एम्परर पेंगुइन अच्छी तरह जमी हुई समुद्री बर्फ वाले इलाकों में ही प्रजनन और अपने बच्चों का पालन-पोषण करते हैं। उनके प्रजनन क्षेत्रों के आसपास की बर्फ पिघल कर टूटने लगे तो वे स्थान बदल लेते हैं लेकिन इससे उनका प्रजनन प्रभावित होता है। कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित रिपोर्ट बताती है कि हाल ही में जलवायु परिवर्तन के चलते अंटार्कटिका के आसपास के समुद्र गर्म होने से मौसम के पहले ही बर्फ टूटने लगी है, जिसके कारण पेंगुइन अपने प्रजनन स्थल से पलायन कर गए हैं।
ब्रिटिश अंटार्कटिका सर्वेक्षण लगभग पिछले 15 सालों से उपग्रह द्वारा अंटार्कटिका में पेंगुइन बस्तियों की निगरानी कर रहा है। पिछले साल रिमोट सेंसिंग विशेषज्ञ और भूगोलविद पीटर फ्रेटवेल और उनके साथियों ने अक्टूबर के अंत में कुछ स्थानों पर समुद्री बर्फ टूटते हुए देखी थी। एम्परर पेंगुइन प्रजनन के लिए इन स्थानों पर मार्च-अप्रैल में पहुंचते हैं। अगस्त-सितंबर के बीच उनके अंडों से चूज़े निकलते हैं और दिसंबर और जनवरी तक इनके पंख विकसित हो पाते हैं। यदि चूज़ों के परिपक्व होने के पहले ही समुद्री बर्फ टूट जाएगी तो बच्चे डूब जाएंगे या फ्रीज़ हो जाएंगे। यानी अक्टूबर में बर्फ का बिखरना पेंगुइन के लिए निश्चित खतरा होगा।
हुआ भी वही। उपग्रह चित्रों से पता चलता है कि जब 2022 में समुद्री बर्फ टूटी तो अक्टूबर के अंत में पेंगुइन की एक बस्ती ने वह स्थान छोड़ दिया था। दिसंबर की शुरुआत में पेंगुइन के तीन अन्य समूह वहां से चले गए। सिर्फ सुदूर उत्तर में स्थित रोथ्सचाइल्ड द्वीप पर एक बस्ती बची रही और सफलतापूर्वक अपने चूज़ों को पाल पाई।
ऐसा अनुमान है कि अंटार्कटिका में एम्परर पेंगुइन के कुल प्रजनन जोड़े करीब 2,50,000 हैं। पिछले साल बेलिंगशॉसेन में लगभग 10,000 जोड़े प्रभावित हुए थे। वैसे तो यह आपदा उतनी बड़ी नहीं लगती। पेंगुइन की उम्र 20 साल होती है तो इनमें से अधिकांश पेंगुइन अगले साल फिर प्रजनन कर लेंगी। लेकिन लगातार ऐसी स्थिति रही तो हालात मुश्किल होंगे। मौजूदा परिस्थितियों के आधार पर फ्रेटवेल का अनुमान है कि यह साल भी पांचों बस्तियों के लिए उतना ही बुरा होगा। पूर्व में भी समुद्री बर्फ की स्थिति बदलने के चलते ऐसी स्थितियां बनी हैं जब पेंगुइन के लिए प्रजनन मुश्किल हुआ है। कार्बन उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है, और कार्बन उत्सर्जन समुद्र के गर्माने में बड़ा योगदान देता है। हालात इसी तरह बदलते रहे तो यह पूरा का पूरा क्षेत्र ही पेंगुइन के लिए अनुपयुक्त हो जाएगा और उन्हें अपने लिए वैकल्पिक स्थान ढूंढना भी मुश्किल हो जाएगा। संभव है कि अगले कुछ वर्षों में उनकी कॉलोनियां विलुप्त हो जाएंगी।
यदि हम कार्बन उत्सर्जन को तत्काल कम करते हैं तो पेंगुइन के लिए महफूज़ बचे स्थान सलामत रहेंगे। साथ ही इस क्षेत्र में मछली पकड़ने पर रोक लगाकर पेंगुइन के लिए पर्याप्त भोजन संरक्षित रखा जा सकता है और पर्यटन को कम करके उनके लिए तनावमुक्त माहौल सुनिश्चित किया जा सकता है।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.adk4905/full/_20230824_penguins-1692904801527.jpg