जापान बना रहा अपना घरेलू चैटजीपीटी

न दिनों जापानी शोधकर्ता ओपनएआई द्वारा निर्मित प्रसिद्ध चैटजीपीटी के समान अपने स्वयं के एआई चैटबॉट विकसित करने के प्रयास कर रहे हैं। इस महत्वाकांक्षी परियोजना का उद्देश्य एआई सिस्टम को जापानी भाषा और संस्कृति की बारीकियों के अनुरूप विकसित करना है ताकि जापानी उपयोगकर्ताओं इसका अधिक सहजता से उपयोग कर सकें। इसके लिए जापान सरकार और कई तकनीकी कंपनियां निवेश कर रही हैं।

गौरतलब है कि वर्तमान विशाल भाषा मॉडल (एलएलएम) अंग्रेज़ी में काम करने के लिए विकसित किए गए हैं। ये मॉडल अन्य भाषाओं में अनुवाद तो करते हैं लेकिन अंग्रेज़ी और जापानी भाषा की वाक्य संरचनाएं बहुत अलग-अलग होती हैं, और अंग्रेज़ी-जापानी मशीनी अनुवाद गलत-सलत होता है। जब चैटजीपीटी से जापानी (या किसी अन्य भाषा) में प्रश्न किए जाते हैं तो यह उनका अंग्रेज़ी अनुवाद करके जवाब तैयार करता है और फिर इनका जापानी में अनुवाद करके जवाब पेश करता है। इस एआई-जनित इबारत में विचित्र अक्षर और अजीब वाक्यांश वाला पाठ प्राप्त होता है जिससे उपयोगकर्ता को अपेक्षित परिणाम नहीं मिलता।

जापान द्वारा तैयार किए गए वर्तमान एलएलएम की सांस्कृतिक उपयुक्तता और सुलभता का मूल्यांकन करने के लिए शोधकर्ताओं ने राकुडा नामक रैंकिंग प्रणाली विकसित की है जो जापानी सवालों पर एलएलएम की प्रतिक्रियाओं का आकलन करती है। इस आधार पर शोधकर्ताओं को जापानी एलएलएम में निरंतर सुधार देखने को तो मिला है लेकिन प्रदर्शन के मामले में यह अभी भी जीपीटी-4 के पीछे है। फिर भी विशेषज्ञों को उम्मीद है कि जापानी एलएलएम भविष्य में जीपीटी-4 की क्षमता की बराबरी कर पाएगा।

इस घरेलू एलएलएम को प्रशिक्षित करने के लिए जापान ने तेज़ कंप्यूटर फुगाकू सुपरकंप्यूटर का उपयोग किया। इस ओपन-सोर्स जापानी एलएलएम का लक्ष्य कम से कम 30 अरब गुणधर्म शामिल करना है। इसके अलावा जापान का शिक्षा, संस्कृति, खेल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय भी एक जापानी एआई कार्यक्रम को वित्त पोषित कर रहा है। विशेषज्ञों को उम्मीद है कि 100 अरब मापदंडों से सुसज्जित यह एआई मॉडल वैज्ञानिक अनुसंधान में एक बड़ा परिवर्तन ला सकता है। परिकल्पनाओं के निर्माण और अनुसंधान लक्ष्यों की पहचान करके यह अनुसंधान कार्यों में काफी तेज़ी ला सकता है।

कई जापानी कंपनियां व्यावसायीकरण में कदम बढ़ा रही हैं। सुपरकंप्यूटर निर्माता एनईसी ने जापानी भाषा आधारित जनरेटिव एआई का उपयोग करना शुरू किया है। इससे आंतरिक रिपोर्ट और सॉफ्टवेयर स्रोत कोड बनाने में समय की काफी बचत हुई है। दूरसंचार कंपनी सॉफ्टबैंक स्वयं का एलएलएम लॉन्च करने वाली है जो मुख्य रूप से विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों और संगठनों के लिए तैयार किया गया है।

जापानी एआई चैटबॉट के विकास की अपार संभावनाएं हैं। यह शोध कार्यों को तेज़ी से आगे बढ़ाने और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने की क्षमता रखता है। विशेषज्ञ इसे जापान और इसकी समृद्ध संस्कृति को समझने के इच्छुक लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में देखते हैं। जापान द्वारा स्वयं का चैटजीपीटी एक वैश्विक रुझान का उदाहरण है जो विशिष्ट भाषाई और सांस्कृतिक संदर्भों के लिए एआई को अनुकूलित करता है। यह एक ऐसे भविष्य का संकेत है जहां एआई अधिक समावेशी, प्रभावी और दुनिया भर की विविध संस्कृतियों में सामंजस्यपूर्ण रूप से एकीकृत होगा। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://img.kyodonews.net/english/public/images/posts/0416de6f5ecb233a7ca9e6b8fef049e9/photo_l.jpg

