डॉ. उल्बे बोस्मा की पुस्तक दी वर्ल्ड ऑफ शुगर (शकर का संसार) को हाल ही में हारवर्ड युनिवर्सिटी प्रेस ने प्रकाशित किया है। यह पुस्तक बताती है कि शकर का सामाजिक प्रभुत्व एक हालिया सामाजिक घटना है। भारत में छठी शताब्दी से दानेदार चीनी बनाई और खाई जा रही है। वास्तव में, डॉ. के. टी. अचया अपनी पुस्तक इंडियन फूड – ए हिस्टोरिकल कम्पेनियन (भारतीय भोजन – एक ऐतिहासिक सहचर) में बताते हैं कि भारत में गन्ने के बारे में अथर्ववेद के समय (लगभग 900 ईसा पूर्व) से और गुड़ के बारे में 800 ईसा पूर्व से पता रहा है।
हालांकि, दानेदार शकर के बारे में जानकारी छठवीं शताब्दी से थी, लेकिन परिष्कृत शकर 19वीं शताब्दी में युरोप में व्यापक पैमाने पर फैली। जैसा कि लेखक बताते हैं, शकर का सामाजिक प्रभुत्व प्रगति की कहानी है, और साथ ही शोषण, नस्लवाद, मोटापे और पर्यावरण विनाश की कड़वी-मीठी कहानी है।
गुलामों का व्यापार
दी कनवर्सेशन में एक लेख प्रकाशित हुआ है: ‘ए हिस्ट्री ऑफ शुगर – दी फूड देट नोबडी नीड्स, बट एव्रीवन क्रेव्स फॉर’ (शकर का इतिहास – ऐसा खाद्य जिसकी किसी को ज़रूरत नहीं है, लेकिन हर कोई तरसता है)। इस लेख में बताया गया है कि किस तरह शकर का उत्पादन मध्य पूर्व में, और औपनिवेशिक काल के दौरान गुलामों द्वारा वेस्ट इंडीज़ में, और ब्राज़ील में किया जाता था। ब्राज़ील और कैरेबियाई क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर गन्ना बागानों में काम करने के लिए श्रमिकों की भारी मांग थी। यह मांग अटलांटिक-पार गुलाम व्यापार से पूरी हुई, जिसके परिणामस्वरूप 1501 से 1867 के बीच लगभग 1,25,70,000 लोगों को अफ्रीका से अमेरिका महाद्वीप भेजा गया। प्रत्येक यात्रा में लोगों की मृत्यु दर संभवत: 25 प्रतिशत तक थी, और इसमें 10 लाख से 20 लाख लाशों को समुद्र में फेंका गया था। सौभाग्य से, अब दास व्यापार समाप्त हो गया है। ब्राज़ील और भारत शीर्ष शकर उत्पादक बने हुए हैं, और अब वैश्विक शकर उत्पादन में लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा चुकंदर से आता है।
भारत में हम सभी गन्ने और उससे बनी दानेदार शकर से परिचित हैं। हमारे यहां गुड़ भी है जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है। आजकल लोग यह जानना चाहते हैं कि क्या थैलीबंद दानेदार चीनी की अपेक्षा ठेलेवालों द्वारा बेचा जाने वाला ताज़ा गन्ने का रस लेना बेहतर है। इसका जवाब है – हां, क्योंकि इसमें थोड़ी मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट और खनिज होते हैं जो चीनी बनाते समय नष्ट हो जाते हैं। गुड़ को अक्सर अन्य तरह की शकर की तुलना में स्वास्थ्यवर्धक बताया जाता है, क्योंकि इसमें एंटीऑक्सिडेंट, विटामिन और खनिज होते हैं।
स्वास्थ्य जोखिम
वैसे हम सभी जानते हैं कि किसी भी प्रकार की शकर का बहुत अधिक सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इससे मधुमेह हो सकता है, जिसमें शकर का अधिक सेवन रक्तप्रवाह में इंसुलिन स्रवण को शुरू करवाता है जिससे दृष्टि की दिक्कतें, और हृदय और किडनी सम्बंधी समस्याएं हो सकती हैं। यही कारण है कि डॉक्टर बहुत अधिक मीठा न खाने का सुझाव देते हैं। टाइप-1 डायबिटीज़ के रोगियों को इंसुलिन का इंजेक्शन लेना पड़ता है, जबकि टाइप-2 डायबिटीज़ रोगियों को रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर सावधानीपूर्वक नियंत्रित रखना पड़ता है, और शकर के विकल्प (स्टीवियोल ग्लायकोसाइड या सुक्रेलोज़ वगैरह) लेना पड़ता है। हाल ही में जीन क्लीनिक नामक कंपनी ने एक ऐसा उपकरण पेश किया है जो बांह या पेट पर एक पट्टी की तरह चिपक जाता है। हमेशा पहनने योग्य यह उपकरण आपको रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर बताता है, और ज़रूरत पड़ने पर यह भी बताता है कि कब आपको अपने डॉक्टर से परामर्श लेना है।
इन सबके मद्देनज़र शकर का सेवन कम करना सबसे अच्छा है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम है।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://th-i.thgim.com/public/news/national/xpi3nt/article67210783.ece/alternates/LANDSCAPE_1200/iStock-516358950.jpg