन में भी योगदान देता है, जिससे तनाव और बेचैनी कम हो जाती है।
तथ्य यह है कि हमारा शरीर विटामिन सी का उत्पादन या भंडारण नहीं करता है। इसलिए इसे आहार के माध्यम से प्राप्त करना अनिवार्य है। अच्छी बात है कि अधिकांश लोगों को खट्टे फलों (जैसे संतरा, अंगूर, नींबू), टमाटर और ब्रोकोली, गोभी, फूलगोभी जैसी सब्ज़ियों से पर्याप्त विटामिन सी मिल जाता है। धूम्रपान से विटामिन सी को अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है इसलिए ऐसे लोगों को अतिरिक्त विटामिन सी का सेवन करना चाहिए।
आखिर में यह जानना भी आवश्यक है कि क्या पर्याप्त मात्रा से अधिक विटामिन सी का सेवन किया जा सकता है। अधिकांश लोगों को विटामिन सी की उच्च खुराक से कोई दिक्कत नहीं होती लेकिन गुर्दे की समस्या वाले लोगों को सावधान रहना चाहिए। अत्यधिक विटामिन सी के सेवन से पेट की समस्याएं हो सकती हैं जबकि कुछ मामलों में, स्टैटिन जैसी दवाइयों की प्रभावशीलता भी कम हो सकती है। चबाने योग्य विटामिन सी की गोलियां मुंह की स्वच्छता के लिए फायदेमंद तो हैं लेकिन बहुत देर तक मुंह में रखी जाएं तो दांतों के क्षरण का कारण भी बन सकती हैं।
यानी विटामिन सी स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण तो है, लेकिन जब तक आपके शरीर में इसकी कमी न हो तब तक इसके अतिरिक्त व अत्यधिक सेवन की कोई तुक नहीं है। यह सिर्फ पैसों की बर्बादी है और शायद हानिकारक भी हो सकता है। (स्रोत फीचर्स)
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