प्राचीन मानव मज़े के लिए भी पत्थर तराशते थे

वैज्ञानिकों को 1960 के दशक में उत्तरी इस्राइल के 14 लाख साल पुराने एक पुरातात्विक स्थल ‘उबेदिया’ की खुदाई में पत्थरों के औज़ारों (जैसे कुल्हाड़ी वगैरह) के साथ कंचे जितने बड़े करीब 600 पत्थर के गोले भी मिले थे। लेकिन यह स्पष्ट नहीं था कि ये गोले कैसे और किसलिए बनाए गए थे। कुछ लोगों का अनुमान था कि ये गोले औज़ार बनाते वक्त बचे हुए पत्थर हैं। कुछ का विचार था कि, हो न हो, ये जानबूझकर बनाए गए होंगे।

इस गुत्थी को सुलझाने के लिए हिब्रू युनिवर्सिटी ऑफ जेरूसलम के कंप्यूटेशनल पुरातत्वविदों के एक दल ने इन ‘गोलाभों’ की त्रि-आयामी आकृति का विश्लेषण किया। इसके लिए उन्होंने एक नया, परिष्कृत सॉफ्टवेयर विकसित किया। यह सॉफ्टवेयर गोलाभ की सतह की कटानों के ढलानों (कोण) को माप सकता था, सतह की वक्रता की गणना कर सकता था, और संहति केंद्र पता कर सकता था। इस सॉफ्टवेयर की मदद से उन्होंने उबेदिया से प्राप्त 150 गोलाभों का विश्लेषण किया। इस आधार पर शोधकर्ता रॉयल सोसाइटी ओपन साइंस में लिखते हैं कि उबेदिया से प्राप्त गोलाभ इरादतन की गई शिल्पकला हैं, ना कि औज़ार बनाने के सहत्पाद। उन्हें प्रत्येक कंचे में एक बड़ी ‘प्राथमिक सतह’ मिली है जो आसपास से कई छोटे कटानों से घिरी है, इससे समझ आता है कि पहले किसी चट्टान से एक टुकड़ा काटकर अलग किया गया और फिर उस टुकड़े को चारों ओर से तराशकर गोल स्वरूप दिया गया।

शोधकर्ता बताते हैं कि इस बात की संभावना बहुत कम है कि ये कंचे प्राकृतिक क्रियाओं द्वारा बने होंगे। प्राकृतिक क्रियाओं से बनी संरचनाओं की सतह काफी चिकनी होती है। उदाहरण के लिए, नदियों में पाए जाने वाले पत्थर पानी द्वारा कटाव के कारण अत्यधिक चिकने हो जाते हैं, और वे पूर्ण गोलाकार भी नहीं होते। उबेदिया में पाए जाने वाले गोलाभों की सतह वैसी खुरदरी है जैसे किसी पत्थर को तराशने में होती है। और उनमें से कई कंचे तो एकदम गोल हैं, जो केवल कोई सोच-समझकर ही बना सकता है।

शोध के प्रमुख लेखक एंटोनी मुलर बताते हैं कि ऐसा लगता है कि 14 लाख साल पहले होमिनिन्स के पास अपने मन (दिमाग) में एक गोले की कल्पना करने और उस कल्पना को तराशकर आकार देने की क्षमता थी। ऐसा करने के लिए एक योजना और दूरदर्शिता के साथ-साथ मानवीय निपुणता और कौशल लगते हैं। इसके अलावा यह उनमें सुंदरता और सममिति की सराहना के उदाहरण भी पेश करता है।

अपने सॉफ्टवेयर से शोधकर्ता यह तो पता कर पाए कि प्राचीन मनुष्यों ने इन्हें कैसे बनाया लेकिन वे यह गुत्थी नहीं सुलाझा पाए कि इन्हें क्यों बनाया। लेकिन उनका अनुमान है कि उन्होंने ये गोले महज़ मज़े के लिए बनाए होंगे।

अन्य वैज्ञानिकों की टिप्पणी है इन गोलाभ की सतह पर बने कई निशानों से यह जानना असंभव हो जाता है कि निर्माण के शुरुआती चरणों में गोलाभ कैसे दिखते होंगे। उनका सुझाव है कि शोधकर्ता यदि अंतिम रूप ले चुके गोलाभों की आपस में तुलना करने की बजाय उन गोलाभों से करते जिन्हें गोलाभ बनाने की प्रक्रिया में अधूरा छोड़ दिया गया था तो अधिक स्पष्ट तस्वीर बन सकती थी।

इसके अलावा इस नई तकनीक की विश्वसनीयता परखने के लिए इसे अन्य पुरानी कलाकृतियों, जैसे अफ्रीका के खुदाई स्थलों से प्राप्त 20 लाख साल पुराने गोलाभों पर लागू करके देखना फायदेमंद होगा। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://images.newscientist.com/wp-content/uploads/2023/09/05140822/SEI_170211664.jpg?width=1200