जर्मनी के बावेरियन पर्वत के इलाके में जंगली सुअर इतने रेडियोसक्रिय हैं कि उन्हें भोजन की दृष्टि से असुरक्षित घोषित कर दिया गया है। लेकिन इनमें यह रेडियोसक्रियता आई कहां से? एंवायर्मेंटल साइन्स एंड टेक्नॉलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने बताया है कि इनके शरीर में यह रेडियोसक्रियता उन परमाणु परीक्षणों का परिणाम है जो आज से 60 साल पहले हुए थे। परमाणु हथियारों के परीक्षण के पर्यावरणीय व स्वास्थ्य सम्बंधी असर का अध्ययन बहुत कम किया गया है और प्राय: इन्हें भुला दिया गया है।
बावेरिया के जंगली सुअरों में रेडियोसक्रियता के इतने लंबे समय तक बने रहने का दोष अक्सर 1986 की चेर्नोबिल दुर्घटना को दे दिया जाता है। गौरतलब है कि चेर्नोबिल इस इलाके से करीब 1300 किलोमीटर दूर है। दुर्घटना के फौरन बाद रेडियोसक्रिय पदार्थ वातावरण में फैला और बावेरिया व अन्यत्र जंगली जानवरों में रेडियोसक्रिय सीज़ियम पहुंच गया। समय के साथ अधिकांश जानवरों में तो रेडियोसक्रियता कम होती गई लेकिन जंगली सुअरों में नहीं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका कारण यह है कि ये जंगली सुअर ट्रुफल मशरूम (कुकुरमुत्ते) खाना बहुत पसंद करते हैं। रेडियोसक्रिय कण मिट्टी में रिसते हैं और फिर मशरूम में संग्रहित होते रहते हैं। ये जंगली सुअर इन्हीं रेडियोधर्मी मशरूम को खाते हैं।
लेकिन इस कथानक को लेकर कई लोगों को संदेह था। उन्हें लगता था कि शायद चेर्नोबिल हादसा जंगली सुअरों में पाई गई उच्च रेडियोसक्रियता की पूरी व्याख्या नहीं कर सकता। लीबनिज़ विश्वविद्यालय के रेडियो-पारिस्थितिकीविद बिन फेंग का ख्याल था कि, हो न हो, ये जानवर उन परमाणु शस्त्र परीक्षणों के परोक्ष शिकार हैं, जो 1960 के दशक में अपने चरम पर थे। शीत युद्ध के दौरान दुनिया भर में 5000 से ज़्यादा परमाणु बमों का परीक्षण किया गया था और इनमें से 500 तो सीधे वातावरण में फोड़े गए थे। इनसे जो रेडियोधर्मी कण फैले वे अंतत: वापिस धरती पर पहुंचे थे। उपरोक्त अध्ययन के एक अन्य शोधकर्ता जॉर्ज स्टाइनहौसर का कहना है कि आज ये कण मिट्टी में सर्वत्र मौजूद हैं।
फेंग और उनके साथियों ने शिकारियों के साथ काम करते हुए इस इलाके के 48 सुअरों का मांस इकट्ठा किया और उनमें रोडियोधर्मी सीज़ियम का स्तर नापा। पाया गया कि 88 प्रतिशत नमूने खाने के अयोग्य हैं।
इसके बाद शोधकर्ताओं ने इन नमूनों में समस्थानिकों की छानबीन की। उनकी दिलचस्पी खास तौर से दो समस्थानिकों में थी – सीज़ियम-137 और सीज़ियम-135। इनका अनुपात रेडियोसक्रियता के स्रोत के अनुसार अलग-अलग होता है – यानी इनका अनुपात इस बात पर निर्भर करता है कि यह रेडियोसक्रियता किसी परमाणु बिजलीघर से आई है या परमाणु विस्फोट से आई है।
शोधकर्ताओं ने अध्ययन से निष्कर्ष निकाला कि सारे सुअरों के मांस में रोडियोसक्रियता चेर्नोबिल और परमाणु हथियारों का मिला-जुला परिणाम है। परमाणु विस्फोटों से आई रेडियोसक्रियता का अंश काफी अलग-अलग था – 10 से 99 प्रतिशत तक। कम से कम एक-चौथाई सुअरों में परमाणु बमों की वजह से ही इतनी रेडियोसक्रियता आई है कि वे खाने योग्य नहीं रह गए हैं। इतने वर्षों तक रेडियोसक्रियता के टिके रहने का कारण यह हो कि जंगल की मिट्टी में कणों के नीचे बैठने की रफ्तार कम होती है।
रेडियोसक्रियता के टिके रहने के अन्य परिणाम भी हो सकते हैं। जैसे, इस इलाके में जंगली सुअर के मांस की खपत काफी कम हो गई है। यदि खपत कम होगी तो शिकारी इन्हें पकड़ेंगे नहीं। इस तरह इनकी आबादी बेलगाम ढंग से बढ़ने का खतरा है, जिसका असर जंगल की पारिस्थितिकी पर भी होगा।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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