हाल ही में मधुमक्खियों और ततैयों पर किए गए एक अध्ययन से आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए हैं। प्लॉस बायोलॉजी में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार जैव विकास की राह में 18 करोड़ वर्ष पूर्व अलग-अलग रास्तों पर चल पड़ने के बावजूद मधुमक्खियों और ततैयों दोनों समूहों ने छत्ता निर्माण की जटिल ज्यामितीय समस्या से निपटने के लिए एक जैसी तरकीब अपनाई है।
गौरतलब है कि मधुमक्खियों और ततैयों के छत्ते छोटे-छोटे षट्कोणीय प्रकोष्ठों से मिलकर बने होते हैं। इस प्रकार की संरचना में निर्माण सामग्री कम लगती है, भंडारण के लिए अधिकतम स्थान मिलता है और स्थिरता भी रहती है। लेकिन रानी मक्खी जैसे कुछ सदस्यों के लिए बड़े आकार के प्रकोष्ठ बनाना होता है और उनको समायोजित करना एक चुनौती होती है। यदि कुछ प्रकोष्ठ का आकार बड़ा हो जाए तो ये छत्ते में ठीक से फिट नहीं होंगे और छत्ता कमज़ोर बनेगा।
मामले की छानबीन के लिए ऑबर्न विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने मधुमक्खी और ततैया की कई प्रजातियों के छत्तों का विश्लेषण किया और पाया कि दोनों जीव इस समस्या के समाधान के लिए एक जैसी तरकीब अपनाते हैं। यदि छोटे और बड़े प्रकोष्ठ की साइज़ में अंतर बहुत अधिक न हो तो वे बीच-बीच में थोड़े विकृत मध्यम आकार के षट्कोणीय प्रकोष्ठ बना देते हैं। यदि आकार का अंतर अधिक हो तो वे बीच-बीच में प्रकोष्ठों की ऐसी जोड़ियां बना देते हैं जिनमें से एक प्रकोष्ठ पांच भुजाओं वाला और दूसरा सात भुजाओं वाला होता है।
शोधकर्ताओं ने इसका एक गणितीय मॉडल भी तैयार किया जो बड़े और छोटे षट्कोणों के आकार में असमानता के आधार पर बता सकता है कि प्रकोष्ठों की साइज़ में कितना अंतर होने पर पंचभुज व सप्तभुज प्रकोष्ठों की कितनी जोड़ियां लगेंगी। अत: भले ही मधुमक्खियों और ततैयों ने स्वतंत्र रूप से षट्कोणीय प्रकोष्ठों से छत्ता बनाने की क्षमता विकसित की हो लेकिन लगता है कि वे इन्हें बनाने के लिए एक जैसे गणितीय सिद्धांतों का उपयोग करते हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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