विटामिन डी स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण और आवश्यक पोषक तत्व है। यह हड्डियों को मज़बूत बनाए रखता है, मांसपेशियों के काम में मदद करता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को भी मज़बूत करता है। विटामिन डी के निर्माण के लिए शरीर को मात्र सूरज की रोशनी चाहिए होती है। लेकिन भारत जैसे पर्याप्त धूप वाले देशों में भी लोगों में विटामिन डी की कमी है।
लेकिन जहां एक ओर धूप को इसका सबसे अच्छा स्रोत कहा जाता है, वहीं त्वचा के कैंसर से बचने के लिए धूप से बचने की सलाह भी दी जाती है। तो विटामिन डी से भरपूर चीज़ें खाने की सलाह दी जाती है, लेकिन सच तो यह है कि अधिकांश खाद्य पदार्थों में इसकी पर्याप्त मात्रा नहीं होती है। लिहाज़ा इसकी कमी को प्रभावित करने वाले कारकों को समझने के साथ यह भी सुनिश्चित करना आवश्यक है कि हमारे शरीर को पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी कैसे मिल सकता है।
विटामिन डी का प्रमुख कार्य भोजन से कैल्शियम को अवशोषित करने में मदद करना है। यह अवशोषण प्रक्रिया हमारी हड्डियों को मज़बूत रखने में महत्वपूर्ण है। इसके अलावा यह मांसपेशियों के कार्य, तंत्रिका संचार और हानिकारक बैक्टीरिया तथा वायरस के खिलाफ हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
विटामिन डी की कमी का जोखिम कई कारकों पर निर्भर करता है। बढ़ती उम्र के साथ त्वचा विटामिन डी का उत्पादन करने में कम कुशल हो जाती है और जीवन के हर दशक में लगभग 13 प्रतिशत की गिरावट होती है। इसके अलावा गहरे रंग की त्वचा हल्के रंग की त्वचा की तुलना में विटामिन डी बनाने में लगभग 90 प्रतिशत कम कुशल होती है।
इसी तरह मोटापे से ग्रस्त लोगों को दो से तीन गुना अधिक विटामिन डी की आवश्यकता होती है। विटामिन डी शरीर की वसा कोशिकाओं में जमा होता है और मोटे लोगों में ज़्यादा वसा कोशिकाएं होती हैं। इसलिए रक्त संचार में विटामिन-डी कम मात्रा में रहता है।
गर्भवती महिलाओं, स्तनपान करने वाले शिशुओं, सीमित धूप वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों और एड्स जैसी स्थितियों को सम्भालने के लिए विशिष्ट दवाएं लेने वाले व्यक्तियों में विटामिन डी की कमी का जोखिम होता हैं। लीवर या किडनी रोग भी विटामिन डी को उसके सक्रिय रूप में बदलने में बाधा डाल सकते हैं।
विटामिन डी की कमी के कोई विशिष्ट लक्षण नहीं है इसलिए इसका पता रक्त परीक्षण से लगता है। वैसे थकान, हड्डियों में दर्द और मांसपेशियों में कमज़ोरी कुछ लक्षण बताए जाते हैं।
सूर्य का प्रकाश विटामिन डी का मुख्य स्रोत है। आम तौर पर हल्की रंग की त्वचा वाले लोगों के लिए, सप्ताह में तीन बार कम से कम 10 से 20 मिनट की धूप विटामिन डी के आवश्यक स्तर को बनाए रखने के लिए पर्याप्त मानी जाती है। इसके विपरीत, गहरे रंग की त्वचा वाले लोगों को उतना ही विटामिन डी बनाने के लिए तीन से पांच गुना अधिक समय तक धूप में रहने की आवश्यकता होती है। वैसे सबसे प्रभावी समय वह होता है, जब सूर्य ठीक सिर पर होता है। दरअसल सूर्य की यू.वी.बी किरणें विटामिन डी के उत्पादन में मदद करती हैं। सुबह और देर दोपहर और सर्दियों में (जब सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं) और अधिक समय वातावरण में बिताती हैं तो वहीं (वातावरण में) अवशोषित हो जाती हैं। कुछ अन्य कारक भी विटामिन डी के उत्पादन को प्रभावित करते हैं। एक समय में सनस्क्रीन को विटामिन डी उत्पादन में बाधा माना जाता था लेकिन हाल के अध्ययनों ने इस धारणा को खारिज कर दिया है।
लेकिन विटामिन डी के लिए मात्र सूरज की रोशनी के भरोसे नहीं रहा जा सकता क्योंकि धूप से अधिक संपर्क के साथ त्वचा कैंसर का खतरा जुड़ा है और बदलती जीवन शैली के चलते लोग अधिक समय घरों के अंदर बिताने लगे हैं।
अमेरिकन एकेडमी ऑफ डर्मेटोलॉजी ने वयस्कों को सूर्य के संपर्क या इनडोर टैनिंग के माध्यम से विटामिन डी प्राप्त करने के बजाय आहार स्रोतों का सुझाव दिया है। दुर्भाग्य से, विटामिन डी के प्राकृतिक खाद्य स्रोत दुर्लभ हैं। ट्राउट, ट्यूना, सैल्मन और मैकेरल जैसी वसायुक्त मछलियां, मछली के जिगर के तेल और यूवी-एक्सपोज़्ड मशरूम विटामिन-डी के सबसे अच्छे स्रोत हैं। इसकी कुछ मात्रा अंडे की ज़र्दी, पनीर और बीफ लीवर में पाई जाती है। यूएस, यूके और फिनलैंड सहित विभिन्न देश इस कमी को दूर करने के लिए दूध, अनाज, संतरे का रस और दही जैसे उत्पादों को विटामिन डी से समृद्ध करते हैं। लेकिन इसमें दिक्कतें हैं। जैसे, एक कप विटामिन डी युक्त दूध में आम तौर पर लगभग 3 माइक्रोग्राम विटामिन डी होता है, जबकि 70 से कम उम्र वालों के लिए 15 माइक्रोग्राम और इससे अधिक उम्र के वयस्कों के लिए 20 माइक्रोग्राम ज़रूरी है।
शरीर को पर्याप्त विटामिन डी प्रदान करने के लिए धूप, विटामिन डी से भरपूर आहार और ज़रूरत पड़ने पर पूरक आहार के बीच संतुलन बनाना होता है। जहां तक विटामिन पूरकों की बात है, इनके अधिक सेवन से बचना चाहिए। अत्यधिक विटामिन डी के सेवन से मितली, मांसपेशियों में कमज़ोरी, भ्रम, उल्टी और निर्जलीकरण जैसे लक्षण हो सकते हैं। गुर्दे की पथरी, गुर्दे का खराब होना, अनियमित धड़कन और यहां तक कि मृत्यु भी संभव है। पूरकों के विपरीत, सूर्य का संपर्क स्वाभाविक रूप से विटामिन डी उत्पादन को नियंत्रित करता है, जिससे विटामिन डी की अधिकता का खतरा नहीं रहता।
वैसे यदि आपमें विटामिन डी की कमी नहीं है, तो अधिक विटामिन डी लेने से कोई अतिरिक्त लाभ नहीं मिलेगा।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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